पवित्र की विशेषताएं - characteristics of the holy

पवित्र की विशेषताएं - characteristics of the holy


दुर्खीम का कहना है कि समस्त धर्मों का संबंध पवित्र पक्ष से होता है परंतु इसका अर्थ यह नहीं है की सभी पवित्र वस्तुएं ईश्वरीय या ईश्वर है। यद्यपि समस्त ईश्वरी या अध्यात्मिक घटनाएं तथा वस्तुएं पवित्र अवश्य होती हैं। ये पवित्र वस्तुएं समाज की प्रतीक या सामूहिक चेतना का प्रतिनिधि होती है। इसी कारण व्यक्ति उनके अधीन रहता है और इनसे प्रभावित रहता है। पारसंस ने दुखम के द्वारा दी गई पवित्र की अवधारणा का विश्लेषण किया है और वह कहते हैं कि जब व्यक्ति किसी वस्तु को पवित्र समझता है तो उसके पीछे कोई भी उपयोगितावादी धारणा नहीं होती। क्योंकि पवित्र वस्तु कोई साधन नहीं जिसके द्वारा किसी साध्य को प्राप्त किया जा सके। पवित्र तो अपने आपमें एक साध्य है पवित्र वस्तुओं के साथ सम्मान और आदर जुड़े हुए हैं।


पवित्र की विशेषताएं (Characteristics of Sacred)


दुर्खीम ने पवित्र वस्तुओं के प्रति जिन अवधारणाओं को रखा है उनकी विशेषताएं इस प्रकार है


1. धर्म का संबंध पवित्र वस्तुओं के साथ होता है। यह पवित्र वस्तुएं अमूर्त होती है, भौतिक होती है।


2. जब हम किसी वस्तु को पवित्र कहते हैं तो उसकी पवित्रता का कारण उसके अंतर्भूत लक्षण नहीं होते हैं। बल्कि व्यक्तियों की इन वस्तुओं के प्रति आदर की अभिव्यक्ति होती है जो उसे पवित्र बना देती है।


3. सभी लोग पवित्र वस्तुओं के प्रति सामान्य दृष्टिकोण नहीं रखते हैं। 


4. पवित्र वस्तु उपयोगी नहीं समझी जाती और इनकी बाजार में सौदेबाजी भी नहीं होती है।


5. कुछ पवित्र वस्तुएं मूर्त होती हैं। इन वस्तुओं को देखा जा सकता है, अनुभव किया जा सकता है और सुना भी जा सकता है।