एन.जी. ओ. के रणनीतिक लक्ष्य - Strategic goals of NGO



एन.जी. ओ. के रणनीतिक लक्ष्य (Strategic goals of NGO)

संगठन के मिशन को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य का निर्धारण भी रणनीतिक नियोजन का महत्वपूर्ण आयाम है । इसके लिए संगठन के दीर्घकालिक दृष्टिकोण एवं उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए । संगठन के लक्ष्य को निर्धारित करते समय आवश्यक है कि उसे विभिन्न चरणों में विभाजित कर लें या दीर्घकालिक एंव लघुकालिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भी लक्ष्यों का निर्धारण कर सकते हैं

किसी संगठन के लिए रणनीतिक नियोजन करते समय हमें सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि संगठन की वर्तमान में स्थिति क्या है। इसको समझने के लिए विभिन्न तरीके हो सकते हैं इनमें से एक तरीका है SWOT विश्लेषण जिसमें संगठन की क्षमता, उसकी कमजोरी, उसको प्राप्त सुविधाएँ / अवसर खतरा (Threat ) साथ ही यह भी आवश्यक है कि राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक एवं प्रौद्योगिक पक्षों का अध्ययन भी संस्था के लिए रणनीतिक नियोजन बनाने में महत्वपूर्ण है। इससे हम संगठन पर पड़ने वाले बाह्य कारकों के प्रभावों को भली भांति समझ सकते हैं। साथ ही एन. जी. ओ. के विशेष सन्दभों में यह भी महत्वपूर्ण है कि हमें वैधानिक एवं पर्यावरणीय पक्षों को भी पर्याप्त महत्व देना चाहिए।

रणनीति की परिभाषाए जो प्रबन्धन से प्रयोग की जाती हैं की व्याख्या हम चार श्रेणियों नियोजन, प्रारूप स्थिति एवं परिप्रेक्ष्य के अन्तर्गत कर सकते है। नियोजन श्रेणी के अर्न्तगत रणनीति का निर्धारण करते समय हम इस पर विचार करते हैं कि कैसे हम वर्तमान स्थिति से लक्ष्य तक पहुंच सकते है।


प्रारूप: इस श्रेणी के अर्न्तगत हमारे द्वारा जो कि निश्चित समय में की जाती है स्थिति :- किसी विशेष क्षेत्र में कार्य करने के निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए संस्था की स्थिति के निर्धारण हेतु भी उपयुक्त रणनीति आवश्यक है,सम्मिलित होती है।


परिप्रेक्ष्य :- कोई संस्था कहां पहुंचना चाहती है इसके लिए महत्वपूर्ण है कि उसकी दिशा एवं लक्ष्य स्पष्ट हों अतः आवश्यक है कि दिशा एवं लक्ष्य का निर्धारण निश्चित रणनीति के तहत किया जाए। रणनीति की व्याख्या सामान्य रूप से दिए गए उददेश्यों की प्राप्ति हम कैसे कर सकते है के रूप में की जी सकती हैं परिणामस्वरूप रणनीति सामान्य रूप में लक्ष्य और साधनों के बीच तारतम्यता को दर्शाती है या दूसरे शब्दों में उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से किस प्रकार अपेक्षित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं यह बताती है। संस्था की स्थापना करते समय और इसकी रणनीति का निर्धारण करते समय कुछ आधारभूत प्रश्न करने चाहिए जो कि निम्न है।

(क) मिशन और विजन (दृष्टि) के सम्बन्ध में -


1. हम कौन है ?


2. हम क्या कर रहे हैं ?


3. हम क्यों कर रहे हैं ?


4. हमारी संस्था किस प्रकार की है ?


5. हम अपनी संस्था को कहां देखना चाहते हैं।






(ख) संस्था के सम्बन्ध में सामान्य रणनीति का निर्धारण करते समय भी हमें कुछ प्रश्न ध्यान में रखना चाहिए:


1. संस्था का उद्देश्य क्या है?


2. संस्था का लक्ष्य क्या है? 


3.संस्था की वर्तमान रणनीति क्या है।


4. संस्था के पास उपलब्ध संसाधन क्या हैं?


5. संस्था के लक्ष्य जो हम पाना चाहते हैं उसके लिए कौन सी कियाएं आवश्यक


6. हमारे द्वारा सम्पन्न क्रियाएं कहां तक उपलब्ध साधनों में की जी सकती हैं। जोखिम की पहचान और उनमें भी सबसे ज्यादा जोखिम की पहचान।


7. जोखिम की पहचान और उनमें भी सबसे ज्यादा जोखिम की पहचान।


(ग) कॉर्पोरेट रणनीति के सम्बन्ध में :


1. वर्तमान रणनीति क्या है?


