सामाजिक नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ - Salient Features of Social Planning

सामाजिक नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ - Salient Features of Social Planning

 सामाजिक नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ - Salient Features of Social Planning


1) निश्चित लक्ष्य


सामाजिक नियोजन का लक्ष्य निश्चित होता है। विकासशील देशों में नियोजन का लक्ष्य मुख्यतः उत्पादन बढ़ाना, प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग करना उत्पादकता बढ़ाना अतिरिक्त जनशक्ति का समुचित उपयोग करना तथा आय में समानता लाना होता है।


2) आधारभूत लक्ष्यों की प्राथमिकता  


सामाजिक नियोजन समाज की मूलभूत लक्ष्योंकी प्राथमिकता तय की जाती है। खासतौर से विकासशील देशों में आवश्यकताएँ अधिक होती है तथा संसाधन सीमित होते हैं इसके कारण नियोजकों द्वारा प्राथमिकता का निर्धारण किया जाता है। नियोजन का प्रमुख लक्ष्यकृषि एवं उद्योगों में समन्वय करना तथा आत्मनिर्भर बनाना होता है। आयात कम करने एवं निर्यात को बढ़ावा देते हुए उद्योगों को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। मानवीय संसाधनों के विकास हेतु समुचित साधनों का प्रयोग करते हुए इनको उचित स्था प्रदान किया जाता है।


3) आर्थिक एवं सामाजिक उत्पादकता में वृद्धि


सामाजिक नियोजन में आर्थिक एवं सामाजिक उत्पादकता में वृद्धि लाने का प्रयास किया जाता नियोजन में आर्थिक उत्पादकता जैसे कृषि क्षेत्र, उद्योगों को बढ़ावा तो दिया जाता ही है साथ ही सब असामाजिक तत्वों को नष्ट कर सामाजिक तत्वों को सबल एवं कार्यात्मक बनाने की भरपूर कोशिश की जाती है।


4) अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन योजनाएँ


सामाजिक नियोजन के अंतर्गत अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन योजनाएँ तैयार की जाती है क्योंकि अल्पकालीन योजनाएँ प्रायः वार्षिक होती है जबकि दीर्घकालीन योजनाएँ लम्बी अवधि तक चलती है। सामाजिक नियोजन में समय महत्वपूर्ण होता है। भारत में सामाजिक नियोजन के लिए योजना आयोग बनाया गया था जिसके माध्यम से पंचवर्षीय योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जाती थी लेकिन जनवरी 2015 से नीति आयोग योजनाओं के निर्माण हेतु कार्य कर रहा है।


5) साधनों का समुचित वितरण


समाज में साधनों के अभाव को दूर करने के लिए या अभाव के कारण उत्पन्न आवश्यकता की पूर्ति के लिए नियोजन की आवश्यकता पड़ती है। नियोजित व्यवस्था में साधनों का वितरण इस प्रकार किया जाता है कि न्यूनतम साधनों के माध्यम से अधिकतम क्षेत्रों के सभी व्यक्तियों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके। 


6) जन सहभागिता का होना 


नियोजन के लिए जनसहभागिता आवश्यक है। नियोजन में उन समूहों और वर्गों की सहभागिता होनी चाहिए जिन वर्गों के लिए नियोजन किया जाता है। नियोजन के फलस्वरूप इन वर्गों की स्थितियों में परिवर्तन लाने की कोशिश की जाती है। बिना जनसहभागिता के परिवर्तन का महत्व नहीं बढ़ सकता तथा उसका स्वागत नहीं हो सकता।


7) स्थितिपरक विश्लेषण 


क्रमबद्ध नियोजन मौजूदा स्थिति समस्या के विश्लेषण पर आधारित है। स्थितिपरक विश्लेषण द्वारा समस्याओं की पहचान करने में और उन्हेंप्राथमिकता देने में भी सहायता मिलती है। अत: नियोजन आनुमानिक स्थिति पर नहीं बल्कि ठोस तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित होता है।


8) नियोजन एक चिंतन प्रक्रिया है


योजना बनाने के लिए संकल्पनात्मक कौशल का होना आवश्यक है क्योंकि यह एक बौद्धिक प्रक्रिया है। इसके लिए सोच-विचार, कल्पनाशक्ति और दूरदर्शिता राय कायम करने, विचार पैदा करने और भविष्य की स्पष्ट छवि सर्जित करने की योग्यता का होना आवश्यक है। नियोजन का एक महत्वपूर्ण पहलू दूरदर्शिता अवसरों और चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाना और यह पता लगाना है कि भविष्य में कौन-कौन सी समस्याएं हो सकती हैं और इनसे निपटने के तरीके कौन से हैं।


9) निर्णय लेने की प्रक्रिया


नियोजन, निर्णय लेने की प्रक्रिया है। प्रासंगिक जानकारी की उपलब्धता पर निर्णय की गुणवत्ता आधारित है। नियोजन के अंतर्गत उचित सूचना प्रणाली का होना अनिवार्य है ताकि समुदाय के हित के लिए सही निर्णय लिया जा सके। निर्णय किसी भी स्तर पर लिए जा सकते हैं, सामुदायिक स्ता, परियोजना स्तर खंड स्तर या अन्य स्तर। इस प्रक्रिया में समुदाय में ऐसी क्षमता बनाने का प्रयत्न करना चाहिए ताकि वे अपनी बेहतरी के लिए खुद सही निर्णय ले सकें। यह तभी संभव है जब कार्यक्रम की नियोजन प्रक्रिया में प्रारंभ से ही समुदाय को भी शामिल किया जाए।


10) नियोजन 


एक गतिशील प्रक्रिया है नियोजन एक गतिशील प्रक्रिया है जब आप किसी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम की योजना बना रहे हो तो आपसे संपूर्ण उपागम को अपनाने की आशा की जाती है। जिसका अर्थ है कि अस्पताल आधारित उचित सेवाएं प्रदान करने या प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच स्थापित करने पर ही स्वास्थ्य निर्भर नहीं करता। ऐसे बहुत से अन्य कारक भी है जो स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और इसका संवर्धन करते हैं जैसे कृषि पर्यावरण और स्वस्थ्य सामाजिक व्यवहार। इसलिए यह निश्चित है कि स्वास्थ्य की योजना अलग से नहीं बनाई जा सकती क्योंकि ऐसे बहुत से अन्य संबंधित कारक भी हैं जिन्हें ध्यानपूर्वक समझने की आवश्यकता है।