टालकाट पारसन्स द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत - Theory Propounded by Talcott Parsons

टालकाट पारसन्स द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत - Theory Propounded by Talcott Parsons

पारसन्स ने यूरोप के कई विद्वानों (दुखीम वेबर मार्क्स और परेटो) के विचारों को समन्धित करते हुए ऐच्छिक क्रिया सिद्धांत को प्रतिपादित किया और एक अन्य सिद्धांत सामाजिक व्यवस्था को प्रतिपादित किया। 


सामाजिक क्रिया

पारसन्स ने अपने से पूर्व के विद्वानों से प्रभावित होते हुए भी इनसे बिल्कुल भिन्न सामाजिक क्रिया के सिद्धांत को प्रस्तुत किया है। पारसन्स के अनुसार समाज मानव के पारस्परिक संबंधों का वह संपूर्ण क्षेत्र जो मानवीय क्रियाओं के परिणामस्वरूप संरचित होता है। सामाजिक क्रिया के चार आधारभूत तत्व होते

कर्ता (जो क्रिया करता है)


लक्ष्य (जिसे प्राप्त करने के लिए कर्ता द्वारा क्रिया की जाती है। * परिस्थिति (किसी भी क्रिया को संपन्न करने हेतु दशाएँ, स्थान आदि)


साधन (लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक माध्यम) कर्ता द्वारा की गई सभी क्रियाएँ लक्ष्य उन्मुखी होती हैं। उक्त तत्वों को उदाहरण की सहायता से सरलता से समझा जा सकता है। एक लड़का (कर्ता) है, उसे मेला (लक्ष्य) देखने जाना है। मेला देखने जाने के लिए आवश्यक है कि आपके प्रति लड़के की रूचि (परिस्थिति अथवा अभिप्रेरणा) हो और मेला जाने के लिए उसके पास साइकिल (साधन) होनी चाहिए। पारसन्म के अनुसार व्यक्ति जब कोई क्रिया करता है, तो वह साधन और साध्य में विकल्प रखता है और उसकी क्रिया इन्हीं विकल्पों के माध्यम से संपन्न होती है। पारसन्स ने पाँच वैकल्पिक जोड़ों (प्रतिमान चर अथवा परिवर्त्य) की चर्चा की है


1. प्रदत्त बनाम अर्जित व्यक्ति स्वयं को किसी अन्य व्यक्ति के प्रति किस प्रकार से उन्मुख करे। उदाहरण के लिए जाति व्यवस्था में व्यक्ति की प्रतिष्ठा का निर्धारण कौशल न होकर जन्म के आधार पर होता है और किसी सिपाही को सम्मान उसके कौशल अथवा प्रदर्शन के आधार पर मिलता है।


2. बहुपक्षीय बनाम एकपक्षीय कर्ता वस्तु के एक ही पक्ष तक अपनी रूचि को सीमित रखकर व्यवहार कर सकता है डॉक्टर का मरीज के साथ किया गया व्यवहार) अथवा उसके सभी पक्षों में रूचि रखकर अपने व्यवहार का निष्पादन कर सकता है माँ का अपने बेटे के साथ किया गया. व्यवहार)।


3. विशिष्टपरक बनाम सार्वभौमिक कुछ सामाजिक क्रियाएँ व्यापक स्तर पर संपन्न होती हैं, जैसे पति-पत्नी का संबंध कुछ संबंध विशिष्टता के स्तर पर होते हैं। यथा अध्यापक व शिष्य संबंध ज्ञान शति


4. भावात्मकता बनाम भावात्मक तटस्थता कर्ता किन्हीं संबंधों में भावात्मक रूप से तटस्थ रहकर (किसी ग्राहक के साथ किया गया व्यवहार) अथवा पूर्ण भावात्मक रूप से कार्य करता है (पत्नी के साथ किया गया व्यवहार)।


5. सामूहिक हित बनाम स्वहित कर्ता व्यवहार करते समय अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए, व्यवहार कर सकता है (किसी भी अवसर के उपयोग में स्वयं को प्राथमिकता देना) अथवा सामूहिक हितों को प्राथमिकता देते हुए व्यवहार कर सकता है (अवसर का लाभ उठाने का सभी को समान महत्व देना।


पारसन्स ने सामाजिक क्रिया को तीन भागों में वर्गीकृत किया है.


नैमित्तिक क्रिया


अभिव्यंजनात्मक क्रिया


● नैतिक क्रिया


सामाजिक व्यवस्था


पारसन्स ने स्पष्ट किया है कि सामाजिक व्यवस्था सामाजिक क्रियाओं की संगठित प्रणाली है जिसमें अनेक कर्ताओं द्वारा की गई क्रियाओं का समावेश होता है। मानव समाज भी एक पूर्ण सामाजिक व्यवस्था है, जो आत्मपोची और आत्मनिर्भर है और किसी बाहरी सामाजिक व्यवस्था पर निर्भर नहीं हैं। पारसन्स के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में अनेक कर्ता किसी-न-किसी सामाजिक परिस्थिति के तहत लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सामाजिक मानदंडों और मूल्यों के अनुसार पारस्परिक अंतःक्रिया में संलिप्त हैं। जिनके संयोजन से सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होता है। सामाजिक व्यवस्था में निम्न तत्व उपलब्ध होने होते हैं.


अंतःक्रिया में अनेक कर्ता संलग्न होते हैं।


• प्रत्येक कर्ता किसी-न-किसी लक्ष्य अथवा उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अन्तः क्रिया करता है। ये अंतः क्रियाएँ किचित परिस्थितियों में घटित होती


ये अंतःक्रियाएँ किसी सांस्कृतिक व्यवस्था द्वारा नियमित और परिभाषित होती है।