संवेगात्मक विकास में शिक्षक की भूमिका - role of teacher in emotional development
संवेगात्मक विकास में शिक्षक की भूमिका - role of teacher in emotional development
परिवार के पश्चात विद्यालय ही ऐसा स्थान है जहाँ बच्चे अपना ज्यादा समय बिताते हैं। बच्चों पर शिक्षकों के व्यवहार का बड़ा प्रभाव पड़ता है अतः बालकों के संवेगात्मक विकास की दृष्टि से शिक्षकों की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है-
1) बालकों में अनुकरण प्रवृत्ति पाई जाती है, अतः शिक्षक को स्वयं को संवेगात्मक रूप से सुसंगठित एवं नियंत्रित आदर्श रूप प्रस्तुत करना चाहिए ताकि शिक्षार्थी उनका अनुकरण कर अपना विकास कर सके।
( 2 ) शिक्षक को अपने शिक्षार्थियों के साथ स्नेहयुक्त व्यवहार करना चाहिए जिससे बालकों में सहयोग स्नेह और आदर की भावना का विकास हो सके।
3) सीखने की प्रक्रिया में संवेगों का विशेष महत्व होता है। अतः शिक्षक को इस ओर भी संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य एवं नियंत्रित संबेग ही अधिगम की कुशलता का बालकों में विकास करते है।
4) स्वास्थ्य, शारीरिक विकास तथा संवेगात्मक विकास के बीच परस्पर गहन संबंध होता है। शिक्षक बालकों की बीमारियों तथा शारीरिक एवं मानसिक कमजोरियों से उनके अभिभावकों को परिचित करा सकते है और उनको दूर करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
(5) शिक्षक पाठ्यक्रम एवं पाठ्य सहगामी क्रियाओं की सहायता से बालकों के संवेगों की अभिव्यक्ति हेतु उचित वातावरण प्रदान कर सकता है।
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