संस्कृत भाषा में अघोष महाप्राण व्यंजन



अघोष महाप्राण व्यंजन - दूसरे कालम के व्यंजन (ख छ ठ थ फ) का उच्चारण उन्हीं स्थानों से होता है जिनसे पहले कालम के व्यंजनों (क च ट त प) का, पर इनके उच्चारण में फेफड़ों की हवा विशेष बल के साथ बाहर निकलती है। यदि आप अपने मुंह के सामने उल्टा हाथ रखकर ख छ ठ थ फ का उच्चारण करे तो आप हवा के इस झोके को स्पष्ट अनुभव कर सकते है। इसी कारण इन व्यंजनों को महाप्राण कहा जाता है। निम्नलिखित शब्दों को पढ़िए:

पाठः, नखः छटा, फेनः, कथा, अतिथि:, नभः- (आकाश), अपि-भी

वन-सारणी प तीसरे कालम के व्यंजन (ग ज ड द व) का उगारण उन्ही खाने से होता है जिनसे पहले कालम के व्यंजनों का। इनके उधारण में गले के की योमे कम्पन होता है जिससे उन योजनाओं के जमारण में एक विशेष गूंज सी उत्पन्न होती है क-ग, प-ब, आदि अक्षरों के जोड़ों का उच्चारण कर आप इस गूँज को अनुभव कर सकते हैं। इस गूँज के कारण ग जउ द ब को घोष संधान संस्कृत-प्रवेश कहा जाता है। निम्नलिखित शब्दों को पढ़िए

गतिः, पादः, देह:, गौ., दुःखी दाता, जगत्, बलम्, दुःखम्।