गैर सरकारी संगठन की समस्याएँ तथा निराकरण (Problems and solution of NGO)
गैर सरकारी संगठन की समस्याएँ तथा निराकरण (Problems and solution of NGO)
गैर सरकारी संगठनों को सरकार की और से वित्तीय सहायता मिलना इनकी परेशानियां खत्म नहीं करता बल्कि उनकी दिक्कतें बढ़ जाती हैं तब जब उन्हें उतनी सहायता नहीं मिलती जितनी उन्हें जरूरत होती है या बीच में वो सहायता बंद हो जाती है। कई बार काम बीच में बंद हो जाता है या दूसरी जगह से सहायता लेने के लिये उन्हें पहला काम अधुरा छोड़ देना पड़ता है। वित्तीय संस्थाओं के अपने नियम और प्राथमिकतायें होती है जो जरूरी नहीं कि संगठनों के हिसाब से हो। इस वजह से काम की निरंतरता और बढ़ोतरी दोनों टूट जाते है।
कई बार संगठनों में नेतृत्व की समस्या आती है मसलन, कई बार शक्ति सम्पन्न व्यक्ति उसके काम को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश करता है। इसमें काम करने वाले व्यक्तियों को काम की शुरुआत करने और फैसले लेने में समस्या आती है। किसी एक व्यक्ति के नियंत्रण के दवाब में सामूहिक कार्य प्रभावित होता है नये सदस्यों को अनसुना किया जाने से और दबा दिये जाने से संस्था के अंदर ही अंदर फूट पड़ने लगती है और अलग-अलग समूह बनने लगते है। कई बार वित्तीय कमियों की वजह से अच्छे कार्यकर्ता नहीं मिलते और संगठन को कम पैसों में कम अच्छी तरह काम करने वालों से काम चलाना पड़ता है जिसमें उन्हें मनोवांछित परिणाम नहीं मिलते और संगठन ज्यादा ऊपर नहीं उठ पाते। कुछ लोग सच में काम करना चाहते है मगर कुछ दूसरा अच्छा अवसर मिलने तक जो पैसे मिल हों उसी में काम चलाने के लिये काम कर रहे होते हैं जिससे किसी भी संगठन का विकास प्रभावित होता है। खराब तरह से अभिलेख का प्रबंधन भी काम को प्रभावित करता है। ज्यादातर स्वैच्छिक संगठन में प्रशासकीय और तकनीकी योग्यता की कमी होती है जिससे वो अच्छा प्रस्ताव नहीं बना पाते और उन्हें उचित धन मुहैया नहीं हो पाता हैं। इसके अलावा नेताओं और अफसरों से भी उचित सहायता नहीं मिल पाने के कारण ये संगठन अच्छा उद्देश्य होने के बावजूद काम नहीं पाते। जिला स्तर पर या उससे निचले तबके पर जो मुखिया होते हैं वो भी इन संगठनों को काम ठीक से नहीं करने देते ताकि कोई उनसे ऊपर ना हो जाये और उनकी मनमानी चलती रहे। कई बार सिर्फ पन्नों पर चलने वाली संस्थाएं अपने राजनीतिक जो तोड़ की वजह से आर्थिक मदद ले लेते हैं और काम नहीं करते जिस वजह से वास्तव में काम करने वाली संस्थाएं भी बदनामी होती हैं। ये अब सभी जानते हैं कि कुछ नेता और राजनीतिक दल गैर सरकारी संगठन के नाम पर ध्यान दिया जाना चाहिए ।
सन् 1980 में एक अभियान चलाया गया, एक स्वैच्छिक कार्यकारिणी गठन करने के प्रयास किए गए। जिसे भारतीय स्वैच्छिक कार्यकारिणी का नाम दिया गया और इसका मुख्य कार्य एक सुलझी नीति का निर्धारण करना तय किया गया और इसे इस कार्यकारिणी की आचार संहिता के अर्न्तगत माना गया और निम्न उद्देश्यों को लक्षित किया गया:
1. उपयुक्त संस्था का चुनाव जिसे धन मुहैया कराया जा सके।
2. सरकारी धन का उपयुक्त प्रयोग
3. अधिकारी का उचित इस्तेमाल
4. छोटे स्तर पर कार्यरत संस्थाओं की पहचान कर उन्हें आगे बढ़ने, इत्यादि ।
गैर सरकारी संगठनों में आने वाली समस्याओं का सामना करने के लिये एवं उनके निराकरण करने के लिए कुछ कार्य किये जा सकते है जैसे कि - नेतृत्व करने वालो को अपने विचारों और शब्दों का मान रखते हुए पूरी निष्ठा से इन संगठनों को चलाना चाहिए। गरीबों की समस्याओं को अच्छी तरह से समझने के लिये व्यवसायियों और उद्योगपतियों को भी पूरी निष्ठा के साथ अपने वादों को निभाना चाहिए। जिस प्रकार से नौकरशाही स्वयंसेवी संस्थाओं से व्यवहार करती हैं उनमें एक तीव्र बदलाव की आवश्यकता है। और इसी परिवर्तन के पश्चात सभी संस्काएँ प्रगतिशील तथा प्रभावशीली तरीके से अपने अपने लक्ष्यों की प्रगति की ओर बढ़ जाएगी।
वित्तिय सहायताओं को और अधिक विज्ञापित किया जाना चाहिए और इनके लिए जो आवेदन करने वाली संस्थाएं हैं उनकी सहायता करने के लिए प्रशिक्षित सहायक होने चाहिये क्योंकि ज्यादातर छोटी और नई संस्थाओं और संगठनों को अनुभव की कमी होती है।
इस वजह से वित्तिय सहायताओं का उपयोग ही नहीं हो पाता जो सरकार की ओर से होती हैं अतः ऐसी जगहों में गैर सरकारी संगठनों के निर्माण एवं संचालन के लिये उचित प्रचार होने चाहिए। वित्तिय सहायताओं को देने का तरीका आसान और सरल होना चाहिए तथा वक्त की अहमियत को ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि संगठन अपने कर्मचारियों को वक्त पर वेतन दे सके और सुचारू रूप से कार्य ले सकें। धन की कमी से कार्य में अड़चन भी आती है।
एन० जी० ओ० को लगातार अपने ढांचे को सुधारने में भी लगाना चाहिए ताकि वो ना सिर्फ समस्याओं का समाधान करें खुद की तरक्की करें और और अधिक व्यापक स्तर पर कार्य कर सकें। लोगों को जागरूक करें और समस्याओं के प्रति और संवेदनशील बनाये।
संगठनों को कार्य करने के लिए प्रशिक्षित लोगों को रखना चाहिए क्योंकि सिर्फ प्रेरणा से काम नहीं बनता, अतः प्रशिक्षण भी नियमित रूप से जरूरी हैं। बड़े संगठनों को अपने कार्यकर्ताओं के लिये एक आर्थिक प्रबंधन नीति अपनानी चाहिए।
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