कार्य का सीमांतीकरण - Marginalization of Work

कार्य का सीमांतीकरण - Marginalization of Work

भारत की जनगणना द्वारा प्रमुख कामगारों को लोगों के उस रूप में विश्लेषित किया जाता है, जिसमें वे लोग वर्ष में कम से कम 183 दिन कार्य करते हैं और इससे कम दिनों में काम करने वाले कामगारों को सीमांत श्रमिक की संज्ञा दी गई है। यदि कार्यबल में सीमांत श्रामिकों के अनुपात में बढ़ोतरी होती है तो इस पूरी प्रक्रिया को सीमांतीकरण के नाम से जाना जाता है। अर्थात् यदि सार रूप में कहा जाए तो एक वर्ष में 183 दिनों से कम दिन कार्य करने वाले श्रमिकों के अनुपात में यदि वृद्धि दर्ज की जाए तो इसे सीमांतीकरण कहा जाता है। यह अवस्था मूल रूप से रोजगार की स्थिति और श्रमिकों की आर्थिक स्थिति में सामान्य अवनति को प्रदर्शित करती है। 1991 से 2001 के दौरान प्रमुख कामगारों का प्रतिशत 34.1 प्रतिशत से घटकर 30.5 प्रतिशत हो गया और इस कमी के कारण सीमांत श्रमिकों का प्रतिशत


भाग 3.4 प्रतिशत से बढ़कर 8.8 प्रतिशत तक पहुँच गया। रोजगार और बेरोजगारी 1993-94 से 1999-2000 के दौरान उदारीकरण के प्रभाव को विश्लेषित किया जा सकता है। इस दौरान ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में पूर्व के अनुपात की अपेक्षा रोजगार की समग्र वृद्धि शहरी




अवधि


1983 से 1987-88


1987-88 से 1993-94


1993-94 से 1999-2000