समाज कार्य के सिद्धांत - Principles of Social Work

समाज कार्य के सिद्धांत - Principles of Social Work

समाज कार्य एक व्यावसायिक सेवा है जिसके अंतर्गत समाज कार्य में प्रशिक्षित कार्यकर्ता सेवार्थी (व्यक्ति, समूह और समुदाय) की सहायता के लिए कार्य करता है। वह इस दौरान अपने सेवार्थी को बेहतर सेवा प्रदान करने का प्रयास करता है। समाज कार्य व्यवसाय के कुछ आधारभूत सिद्धांत हैं जिनका पालन करना सामाजिक कार्यकर्ता के लिए आवश्यक माना जाता है-


1-      संचार का सिद्धांत –

 आपस में विचारों का आदान-प्रदान ही संचार है।  जब कार्यकर्ता और सेवार्थी पहली बार मिलते हैं तो ही दोनों के बीच बात-चीत और विचार विमर्श की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और उनमें संचार प्रारंभ हो जाता है। यह संचार किसी भी तरह का हो सकता है जैसे लिखित, अलिखित, मौखिक या सांकेतिक। इसके लिए कार्यकर्ता को चाहिए कि सेवार्थी की ही बोली या भाषा का प्रयोग करे जिससे संप्रेषण आसानी से सेवार्थी तक पहुँच सके। कार्यकर्ता को प्रभावी संचार के माध्यम से सेवार्थी के मानसिक कष्टों का समाधान करना चाहिए।

2-      वैयक्तिकरण का सिद्धांत-

 इसका तात्पर्य है सेवार्थी के विशिष्ट इवान गुणों को ज्ञात करना और सिद्धांतों एवं प्रणालियों के प्रयोग द्वारा प्रत्येक सेवार्थी की अलग-अलग तरीके से सहायता करना जिससे वह अच्छी तरह समायोजित हो सके। प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी रूचि के अनुसार विकास करे। कार्यकर्ता को यह स्वीकार करना होगा कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ ऐसी भी योग्यताएं होती हैं जो दूसरों में नहीं पायी जातीं। 

3-      स्वीकृति का सिद्धांत- 

इसका अर्थ यह है कि सेवार्थी जिस स्थिति में है उसे उसी स्थिति में स्वीकार किया जाए और उसकी वर्तमान स्थिति के अनुसार उसके साथ उससे व्यवहार किया जाए और उसके संबंध में कोई राय बनाई जाए। कार्यकर्ता और सेवार्थी दोनों को एक-दूसरे को स्वीकृति प्रदान करनी चाहिए। कार्यकर्ता को सेवार्थी की नैतिक या अनैतिक किसी भी स्थिति का ध्यान रखे बिना उसे उसकी समस्या के समाधान में सहायता करनी चाहिए। सेवार्थी को जब कार्यकर्ता तथा उसकी योग्यता पर पूर्ण विश्वास होगा तभी वह कार्यकर्ता को सहयोग करेगा। कार्यकर्ता को सेवार्थी की विशिष्टता तथा क्षमता का सम्मान करना चाहिए और उसके लिए एक विशिष्ट समाधान प्रक्रिया अपनानी चाहिए।

4-      गोपनीयता का सिद्धांत- 

सेवार्थी की समस्याएँ व्यक्तिगत होती हैं जिन्हें वह चाहता है कि गोपनीय रखा जाए इसलिए कार्यकर्ता को चाहिए कि सेवार्थी जो भी बात कार्यकर्ता से करे या कार्यकर्ता को जो कुछ भी सेवार्थी के बारे में मालूम हो उसे कार्यकर्ता गोपनीय रखे। अगर ऐसी कोई बात आती है कि सेवार्थी की समस्या का समाधान करने के लिए उसे किसी अन्य विशेषज्ञ से साझा करना आवश्यक है तो तो कार्यकर्ता को सेवार्थी के समक्ष यह स्पष्ट कर देना चाहिए अर्थात सेवार्थी की सहमति आवश्यक है। यदि सेवार्थी गोपनीयता के प्रति आश्वस्त नहीं होगा तो वह अपनी बात रखने में भी संकोच करेगा।

5-      आत्मनिर्णय का सिद्धांत- 

इसे समाज कार्य का प्रमुख सिद्धांत माना जाता है। यह इस बात पर ज़ोर देता है कि किसी भी व्यक्ति को अपने लिए सबसे उपयुक्त का चयन करने का अधिकार है। सेवार्थी को समस्या समाधान के प्रत्येक चरण में उसे आत्मनिर्णय का पूरा अधिकार होता है। इस संदर्भ में कार्यकर्ता को सेवार्थी की सहायता करनी चाहिए जिससे सेवार्थी  उचित निर्णया ले सके। इससे सेवार्थी के आत्म सम्मान एवं आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है।

6-      नियंत्रित संवेगात्मक संबंध का सिद्धांत-

 इसके अंतर्गत इस बात की सावधानी राखी जाती है कि कार्यकर्ता को सेवार्थी को देखकर उससे व्यक्तिगत या भावनात्मक लगाव नहीं रखना चाहिए। क्योंकि कार्यकर्ता एक व्यावसायिक व्यक्ति है इसलिए उसे व्यावसायिक प्रक्रिया का पालन संबंध स्थापन के दौरान करना चाहिए। यहाँ कार्यकर्ता को वस्तुनिष्ठ होने की आवश्यकता रहती है। सेवार्थी की समस्या के संदर्भ में व्यक्तिगत निर्णय नहीं लेना चाहिए। क्योकि अधिक सहानुभूती कार्यकर्ता के आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता में हस्तक्षेप कर सकती है। कार्यकर्ता को परानुभूति का उपयोग करते हुए अपने भावनाओं एवं संवेगों पर नियंत्रण रखना चाहिए तथा व्यावसायिक प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करना चाहिए। सेवार्थी की भावनाओं को व्यावसायिक संवेदनशीलता के आधार पर समझकर व्यावसायिक ज्ञान और उद्देश्य के आधार पर उसका उत्तर देना चाहिए।


7-      अनिर्णयात्मक मनोवृत्ति का सिद्धांत- 

इसके तहत कार्यकर्ता के द्वारा सेवार्थी या उसकी समस्या को देखकर कोई भी निर्णय तुरंत नहीं लेना चाहिए अपितु तब तक कोई किसी नतीजे पर तब टाका नहीं पहुँचना चाहिए जब तक कि सेवार्थी कि समस्या का सही ढंग से अध्ययन और निदान न कर लिया जाय। यह सिद्धांत कार्यकर्ता को सेवार्थी के बारे में कोई भी अतार्किक या अवैज्ञानिक निर्णय लेने से रोकता है।