साक्षात्कार में प्रयोग की जाने वाली प्रविधियॉ - Methods Of Interview.
साक्षात्कार में प्रयोग की जाने वाली प्रविधियॉ -
ऽ पर्यवेक्षण करना
ऽ मौखीकरण
ऽ तार्किक दलील देना
ऽ प्रोत्साहित करना
ऽ सूचना देना
ऽ सामान्यीकरण (सार्वभौमिकिकरण)
ऽ पुनः सुनिश्चित करना
ऽ पृथक्करण (किसी एक पहलू पर केन्द्रीकरण)
ऽ समझाना
ऽ रूचियों का बाह्य प्रकटीकरण करना
ऽ वैयक्तिकरण
ऽ स्रोतों का उपयोग करना (अनतः संबंधों तथा मित्रों से संचार द्वारा)
ऽ परिसीमन ऽ सेवार्थी के विशिष्ट व्यवहारों से उसका सामना करना
ऽ स्पष्टीकरण तथा विश्लेषण करना।
गैरेट ने साक्षात्कार की निम्न प्रविधियों का उल्लेख किया है
1. अवलोकन - विज्ञान का प्रारम्भ अवलोकन से होता है और इसकी पुष्टि के लिए अवलोकन में ही लौटना पड़ता है। अवलोकन का महत्व प्रत्येक प्रकार के साक्षात्कार में होता है। परन्तु वैयक्तिक सेवा कार्य में इसका विशेष ही महत्व है। सेवार्थी क्या कह रहा है उसका अवलोकन करना ही प्रमुख कार्य है। वह क्या नहीं कह रहा है इसका भी अवलोकन आवश्यक है। सेवार्थी का शारीरिक तनाव, उग्रवादिता, मदता, क्षीर्णता, नैराश्य की स्थिति, क्रियाएं, प्रतिक्रियाएं आदि का सम्पूर्ण चित्र खींचना महत्वपूर्ण होता है। अवलोकन इंद्रिय ज्ञान पर आधारित है। साधारणतया चक्षु ज्ञान को ही अवलोकन के अन्तर्गत लेते हैं परन्तु ऐसा नहीं है। देखना तथा अवलोकन में भेद है।
अवलोकन प्रयासयुक्त, ध्यानपूर्ण, निर्वाचित एवं उद्देश्यपूर्ण होता है। इसमें कार्यकर्ता सेवार्थी के व्यवहार का तटस्थ होकर अवलोकन करता है और इस अवलोकन के फलस्वरूप प्राप्त अनुभवों को लिपिबद्ध करता है। वह सूचनाओं का संग्रह करता है। इससे विश्वसनीय सूचनाएं प्राप्त होती हैं क्योंकि प्रश्न पूछने से सवेर्थी अनेक बातें स्पष्ट नहीं करता है। उसे संकोच लगता है।
2. सुनना - अच्छा साक्षात्कार कर्ता वहीं होता है जो सेवार्थी की बात सावधानी पूर्वक तथा धैर्य के साथ सुनता है। बातचीत में बार-बार व्यवधान उत्पन्न करने सेवार्थी शंका करने लगता है और कुछ न पूछने पर या बीच में बात करने पर वह समझता है कि कार्यकर्ता रूचि नहीं ले रहा है। अतः निम्न सावधानी बरतनी चाहिए - 1. सेवार्थी की बात को पूरे ध्यान से सुने। 2. आवश्यक स्थानों पर कुछ कहे। 3. सेवार्थी को एक ही दिशा में बातचीत करने का अवसर दे। 4. जब सेवार्थी अपनी बात कहने में किसी प्रकार की असमर्थता प्रकट करे तो उसको वह दूर करे। 5. सेवार्थी को अपनी भावनाओं को प्रकट होने का अवसर दे।
3. साक्षात्कार - साक्षात्कार में प्रथम कार्य उन स्थितियों तथा साधनों की उपलब्धि करना है जिनमें सेवार्थी आराम का अनुभव कर सके तथा स्वतंत्र रूप से भावनाओं का स्पष्टीकरण कर सके। यह उस समय तक संभव नहीं हो सकता है जब तक साक्षात्कार करने वाला भी स्वयं ऐसा न अनुभव करे। ऐसी स्थिति में उत्पन्न करने के लिए कार्यकर्ता को निम्न कार्य करने चाहिए-
1. सेवार्थी को अधिक इन्तजार न करना पड़े;
2. सेवार्थी के आने पर उसकी रूचि के अनुसार ही वार्तालाप प्रारम्भ करें;
3. उसके आने के कारण को तुरन्त पूछा जाये;
4. उसकी बातें धैर्यपूर्वक सुने;
5. उसकी भाषा व शब्दों का निरादर न करें;
6. प्रश्न को सरल करें;
7. सेवार्थी ही जहां तक संभव हो समस्या समाधाना के लिए सुझाव रखें।
वार्तालाप में शामिल हों