विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति - forex hedging strategy

विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति - forex hedging strategy


विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति चार भागों में विकसित होती है, जिसमें विदेशी मुद्रा व्यापारी के जोखिम जोखिम, जोखिम सहिष्णुता के विश्लेषण और रणनीति की वरीयता ये घटक विदेशी मुद्रा बचाव बनाते हैं: 1. जोखिम का विश्लेषण: व्यापारी को यह पता होना चाहिए कि मौजूदा या प्रस्तावित स्थिति में वह किस


प्रकार के जोखिम (जोखिम) ले रहा है। वहां से, व्यापारी को यह अवश्य पहचानना चाहिए कि इस खतरे को अनफिट करने पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, और यह निर्धारित करें कि मौजूदा विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार में जोखिम उच्च या निम्न है या नहीं।


2. जोखिम सहिष्णुता निर्धारित करें: इस कदम में, व्यापारी अपने जोखिम जोखिम स्तर का उपयोग करता है,

यह निर्धारित करने के लिए कि स्थिति के जोखिम को कितना ढीला होना चाहिए। कोई भी व्यापार कभी शून्य जोखिम नहीं होगा; यह जोखिम लेने वाले जोखिम के स्तर को निर्धारित करने के लिए व्यापारी पर निर्भर है, और अधिक जोखिम को हटाने के लिए वे कितना भुगतान करने के इच्छुक हैं।


3. विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति निर्धारित करें: यदि विदेशी मुद्रा विकल्पों का उपयोग मुद्रा व्यापार के जोखिम को सुरक्षित रखने के लिए करता है, तो व्यापारी को यह निर्धारित करना होगा कि कौन सी रणनीति सबसे अधिक लागत प्रभावी है


4. रणनीति को लागू करें और निगरानी करें: यह सुनिश्चित करके कि रणनीति उस तरह से काम करती है जिस तरह से, जोखिम कम से कम रहेगा


विदेशी मुद्रा मुद्रा व्यापार बाजार एक जोखिम भरा है, और हेजिंग केवल एक तरीका है कि एक व्यापारी जोखिम की मात्रा को कम करने में मदद कर सकता है। एक व्यापारी होने का इतना पैसा और जोखिम प्रबंधन है, जो शस्त्रागार में हेजिंग जैसे अन्य टूल को अविश्वसनीय रूप से उपयोगी है। सभी खुदरा विदेशी मुद्रा दलालों उनके प्लेटफार्मों में हेजिंग की अनुमति नहीं देते हैं। ब्रोकर को पूरी तरह से अनुसंधान करना सुनिश्चित करें जो आप व्यापार से पहले शुरू करते हैं। डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से निर्यातकों को फायदा हुआ, क्योंकि उन्हें डॉलर में भुगतान होता है। वहीं, आयातकों को नुकसान झेलना पड़ा, क्योंकि उन्हें डॉलर में पेमेंट करने के लिए बाजार से महंगा डॉलर खरीदना होता है। इस नुकसान को मुद्रा बाजार का जोखिम कहते हैं। इसे हेजिंग के जरिये कम किया जाता है।



क्या होती है हेजिंग:


हेजिंग को हम एक तरह के बीमा की तरह समझ सकते हैं, जिसमें किसी भी नकारात्मक असर को कम करने की कोशिश की जाती है। हेजिंग से जोखिम होने का खतरा कम नहीं होता। लेकिन अगर सही तरीके से हेजिंग की जाए तो किसी भी नकारात्मक परिस्थिति का असर जरूर कम हो सकता है। साधारण तौर पर आप समझ लें कि हेजिंग में आप वायदा बाजार में वह पोजिशन लेते हैं, जो हाजिर बाजार से बिल्कुल विपरीत होती है। इस तरह से आप मुद्रा बाजार में किसी भी उतार-चढ़ाव के असर को कम कर सकते हैं।


क्या तरीके हैं हेजिंग के:


मुद्रा बाजार में तीन तरीकों से हेजिंग की जाती है। पहला तरीका है फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट का। इस तरीके में कारोबारी पहले से तय की गई विनिमय दर पर पूर्व निर्धारित समयसीमा में करार करते हैं। इस तरीके में आप अपने फायदे और नुकसान दोनों पर लगाम लगा कर पहले से ही चलते हैं। दूसरा तरीका करेंसी फ्यूचर्स का है। इस तरीके में किसी भी दो खास करेंसी का तय समय और तय दर पर आपस में आदान प्रदान होता है। करेंसी ऑप्शन तीसरा तरीका है। इसे एक तरह का बीमा कह सकते हैं जो मुद्रा बाजार के आपके पक्ष में आने से फायदा देता है और आपके विपरीत जाने में आपकी सुरक्षा भी करता है।


हेजिंग की रणनीतिः


निर्यातक करेंसी का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट बेचते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी निर्यातक को एक लाख डॉलर का सामान सप्लाई करना है। मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचने के लिए वह वायदा बाजार में डॉलर बेचता है। इसके उलटे अगर किसी आयातक को माल के लिए एक लाख डॉलर चुकाना है तो वह वायदा बाजार में जाकर डॉलर खरीद जोखिम को कम कर सकता है। आयातक कॉल ऑप्शन के जरिये विदेशी मुद्रा की खरीद की कीमत को पहले से ही तय कर अपने जोखिम को कम करता है। इसके उलट निर्यातक पुट ऑप्शन के जरिये विदेशी मुद्रा की बिक्री की कीमत को पहले से तय करके जोखिम को कम करता है।