'लोक' और 'शिष्ट' साहित्य का अन्तरसम्बन्ध - Interrelationship of 'folk' and 'honest' literature
'लोक' और 'शिष्ट' साहित्य का अन्तरसम्बन्ध - Interrelationship of 'folk' and 'honest' literature
लोक-साहित्य ने शिष्ट साहित्य को पृष्ठभूमि दी है जिसके आधार पर यह पल्लवित और पुष्पित हुआ है। आज जो शिष्ट साहित्य है उसे ऊर्जा लोक-साहित्य से ही प्राप्त हुई है। लोक के मूल पर ही शिष्ट साहित्य का निर्माण होता है। लोक-साहित्य के अनेक कथानक शिष्ट साहित्य की श्रेणी में आ चुके हैं। डॉ. सच्चिदानन्द तिवारी 'आधुनिक हिन्दी कविता में गीति' नामक ग्रन्थ में स्वीकार किया है कि कालान्तर में कला के सहयोग से यही लोक गीत साहित्यिक गीत बन गए। इनमें कवि रुचि प्रधान होने लगी फिर भी इनमें कुछ ऐसी विशेषताएँ रहीं जो इनके आदिम सामाजिक स्वरूप की ओर संकेत करती हैं।
इनके आकार और संस्कार बहुत दिनों तक लोकत गीतों के समान ही बने रहे। इस प्रकार चिन्तन-मनन के परिणामस्वरूप निम्नलिखित तत्त्व दोनों साहित्य में समान रूप से पाए जाते हैं. -
1. लोक-साहित्य में पशु-पक्षी बोलते दिखाई देते हैं और मानव जैसा व्यवहार करते हैं। रामचरितमानस में भी हनुमान, जटायु, मृग आदि ऐसा ही व्यवहार करते हैं। शकुन्तला की विदाई की वेला में जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सभी मनुष्य की भाँति दुःख से व्याप्त हो जाते हैं। पद्मावत में हीरामन तोता अतीत,
वर्तमान तथा भविष्य की बातें बताता है । मध्यकालीन साहित्य में पशु-पक्षियों द्वारा मानव वाणी और मानव आचरण दिखाया गया है।
2. लोकोक्तियाँ और मुहावरे शिष्ट साहित्य में लोक-साहित्य से सीधे ही आया है।
3. लोक गाथा और लोक कथा में जो रूढ़ियाँ मिलती हैं, जो कथा को गति देने में अधिक सहायक होती हैं वही रूढियाँ शिष्ट साहित्य में भी विद्यमान हैं।
4. शिष्ट भाषा को शब्द भण्डार के लिए लोक भाषा की सहायता लेनी पड़ती है। छन्द, अलंकार और रस का परिपाक दोनों में समान रूप से होता है।
5. जीवन की अनुभूतियों का क्षेत्र दोनों में समान है। डॉ. श्रीराम शर्मा की मान्यता है "गेय मुक्तकों की परम्परा पर विचार करें तो विद्यापति से लेकर सन्त कवियों की वाणियों और यहाँ तक की कृष्णभक्त कवियों द्वारा रचित पद्य साहित्य को दूसरे शब्दों में लोक-साहित्य भी कहें तो अत्युक्ति नहीं होगी। वही स्वछन्दता, वही आह्लाद, वही सहजता, वही लोक मानस की अकृत्रिम अनुभूति सब कुछ लोक- - साहित्य जैसा ही तो है। तब शिष्ट साहित्य और लोक-साहित्य का पारस्परिक सम्बन्ध मानने में क्या आपत्ति हो सकती है !"
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