वैश्वीकरण के दुष्परिणाम - Bad effects of Globalization

वैश्वीकरण के दुष्परिणाम - Bad effects of Globalization

वैश्वीकरण के दुष्परिणाम - Bad effects of Globalization

वैश्वीकरण का नियोजन केवल लाभ की दृष्टि से किया गया था परंतु इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं जो इस प्रकार हैं।


1. भारतीय महिलाओं पर प्रभाव भारत की सामाजिक व्यवस्था सदैव से पितृसत्तात्मक रही है और यह इसी का परिणाम है कि जनसंख्या की संरचना में प्रति1,000 पुरुष पर महिलाओं की संख्या 993 है। यह लिंग अनुपात में विभेद महिलाओं की निम्न दशा का परिचायक है। वैश्वीकरण के कारण अनेक उद्योगों में पुरुष कामगारों की तुलना में महिला कामगारों को कम मजदूरी प्राप्त होती है। घरेलू उद्योग धंधों में भी यह भेदभाव दृष्टिगोचर होता है। साथ ही वैधकरण के दौर में लालची प्रवृत्ति का भी चलन आम हो गया है। दहेज जहा तथाकथित उच्च जातियों में ही प्रचलित था, वहीं आज यह निम्न जातियों में भी देखा जा रहा है।


2. दलित, अनुसूचित व पिछड़ी जातियों पर प्रभाव भारतीय जाति व्यवस्था में सदैव से संस्तरण व्याप्त रहा है और इसमें अवस्थित दलित जातियों के प्रति उपेक्षित नजरिया रखा जाता रहा है। संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों का लाभ समाज के धनी वर्गों को होता है और गरीब वर्ग इसके लाभ से वंचित रह जाता है। इस गरीब वर्ग में अधिकांशतः दलित और हाशिए के लोग हैं। 75 प्रतिशत से अधिक दलित कृषि कार्यों में संलग्न हैं और शहरी क्षेत्रों में इनमें से अधिकतर असंगठित क्षेत्रों में काम करके जीविका कमाते हैं। नवीन आर्थिक नीति के तहत भूमि सुधार को अपनाया गया है, जिससे दलितों को हानि होगी, क्योंकि वे राज्यों की भावी कार्ययोजना से बाहर हो जाएंगे।


3. जनजातियों पर प्रभाव जनजातियों के कल्याणकारी व्यय में कटौती, सार्वजनिक क्षेत्रों में निजीकरण का बढ़ता महत्व, कृषि क्षेत्रों में निवेश में कमी, सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में अव्यवस्था आदि के कारण जनजातियों में असंतुष्टि की भावना का जन्म हो रहा है। विकास के नाम पर उनको उनके ही निवास स्थान से विस्थापित किया जा रहा है और प्राकृतिक संसाधनों का पुरजोर दोहन किया जा रहा है। दोहन के साथ-साथ जनजातियों को इन संसाधनों के प्रयोग से वंचित रखा जा रहा है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न इन परिवर्तनों ने जनजातियों के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया।


4. अल्पसंख्यकों पर प्रभाव 90 के दशक अर्थात जिस दशक में भारत में वैश्वीकरण का प्रादुर्भाव हुआ, इस दशक से अल्पसंख्यकों के साथ अनेक हिंसात्मक घटनाएं घटी। इन घटनाओं ने भारतीय समाज को विघटित करने का काम किया है और इन घटनाओं के ही परिणामस्वरूप कई आतंकवादी गतिविधियां अस्तित्व में आई हैं। वैश्वीकरण ने जाति और धर्म को सीमाओं को तोड़ा है, परंतु साथही-साथ समाज के कमजोर वर्ग के लिए यह घातक भी है। यह एक छोटे से समूह का प्रतिनिधित्व करता है और एक बड़े समूह की उपेक्षा करता है।


5. खुदरा बाजार पर प्रभाव- वैश्वीकरण के कारण बड़े व्यापारियों और कंपनियों को बहुत लाभ मिला है और सभी क्षेत्रों में उनके लिए आवश्यक दशाएँ भी उपलब्ध हुई है वही इसके विपरीत अब बड़े व्यापारी बाजार में उपलब्ध होंगे तो स्वाभाविक सी बात है कि खुदरा व्यापारियों अथवा छोटे व्यापारियों का नुकसान होगा। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े व्यापारियों से प्रतिस्पर्धा करना उनके सामर्थ्य से बाहर की सोच है, क्योंकि वे पूंजी उत्पादन साधन, मशीनों आदि में बहुत पिछड़े हुए हैं।