पाठ्यक्रम विकास के उपागम - Approach to Curriculum Development

पाठ्यक्रम विकास के उपागम - Approach to Curriculum Development


प्राचीन काल में पाठ्यक्रम का अर्थ कुछ विशेषताओं तक ही सीमित था, परंतु आजकल पाठ्यक्रम के अंतर्गत बालक के सभी अनुभव, क्रियाएँ, विषय तथा जीवन की वास्तविक परिस्थितियाँ आ जाती हैं। इन परिस्थितियों के द्वारा ही शिक्षक बालक की आदतों तथा व्यवहार में परिवर्तन करता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम के प्राचीन और नवीन दृष्टिकोण में बहुत परिवर्तन हो गया है। पाठ्यक्रम के उपागम पाठ्यक्रम के संगठन की विभिन्नता पर आधारित होते हैं। यदि पाठ्यक्रम के संगठन में बालक की स्वाभाविक क्रियाओं आदि को अधिक महत्वा दिया जाता है, तो पाठ्यक्रम बाल केंद्रित हो जाता है। इसी प्रकार जिस पाठ्यकग्रम में अनुभव के आधार पर विषयों का संकलन होता है उसे अनुभव केंद्रित पाठ्यक्रम कहते हैं। पाठ्यक्रम विकास के कुछ महत्वपूर्ण उपागमों की चर्चा यहाँ की जा रही है। 


1. विद्यार्थी केंद्रित पाठ्यक्रम विद्यार्थी केंद्रित पाठ्यक्रम में विषय वस्तु को महत्व न देकर विद्यार्थी को महत्व दिया जाता है। विद्यार्थी की रुचि प्रकृति, क्षमता और आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम का विकास किया जाता है।

विद्यार्थी के व्यक्तित्व के विकास को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से यदि विद्यार्थी की बुद्धि, क्षमता, आयु एवं रुचियों को दृष्टि में रखकर पाठ्यक्रम का निर्माण नहीं किया जाएगा तो विद्यार्थी के व्यक्तित्व का विकास अपूर्ण रहेगा। आजकल आधुनिक शिक्षण विधियों, जैसे- माण्टेसरी पद्धति, किण्ड रागार्टन पद्धति आदि में भी इस प्रकार के पाठ्यक्रम को अपनाने पर बल दिया जाता है।


2. विषय आधारित पाठ्यक्रम विषय आधारित पाठ्यक्रम में सभी विषयों की सामग्री अलग-अलग रखकर पढ़ाई जाती है। पाठ्यपुस्तकें भी अलग-अलग पाठ्यक्रम के विषयों के अनुसार निर्मित की जाती हैं। इन पाठ्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थी विषयों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। आजकल विद्यालयों में उसी प्रकार की पाठ्यपुस्तकें तैयार की जाती हैं। इस प्रकार के पाठ्यक्रम को अपनाने से विद्यार्थी की अपेक्षा विषयों पर अधिक ध्यान दिया जाता है।

पाठ्यक्रम में पुस्तकों को अधिक महत्व देने के कारण इस प्रकार के पाठ्यक्रम को पुस्तक आधारित पाठ्यक्रम भी कहा जाता है। 


3. कुशलता आधारित अथवा शिल्प कला आधारित पाठ्यक्रम वर्तमान समय में भारत में इस प्रकार के पाठ्यक्रम पर बहुत बल दिया जा रहा है। बेसिक शिक्षा द्वारा जिस पाठ्यक्रम को प्रतिपादित किया जाता है, वह शिल्प या कारीगरी आधारित पाठ्यक्रम ही है। शिल्प आधारित पाठ्यक्रम में किसी एक शिल्प को केंद्र में रखकर शिक्षा दी जाती है। इस पाठ्यक्रम में शिल्प को अधिक महत्व दिया जाता है। शिल्प को प्रमुख विषय मानकर अन्य विषयों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता। महत्मा गांधी ने बुनियादी शिक्षा में पाठ्यक्रम को शिल्प आधारित बनाने को कहा है, वे शिक्षा को व्यावहारिक बनाना चाहते थे। विद्यार्थियों के शिल्प कार्य से विद्यालय का व्यय निकल आता है। विद्यार्थी शिक्षा प्राप्तब करने के पश्चात इस शिल्प के ज्ञान से अपनी जीविका चला सकते हैं।


शिल्प के अतिरिक्त पाठ्यक्रम में कला तथा प्रयोगात्मक कार्यों को प्रधानता दिया जाना भी आवश्यक है। विद्यार्थियों को बुनाई, जिल्द बाँधना, लकड़ी का काम, धातु का काम, कुम्हान का काम इत्यादि क्रियाएँ भी सिखाई जा सकती हैं।