डॉ. रजनीश कुमार शुक्ल, कुलपति (म.गां.अं. हिं. वि.) का गौरवमयी परिचय एवं यात्रा|

Vice Chancellor Rajaneesh Kumar Shukla Introduction.


आपका संक्षिप्त जीवन परिचय इस प्रकार है-
प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल का जन्म 25 नवंबर सन 1966 में गौतम बुद्ध की निर्वाण स्थली उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती जिला कुशीनगर के ग्राम कनखोरिया में हुआ | आपके दादा पूज्य पंडित भोज मणि शुक्ल संस्कृत और पालि व्याकरण के प्रकांड विद्वान और शिक्षक थे | पिता डॉ. जयशंकर शुक्ल ख्यातिलब्ध आयुर्वेद सर्जरी के चिकित्सक शिक्षक थे | दादा ,पिता और माँ तीनों का प्रभाव प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल के जीवन पर परिलक्षित होता है |

संस्कृति पुरुष प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल जी वर्मतमान में महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (केंद्रीय विश्वविद्यालय) के कुलपति हैं और इससे पूर्व भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद तथा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली के सदस्य - सचिव के पद पर कार्यरत थे । आप मूलतः सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में तुलनात्मक धर्म और दर्शन के प्रोफेसर हैं। प्रो. शुक्ल मानते हैं कि मानव जीवन को उदात्त तथा सार्थक बनाने के लिए, धर्म और दर्शन का समावेशी एवं सहभागी होना आवश्यक है |

आपको भारत के माननीय राष्ट्रपति जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की कोर्ट का सदस्य नामांकित किया है । आप हरियाणा राज्य शिक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य रूप में उच्च शिक्षा के पुनर्गठन और सुधार में सफल योगदान दे रहे हैं। आप नई दिल्ली इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, वाराणसी क्षेत्र के सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं।
आपकी शिक्षा महामंगलकारी पूण्यभूमि काशी में जहाँ पर बाबा विश्वनाथ जी विराजमान हैं और जहाँ गौतम बुद्ध ने धर्म चक्र प्रवर्तन किया ऐसी तपोभूमि पर स्थित महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी से स्नातक एवं परास्नातक की उपाधि तथा पंडित मदनमोहन मालवीय की तपःस्थली काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,काशी से दर्शनशास्त्र में, दर्शनशास्त्र के निष्णात विद्वान् गुरुवर प्रो.रेवतीरमण पाण्डेय के सानिध्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्ति की ।

आप 1991 से सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी में तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग में अध्यापन कार्य कर रहे हैं। आप कुशल शिक्षक के साथसाथ दक्ष प्रशासक हैं | आप तीन वर्षों के तीन कार्यकाल पर्यन्त वहाँ विभागाध्यक्ष भी रहे हैं। आप दर्शनशास्त्र संकाय के संकायाध्यक्ष भी रहे हैं। प्रोफेसर शुक्ल द्वारा अब तक सात मौलिक पुस्तकें लिखी गई हैं और आपके सौ से ज्यादा शोध पत्र, आलेख देश और विदेश की विभिन्न शोध आलेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । आप विश्वविद्यालय के कुलसचिव, कार्य परिषद के सदस्य और निदेशक, कॉलेज विकास परिषद और अन्य कई महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं । प्रो.शुक्ल उत्तर प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों के स्नातकोत्तर स्तर के "राष्ट्र गौरव" नामक एक अनिवार्य कार्यक्रम तैयार करने का योगदान दिया है। उन्होंने 'राष्ट्र गौरव' पुस्तक का प्रणयन किया है, जिसे विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा प्रकाशित किया गया है, विशेषतः लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा। आप अखिल भारतीय दर्शन परिषद,दिल्ली की तिमाही शोध पत्रिका दार्शनिक त्रैमासिकके पाँच वर्षों तक मुख्य संपादक, अखिल भारतीय दर्शन परिषद के संयुक्त सचिव भी रहे हैं।

आप अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों में संस्कृति, धर्म ,समाज, दर्शन और शिक्षा पर अनेक लेख और स्तंभ लिखते रहते हैं, जैसे- दैनिक जागरण, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स और राष्ट्रीय सहारा । यह भी उल्लेखनीय है कि आप सिक्किम के प्रथम राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना समिति के सदस्य एवं आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति के सचिव हैं। प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल संस्कृत एवं दर्शन के ख्यात विद्वानों में पूरे देश में परिगणित किये जाते हैं। वह गंभीर समीक्षक,मौलिक चिंतक और तेजस्वी वक़्ता के रूप में समादृत हैं।

