वर्तमान अभिजात साहित्य और लोक-साहित्य का अन्तस्सम्बन्ध - Interrelationship of current elite literature and folk literature

वर्तमान अभिजात साहित्य और लोक-साहित्य का अन्तस्सम्बन्ध - Interrelationship of current elite literature and folk literature


किसी भी भाषा का अभिजात साहित्य लोक-साहित्य के प्रभाव से अपने को पृथक नहीं रख सकता। लोक कथाएँ, लोक गाथाएँ एवं लोक-गीतों से प्रेरणा ग्रहण करके ही शिष्ट साहित्य के कला, साहित्य, काव्य एवं महाकाव्य की रचना की जाती रही है। यहाँ तक कि रामायण और महाभारत जैसे अद्वितीय ग्रन्थों के बीज भी लोक वार्ता में उपलब्ध होते हैं। इस प्रकार अभिजात साहित्य की अनेक प्रवृत्तियों का परिचय हमें लोक-साहित्य में मिलता है। लोक-साहित्य की अनेक सहज, स्वाभाविक, मार्मिक एवं प्रभावी उक्तियों एवं अभिव्यंजना पद्धतियों द्वारा अभिजात साहित्य का कोश समृद्ध किया जा चुका है। लोक-साहित्य सदैव साहित्य के लिए उपयोगी रहा है।

वस्तुतः जब लोक मानस परिष्कृत मानस का रूप ग्रहण करता है अर्थात् सहज विश्वास के स्थान पर तर्क और बौद्धिकता की प्रधानता हो जाती है और रचनाकार का वैयक्तिक स्वरूप उसमें स्पष्ट दिखाई देने लगता है तब लोक-साहित्य का स्थान अभिजात साहित्य ले लेता है। इस प्रकार अभिजात साहित्य में वाक्य के उस भाग को ग्रहण कर सकते हैं जो कलात्मक साहित्य कहा जाता है। जब रचनाकार शिष्ट भाव, अभिजात विचार, परिमार्जित भाषा, कलात्मक शैली के आधार पर रचना करने में प्रवृत्त होता है तो वह अभिजात साहित्य की सर्जना करता है।


लोक-साहित्य स्वतः स्फूर्त होता है भावना के स्तर पर और भाषा स्वतः स्फूर्त होती है सहजता के स्तर पर । इस दृष्टि से आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण भी भावनात्मक संवेग का स्वतः स्फूर्त काव्य है। शास्त्रीय नियमों की तूलिका भले ही बाद में चलाई गई हो। जहाँ तक लोकभाषा का प्रश्न है, इसे भला कौन अस्वीकार कर सकता है कि किसी भाषा को प्राणवान् उस भाषा के मुहावरे और कहावतें बनाती हैं। दूसरी बात यह है, लोक-साहित्य मौखिक परम्परा का साहित्य है।

इसका भी गहरा सम्बन्ध अभिजात साहित्य से है क्योंकि यह वैज्ञानिक तथ्य है, कोई भी लिखित शिष्ट साहित्य तभी समृद्ध होगा जब उसकी लौकिक परम्परा समृद्ध होगी। दोनों का गहरा अन्तरसम्बन्ध है।


भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी मौखिक साहित्य परिष्कृत भाषा को गढ़ने में सदैव सहयोगी और उपयोगी रहा है। स्वच्छन्द और स्वतन्त्र रूप से गढ़े गए लोक शब्द ही कलम द्वारा परिनिष्ठित करके शिष्ट शब्द बनाए जाते हैं।