विभिन्न धर्म और समाज कार्य - Various religions and social work

विभिन्न धर्म और समाज कार्य - Various religions and social work

विभिन्न धर्म वास्तव में मनुष्य में करुणा, दया तथा सेवा के भाव जागृत करते हैं। समाजकार्य का उद्देश्यमनुष्य मात्र की सहायता करते हुए आत्मनिर्भर बनाने का रहा है। विभिन्न धर्म अपनी अवधारणात्मक प्रस्थिति में इसी को समृद्ध करते हैं।


महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय अलग व्यक्तियों और संगठित समूहों को प्रेरित किया। आर्यों के आगमन से पहले ही लोगों की स्प्रेरित सहयोग की देशी प्रणालियाँ विद्यमान थीं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ों में प्रयुक्त प्रौद्योगिकी के बारे में माना जाता है कि वह नगर नियोजन के मामले में उत्कृष्ठ और उन्नत था। वहाँ की वास्तुकला और प्रशासन के बारे में प्राप्त ज्ञान से पता चलता है कि भवन की डिजाइनिंग और पैटर्न उन्नत थी तथा सार्वजनिक स्थलों जल निकास प्रणाली सुनियोजित तरीके से काम करती थी। इसके साथ ही समाज के प्रत्येक वर्ग, अर्थात् धनी और निर्धन की आवश्यकता पर कल्याणकारी प्रशासन की झलक मिलती है। यह निर्धारित नियमों के साथ सामुदायिक जीवन का पैटर्न प्रदान करता है और लोगों की मैत्रीपूर्ण समाज का यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है।





वैदिक काल के दौरान परिवार और कबीले के रूप में राज्य प्राधिकार का पता चलता है। बहुत से परिवार एवं गोत्र वंश बनाते थे। कई गोत्रों से जिला बनता था और इन जिलों से कबीले गठित होते थे। जिसे उच्चतम राजनीतिक इकाई माना जाता था। उपलब्ध साहित्य के अध्ययन से पता चलता है कि राजतंत्र ने लोगों का कल्याण और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत से शासकीय पद बनाए थे। राज्य राजतंत्र और समाज से संबद्ध कार्यों के प्रति लोगों की भावनाएँ ज्ञात करने के लिए संदेशवाहक और गुप्कार थे। विवाह, शिक्षा, धर्म, कानून आदि का आविर्भाव वैदिक काल के दौरान हुआ था जो आज भी सामाजिक जीवन का सारभाग हैं। विधानसभाओं को सभा' और 'समिति" कहा जाता था, उन्हें निर्णय करने के लिए गठित किया जाता था और लोगों की सहभागिता सुनिश्चित की जाती थी।






प्राचीन ग्रंथों जैसे मनु की मनुस्मृत, कौटिल्य का अर्थशास्त्र और वेदव्यास के महाभारत ने वैज्ञानिक शासन व्यवस्था उदाहरण के रूप में राजनीतिक संस्थाओं का उल्लेख किया है। अर्थशास्त्र और महाभारत में बहुत पहले की निर्वाचक प्रणाली की चर्चा की गई है। प्रजा की रक्षा और सुरक्षा राजा का महत्वपूर्ण कार्य और उत्तरदायित्व माना आता था। राजा लोगों द्वारा चुना जाता था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राज्य की उन भूमिकाओं (कार्यों) का विवरण है जिसने मनुष्य के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक जीवन पर प्रभावशील भूमिका निभाई। कल्याणकारी राज्य प्राचीन भारत की आदर्श विशेषता है, क्योंकि राजा धर्म से उत्पन्न कानून का परिरक्षक था। पौराणिक कथाएँ कर्म सिद्धांत के बारे में भी चर्चा करती हैं जो कार्यों का सार प्रस्तुत करते हैं।






गरीबों की सहायता करना राज्य के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक था। प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सहायता तथा रक्षा करना राज्य का कर्तव्य था। आश्रितों और रोगी व्यक्तियों के लिए विशेष प्रयास किए जाते थे। परिवारों और जरूरतमंदों के ब्यौरे राज्य द्वारा तैयार किए जाते थे। सूखे और अकाल से उत्पन्न स्थिति से राज्य कोष द्वारा जनकल्याण पर खर्च किया जाता था। कौटिल्य ने अकाल सहायता के बारे में उल्लेख किया है। हुआन चाग (Yuun Chwang) ने जरूरतमंद और विपदाग्रस्त यात्रियों की सहायता के लिए बहुत से विश्रामगृहों का उल्लेख किया है, जहाँ भोजन, औषधियों और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती थी। प्राचीन तथा मध्य काल तक नगर प्रशासन, उद्यानों, मनोरंजन केन्द्रों, वन भूमि सिचाई कार्य, श्मशान घाट भोजनालयों और यात्री निवास के निर्माण के लिए उत्तरदायी था। गाँवों की समुचित सीमा, लोगों की विस्तृत जानकारी का लेखा-जोखा और उनके नाम, भूमि की बिक्री और हस्तांतरण का पंजीकरण परिवार के सदस्यों और पशुओं की गणना करना सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत करों का संग्रह व्यवसाय आधारित श्रेणियों, व्यापारियों, सौदागरों, मजदूरों कारीगरों और गुलामों की गणना जन्म और मृत्यु आय और व्यय का रिकॉर्ड रखने का कार्य इनके द्वारा किया जाता था। नगर प्रशासन और स्थानीय प्रशासन के प्रभारी नगरपाल थे। सार्वजनिक खाते से छल-कपट और गवन अथवा चोरी को गंभीर अपराध माना जाता था तथा भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए दं डों की सूची बनाई गई थी।