जनसंचार का लक्ष्य - Goal of Mass Communication

जनसंचार का लक्ष्य - Goal of Mass Communication


जनसंचार सामाजिक सन्दर्भों से जुड़ा है। जनसंचार यदि समाज के विकास से जुड़ा है तो यह समाज के विकास को भी प्रभावित करता है। जनसंचार ने हमारे जीवन के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पक्षों को प्रभावित किया है। जनसंचार ने सूचना के अधिकार का विस्तार किया है, जिससे लोगों में राजनीतिक जागरूकता आई हैं। यद्यपि राजनीतिज्ञों ने जनमत को अपने पक्ष करने के लिए अपने राजनीतिक हितों के प्रचार के लिए सदैव मीडिया के संसाधनों का प्रयोग किया है, उदाहरणतः हम पाते हैं कि सारा विश्व समाचारों के लिए आर्थिक दृष्टि से और संसाधनों की दृष्टि से सशक्त देशों-अमेरिका और यूरोप पर निर्भर है। इन देशों की समाचार एजेंसियों द्वारा प्रेषित समाचारों के ही सहारे से जानकारियाँ पा सकते हैं क्योंकि विकासशील देशों के पास विकसित देशों के समान सशक्त संसाधन नहीं है। हमारे देश में भी समाचार पत्रों पर औद्योगिक घरानों का वर्चस्व रेडियो, टीवी आदि में सरकारी नियन्त्रण है। जनसंचार के द्वारा राजनीतिक लक्ष्यों को तीव्र और प्रभावशाली रूप में पूरा किया जा सकता है त राजनीतिक लक्ष्य का यह प्रयास भी होता कि लोगों को विकल्प का मौका दिये बिना उन्हें अपने विचारों के जाल में फैसा दिया जाए। जनसंचार राजनीतिक विश्वम को फैलाने का हथियार भी बन सकता है। यह तो जनता के विवेक पर है कि वह किसी भी संदेश के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू को समझे और उनसे प्रभावित हो।


इस इकाई के आरम्भ में हम पढ़ चुके हैं कि जनसंचार के माध्यमों का अधिकाधिक विस्तार व्यापार के कार्यों के लिए हुआ था। स्पष्ट है कि जनसंचार के माध्यमों का उपयोग सिर्फ राजनीतिक लक्ष्यों के लिए ही नहीं हुआ अपितु आर्थिक लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से हुआ समाचार पत्रों द्वारा राजनीतिक प्रचार के साथ साथ व्यापारिक गतिविधियों को भी प्रसरित किया गया आज विज्ञापनी दुनिया ने किस प्रकार अर्थपक्ष को प्रभावित किया है, यह सभी को ज्ञात है। बाजार की शक्ति स्थापित करने में, उपभोक्तावाद को बढ़ावा देने में पूंजी को केन्द्रीकृत करने में जनसंचार माध्यमों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।


सामाजिक क्षेत्र पर तो जनसंचार का प्रभाव बहुत गहरा है। एक समय था जब विदेश जाने पर लोगों का अपने सम्बन्धियों से सम्पर्क नहीं हो पाता था या बमुश्किल होता था, फिर चिट्ठियों द्वारा यह सम्पर्क कुछ सम्भव हुआ, फिर तार, टेलीफोन, आदि के द्वारा सम्पर्क सूत्र बढ़ने लगे और अब ई-मेल चैटिंग, टेली कॉन्फ्रेंसिंग आदि के द्वारा एक दूसरे से बात करना इतना सहज हो गया है, जैसे आमने-सामने बात करना यानी जनसंचार ने दुनिया को बहुत छोटा बना दिया है। हमारे दैनन्दिन जीवन में जनसंचार माध्यमों ने इतन सशक्त ढंग से प्रवेश कर लिया है कि अब उनके बिना जीवन की कल्पना सम्भव नहीं है। प्रातःकाल से रात्रि तक अखबार फोन, मोबाइल, कम्प्यूटर, इन्टरनेट आदि हमारी पहुँच के दायरे में रहते हैं। एक मोबाइल से अब हमारा काम नहीं चलता दो सिम वाले मल्टी सिम वाले फोन आसानी से बाजार में उपलब्ध हैं। ये माध्यम हम तक सूचना पहुंचाते हैं, हमे ज्ञान-विज्ञान के विविध रूपों, क्षेत्रों से परिचित कराते हैं। हमारी अभिरुचियों, प्रस्तुतियों तरीकों शैलियों को भी जनसंचार ने प्रभावित किया है। जनसंस्कृति और आभिजात्य संस्कृतियों के अन्तराल को कम करने कार्य जनसंचार ने किया है। जनसंस्कृति मूलतः वेशभूषा, परम्पराएँ, संगीत, नृत्य, लोककथाएँ आदि के आधार पर निधारित होती हैं, जनसंचार के संसाधनों ने स्थान-स्थान की जनसंस्कृति से हमारा परिचय कराया है। इससे एक और हमें अन्य संस्कृतियों के वैशिष्ट्य से परिचित कराकर हमारी सांस्कृतिक अभिरुचियों को विस्तृत किया है तो हमारी मूल संस्कृति को विकृत करने में भी योगदान किया है। उदाहरण स्वरूप हम अपनी कुमाउँनी अथवा गढ़वाली संस्कृति को देखें तो पाते हैं कि अब कुमाउँनी या गढ़वाली बोलने वालों की संख्या विशेषतः शहरी क्षेत्रों में बहुत कम होती जा रही है, हमारी पारम्परिक पोशाक भी अब बहुत कम या परिवर्तित रूप में दिखाई देती है, हमारे अनेक व्यंजन अब जनमानस से लुप्त हो रहे हैं, लोकगीतों में भी परिवर्तन हुए हैं। दूसरी ओर नये नये व्यंजन, नई-नई वेशभूषाएँ हमें देखने को मिलती है। स्पष्ट कि जनसंचार के माध्यम विभिन्न संस्कृतियों को एक दूसरे के नजदीक लाते हैं। 'कल्चरल एक्सचेंज' शब्द का प्रचलन जनसंचार की ही देन है। जनसंचार ने लोकसंस्कृति को विश्वमंच पर प्रस्तुत किया है तो दूसरी ओर अपसंस्कृति को भी लोकप्रिय बनाया है जहाँ पहले लोग अपनी संस्कृति से ही जुड़ते थे, वैवाहिक सम्बन्धों में वे अपने दायरे से बाहर नहीं निकलते थे, आज भी हमें ऐसे उदाहरण मिलते है कि अपने दायरे से बाहर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने वाले समाज द्वारा बहिष्कृत कर दिये जाते हैं, परन्तु अब यह दायरा धीरे-धीरे बढ़ रहा है और हम तमाम दूसरी संस्कृतियों को अपनाने लगे हैं।

संक्षेप में जनसंचार के लक्ष्य इन क्षेत्रों से सम्बद्ध हैं-