प्रोफेसर रजनीश शुक्ल की एक और विशेषता है कि- वे एक कुशल संचालक के रुप में जितने विदग्ध एवं समावेशी हैं, उतने ही वे प्रखर-सम्मोहक वक़्ता हैं । पिछले कई वर्षों में हुए सैकड़ों सम्मेलनों,सेमिनारों में उन्होंने भारतीय दर्शन, संस्कृति, कला एवं इतिहास संकलन, प्रलेखन एवं अनुरक्षण पर संयोजन ,संचालक तथा अध्यक्ष व मुख्य अतिथि आदि पदों से जो वैचारिक व्याख्यान दिये हैं वे उच्च कोटि के हैं। प्रो.शुक्ल सरस्वती के वरदपुत्र ,धर्म,दर्शन तथा भारत विद्या के निष्णात विद्वान माने जाते हैं | उनकी वाणी में भारतीय संस्कृति एवं जीवन मूल्यों में पगे एक चिंतक के विधायी तत्व के दर्शन होते हैं | वह माँ भारती के सच्चे सपूत तथा निष्काम कर्मयोगी हैं | सामाजिक समरसता के पक्षधर प्रो.शुक्ल हिंदू दर्शन विश्व का सर्व श्रेष्ठ दर्शन मानते हैं । प्रो.शुक्ल राष्ट्र की अखंडता के पुजारी हैं तथा वेदांत दर्शन में सभी समस्याओं के निदान की चर्चा भी करते हैं | वह समूचे राष्ट्र को परम वैभव की ओर ले जाना चाहते हैं | प्रो.शुक्ल मानते हैं कि यह तीनों लोक, चौदह भुवन अपना देश है | प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल गांधी ,बिनोवा जी,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार,दीनदयाल जी,श्यामा प्रसाद मुखर्जी , डॉ.भीमराव अम्बेडकर मदनमोहन मालवीय तथा पंडित विद्यानिवास मिश्र जैसे महापुरुषों के जीवन मूल्यों से बेहद प्रभावित हैं। इन सभी महा पुरुषों के जीवन और विचारों से आपने जो अवगाहन किया उससे नये भारत का निर्माण करना चाहते हैं| आपका चिंतन यथार्थपरक है । इसीलिये वह बातचीत में गांधी , बिनोवा, अम्बेडकर,डॉ.हेडगेवार के तपोभूमि की चर्चा करते हुये नहीं अघाते । वह यह भी बताते हैं कि गांधी की ग्राम कल्पना कैसी थी ? विनोबा का जीवन कैसा था ? गांधी जी द्वारा अस्पृश्यता का विरोध,स्वराज्य की प्राप्ति,नमक सत्याग्रह,सत्य और अहिंसा के प्रयोग,चरख़ा,हिन्द स्वराज तथा उपवास आदि की भी चर्चा बड़ी बख़ूबी से करते हैं।प्रो. शुक्ल गांधी के सर्वोदय के लिये अन्त्योदय आवश्यक मानते हैं।इसीलिए गांधी दर्शन आज भी प्रासंगिक है । इसी प्रकार विनोबा जी पर चर्चा करते हैं।वास्तव में देखा जाय तो विनोबा जी गांधी के वास्तविक आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे।प्रो.शुक्ल बिनोवा जी को एक सामाजिक और रचनात्मक कार्यकर्ता के रूप में भी देखते हैं । दीनदयाल उपाध्याय की चर्चा जिस प्रकार से प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल करते हैं वह प्रेरणादायी है । दीनदयाल जी जिस एकात्म मानववाद की विचारधारा देश और दुनिया को दी शुक्ल जी उसकी भी चर्चा करते हैं । दीनदयाल जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष तो थे ही वह राष्ट्रधर्म,पान्चजन्य और स्वदेश जैसी पत्रिकाओं के जनक भी हैं।वह महामानव थे ।उन्होंने भारत की सनातन संस्कृति को एक सूत्र में पिरोने का सार्थक पहल की । प्रो.शुक्ल हिंदी को वह विकासशील भाषा के रूप में देखते हैं और कहते हैं कि साहित्य, सांस्कृतिक परिवेश में विकसित होता है । हिंदी तीस से अधिक देशों में बोली और समझी जाती है । हिंदी मराठी दोनों सगी बहने हैं | संस्कृत को तो जाने बिना भारत को समझा ही नहीं जा सकता। बातचीत में प्रो.शुक्ल संघ पर भी अपनी राय देते हैं और वह कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सबसे पारदर्शी संगठन है।प्रो.शुक्ल हिंदू धर्म को दुनिया में श्रेष्ठतम धर्म मानते हैं । निम्नलिखित पंक्तियाँ प्रो.रजनीश कुमार शुक्ल पर अक्षरशः सटीक बैठतीं हैं -
न हूँ मैं किसी का हठीला विरोधी 
किसी का ख़रीदा हुआ भी नहीं हूँ
 न बंदी किसी बात के बंधनों का

जहां व्योम स्वच्छंद है मैं वही हूँ ।।


मोहि कहाँ विश्राम


लेखक -  प्रकाश त्रिपाठी जी... (आंशिक परिवर्तन किया गया हैं.)