2. वर्तमान में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक क्षेत्र में क्या घटित हो रहा है तथा इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है ? 


3. किस क्षेत्र में कार्य किया जाना चाहिए साथ ही भौगोलिक क्षेत्र की पहचान जहां कार्य करना है।


मिशन – किसी संस्था का मिशन ही यह निर्धारित करता है कि वह क्यों है। संस्था के मूल संस्थापकों का इसको स्थापित करने के पीछे मंशा क्या थी। वे इस संस्था की स्थापना कर क्या प्राप्त करना चाहते है। इसको भी निष्चित समयान्तराल पर पुर्नावलोकित किया जाना चाहिए यह संस्था की गत्यात्मकता के लिए आवश्यक है।


मूल्य - किसी भी संस्था का मूल्य जो भी कुछ हम करते है में भी परिलक्षित होता हैं यह न केवल संस्था के सार्वजनिक कार्यक्रमों बल्कि वह किस प्रकार से इनको क्रियान्वित करती है में भी परिलक्षित होता है। मान लें कोई संस्था का प्राथमिक मूल्य लोगों तक पहुँच बढाना है तो यह संस्था जब कोई कार्यक्रम नियोजित करती है तो वह विचार करती है कि किस प्रकार लोगों तक पहुँच बढ़ाने में आने वाले अवरोधों को दूर किया जाए साथ ही लोगों की भागीदारी कैसे सुनिश्चित की जा सके।


विज़न - किसी संस्था का विजन उसको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी किसी संस्था का विजन एक मुख्य प्रेरक की भूमिका भी अदा करता हैं इसके बिना कोई भी संस्था आगे नहीं बढ़ सकती है। किसी संस्था के विज़न, मिशन और नियोजन के बीच सम्बन्ध को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें तीन मुख्य बिन्दुओं की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहिए। ये है इनके बीच अन्तः सम्बन्ध स्थायित्व, और इनकी विशिष्टता।






अन्तः सम्बन्ध :- किसी संस्था का विजन भविष्य के लिए आदर्श दृष्टि प्रदान करता है। मिशन उन प्रश्नों का उत्तर सुझाता है तो संस्था की रणनीति और निर्देशित सिद्धान्तों से सम्बन्धित है। नियोजन उन विशिष्ट उक्तियों को सुझाता है जो मिशन के लिए सहायक है और संस्था के विजन को प्राप्त करने में सहयोग करता है। इस प्रकार ये तीनों परस्पर सम्बन्धित है।


स्थायित्व – विजन- मिशन नियोजन के बीच में स्थायित्व की दृष्टि से सम्बन्ध कमशः स्थायी से निरन्तर परिवर्तनशील का होता है। नियोजन में गत्यात्कता सर्वाधिक होती है। क्योंकि परिस्थिति एवं समय के साथ मांग अनुरूप नियोजन में परिवर्तन आवश्यक है। मिशन में नियोजन के मुकाबले ज्यादा स्थायित्व देखने को मिलता है परन्तु निश्चित समयान्तराल पर इसमें में भी परिवर्तन सामाजिक आर्थिक, राजनैतिक कारकों के प्रभाव स्वरूप आवश्यक होता है।


विशिष्टता :- विज़न को सामान्य रूप में व्याख्यायित किया जाता है जबकि संस्था का मिशन ज्यादा विशिष्ट होता है। नियोजन में समय और प्रणाली के सम्बन्ध में विशिष्टता ज्यादा होती है।


रणनीति नियोजन संगठन के विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होता है, इसमें निम्नलिखित शामिल है।


1. संगठन के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप में परिभाषित करना और उसके अनुसार संगठन के लक्ष्य और उददेश्यों को निर्धारित समय और संसाधनों के माध्यम से हासिल करना।


2. संगठन के अनुषंगियों को लक्ष्य और उद्देश्यों के बारें में अवगत कराना।


3. यह सुनिश्चित करना कि संगठन के संसाधनों का प्रभावी उपयोग हो सके। 


4. आधार उपलब्ध कराना जहां से प्रगति का मापन हो सके और ऐसी प्रणाली स्थापित करना जिसके माध्यम से होने वाले परिवर्तनों के बारे में लोगों को अवगत कराया जाए। 


5. प्रत्येक व्यक्ति की क्षमताओं का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करना साथ ही संगठन क्या लक्ष्य हासिल करना चाहता है उस पर सर्वसम्मति बनाना। 


6. क्षमता और प्रभाविकता को बढ़ाते हुए सकारात्मक प्रगति हासिल करना ।


किसी भी संगठन की रणनीति नियोजन उसकी प्रकृति और आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।