भारतीय साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ : वैष्णव काव्य भारतीय वाक्य की सबसे प्रबल प्रवृत्ति है वैष्णव काव्य, जो उतना ही व्यापक भी है। भारतीय साधना पद्…
भारतीय साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ : प्रेमाख्यानक काव्य अब प्रेमाख्यानक काव्य की परम्परा को लीजिए। वह भी भारतीय भाषाओं में प्रायः समान रूप से व्य…
भारतीय साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ : सन्त काव्य भारतीय वाक्य की तीसरी प्रमुख प्रवृत्ति है सन्तकाव्य। इसकी परम्परा भी प्रायः सर्वत्र व्याप्त है। त…
भारतीय साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ : चारण काव्य दूसरी आरम्भिक प्रवृत्ति है चारण काव्य। यह भी अधिकांश भाषाओं में प्रायः समान है। अपनी प्राचीनता के…
Top 5 Books on Indian  Social Work  Delving into the realm of Indian social work unveils a rich tapestry of literature that illuminates the nation…
भारतीय साहित्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ : नाथ साहित्य सबसे पहली प्रवृत्ति, जो भारतीय वाङ्मय में प्रायः सर्वत्र समान मिलती है, नाथ साहित्य है। दो-चार क…
भारतीय साहित्य के विकास का समानान्तर विकास क्रम आधुनिक भारतीय साहित्यों के विकास के चरण भी समान ही हैं। प्रायः सभी का आदिकाल पन्द्रहवीं शती तक चलता ह…
भारतीय सहित्य की मूलभूत एकता के आधार तत्त्व समान जन्मकाल दक्षिण में तमिल और उधर उर्दू को छोड़ भारत की लगभग सभी भारतीय भाषाओं का जन्मकाल प्रायः समान ह…
भारतीय- देशी भाषाओं के अन्तर्विरोध की समस्या संस्कृत- प्राकृत भाषातन्त्र से जनपदीय भाषाओं का जो अन्तर्विरोध रहा है, उसके अतिरिक्त देशी भाषाओं में आपस…
संस्कृत, प्राकृत भाषा तन्त्र तथा देशी भाषाएँ संस्कृत प्राकृत के भाषातन्त्र से जनपदीय भाषाओं का अन्तर्विरोध अखिल भारतीय है। संस्कृत के साथ- साथ दक्षिण…
भारतीय साहित्य में देशी भाषाओं की प्रतिष्ठा की समस्या भारतीय भाषाओं में साहित्य रचने की प्रक्रिया एक साथ आरम्भ नहीं होती। इसका कारण क्या है? जिन भाषा…
भारतीय साहित्य में भिन्न-भिन्न भाषा-परिवारों के अध्ययन की समस्या अब हम इस समस्या पर विचार करेंगे कि भारत में चार भिन्न भाषा-परिवार विद्यमान हैं। ये स…