यांत्रिकी एकता की विशेषताएं - Features of Mechanics Unity

  यांत्रिकी एकता की विशेषताएं - Features of Mechanics Unity


दुर्खीम ने यांत्रिकी एकता की निम्नलिखित विशेषताएं बताई हैं


1. तीव्र सामूहिक चेतना (Collective Conscience) - मानव एक विवेकशील प्राणी है पर उसका विकास तभी संभव है जब उसके पास अनुकूल परिस्थितियां हो। यदि हम आदिम समाज को देखें तो पाते हैं कि आदिम मानव समाज की प्रतिकूल सामाजिक परिस्थितियों के कारण विवेक की अपेक्षा मूल प्रवृतियों से अधिक प्रेरित होते हैं। वे स्वतंत्रता की मांग नहीं करते, तर्क नहीं करते और न ही अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग करते हैं। इसलिए उनकी प्रकृति में सामूहिक चेतना का स्थाई निवास हो जाता है। ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति का व्यवहार सामूहिक चेतना के विरुद्ध होता है तो पूरा समाज उसके विरुद्ध हो जाता है और उस व्यक्ति को कठोर से कठोर दंड दिया जाता है। ऐसा तीव्र सामूहिक चेतना के कारण होता है।

यांत्रिक की एकता में व्यक्तिगत विवेक स्थाई भावों इच्छाओं आदि का कोई महत्व नहीं होता। इनसब पर सामूहिक चेतना का नियंत्रण रहता है।


2. व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंत यांत्रिक एकता के अंतर्गत समाज व्यक्ति पर अपना नियंत्रण इस प्रकार रखता है कि उसके व्यक्तित्व का कोई महत्व नहीं रह जाता। शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक दृष्टि से प्रकृति ने किसी को भी एक समान नहीं बनाया है पर यांत्रिकी एकता में दमनकारी कानून के द्वारा सबको समान होने के लिए बाध्य कर दिया जाता है। हालांकि दुर्खीम ने तर्क दिया है कि प्रतिभा विवेक तर्क को अधिक समय तक नियंत्रण में नहीं रखा जा सकता। इसलिए यह स्थिति ज्यादा समय तक नहीं चल सकती। आधुनिक समय में हम यह परिवर्तन देख ही रहे हैं। दुर्खीम व्यक्ति से समाज को श्रेष्ठ तो मानते हैं पर यांत्रिकी एकता वाले समाज में व्यक्ति के व्यक्तित्व का सामूहिक चेतना पर बलि चढ़ जाना उन्हें स्वीकार नहीं था। इसलिए इस एकता को उन्होंने जीवन रहित बताया था। ऐसे समाजों में कोई परिवर्तन नहीं होता, नवीन अविष्कार नहीं होते और व्यक्तिगत चेतना की अभिव्यक्ति सामाजिक चेतना के ही अनुरूप होती है।

ऐसे समाजों में व्यक्ति के कोई अधिकार नहीं होते हैं और अधिकारों की मांग को दमनकारी कानून द्वारा कुचल दिया जाता था। ऐसे में व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंत हो जाता है। उसका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रहता और उसे यंत्रवत चलना पड़ता है।


B. दमनकारी कानून (Repressive Law) दमनकारी कानून द्वारा समाज का नियंत्रण यांत्रिकी एकता वाले समाज में व्यक्ति पर समाज का कठोर नियंत्रण होता है। दुखम यह मानते हैं कि यांत्रिकी समाज की सुदृढता विश्वास एवं संवेगों के कारण है। उनकी दृष्टि में यदि कोई व्यक्ति समाज के विश्वास एवं संवेगों को आघात पहुंचाता है तो वह अपराध है और अपराधी को दंड देने का काम समाज करता है। समाज व्यक्ति का नियंत्रण करने के लिए अनेक कठोर व्यवस्था और साधनों का प्रयोग करता है। इसलिए समाज में दमनकारी कानूनों की स्थापना की गई।

इसका उद्देश्य समाज में दृढ़ता को बनाए रखना होता हैं। इसलिए सर्वत्र दंड संहिता दिखाई देती है। सामूहिक चेतना, विरोधी कार्य अथवा विचार को कठोरता पूर्वक दबा दिया जाता है।


1. धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका (Importance of Religion) यांत्रिकी एकता वाले समाजों में धर्म की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। धार्मिक रीति-रिवाज, प्रथाएं, परंपराएं, अनुष्ठान, टोटम आदि पवित्र माने जाते हैं। ईश्वरी प्रकोप की कल्पना से जन समूहों में भय उत्पन्न कर दिया जाता है। जिससे कि उसके विरुद्ध कोई कार्य या व्यवहार न करें सामूहिक चेतना को सर्वशक्तिमान माना जाता है और उसके विरुद्ध कार्य करना पाप कहलाता है।

व्यक्तियों की सामूहिक चेतना के प्रति विश्वास और निष्ठा बनी रहे। इसलिए टोटम एवं पवित्र शक्ति की कल्पना की जाती है। प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है की वह उसी के अनुसार चलें।

2. खंडात्मक रचना (Segmental Structure ) - यांत्रिकी एकता वाले समाज की एक प्रमुख विशेषता खंडात्मक सामाजिक संरचना है। इसके अनुसार यांत्रिकी एकता वाले समाज में इकाई व्यक्ति नहीं बल्कि समूह होते हैं।

जो रक्त संबंधों में विश्वास रखते हैं और अपने आपको दूसरों से पवित्र मानते हैं। व्यक्ति अपने समूह से बंधा रहता है प्रत्येक समूह आत्मनिर्भर होता है। उसके अपने कुछ नियम होते हैं और इन्हीं नियमों के कारण वह दृढ़ एकता के सूत्र में बंधा रहता है। इस खंडात्मक संरचना को दुर्खीम ने होर्ड का नाम दिया है। आगे चलकर यही समूह बृहद समाज का अंग बन जाता है। यहां इसकी स्वायत्तता स्थाई रूप से बनी रहती है। यहां पर समाज का नियंत्रण व्यक्ति पर नहीं खंड या समूह पर रहता है। व्यक्ति का संबंध समूह से और समूह का व्यक्ति से होता है। इस तरह से पूरे समाज में समरूपता बनी रहती है जो कि सामूहिक एकता को बनाए रखती है।


3. विशिष्ट राजनीतिक व्यवस्था (Specific Political System) दुर्खीम कहते हैं कि यांत्रिक एकता वाले समाजों में जनमत में भी समरूपता पाई जाती है। जब कोई व्यक्ति या समूह समाज का प्रतिनिधि बनकर सत्ता अपने में हाथ लेता है तो जनसमूह उस सत्ता की आज्ञा का पालन करते हैं। व्यक्ति का कहीं कोई अधिकार नहीं होता प्रजा व राजा के बीच संबंध सद्भावपूर्ण नहीं होते बल्कि अधिकारवादी एवं यांत्रिकी होते हैं। दुर्खीम ने यांत्रिकी समाज में एकता का विवेचन कई कारकों के द्वारा किया है। दुर्खीम ने समाज को सामूहिक आत्मा माना है जो प्रत्येक व्यक्तिगत आत्मा के अंदर मौजूद होती है। इसी सामूहिक आत्मा के कारण लोगों में यांत्रिकी एकता उत्पन्न होती है। इसका निर्माण समूह की सामान्य भावनाओं एवं आदर्शों के आधार पर होता है। समूह के सदस्यों में पाई जाने वाली समानताओं सामान्य प्रकृति के आधार पर यांत्रिकी एकता की उत्पत्ति होती है।