आधुनिक बैंकों के प्रकार - types of modern banks

आधुनिक बैंकों के प्रकार - types of modern banks


वैसे तो बैंक के अनेक कार्य होते है, परंतु प्रत्येक बैंक कहलाने वाली संस्था के कुछ प्रमुख कार्य तथा उद्देश्य होते है और इन्हीं के लिए उसकी स्थापना की जाती है। अलग-अलग प्रकार के बैंकों की जमाराशियों के स्वरूप तथा इनके द्वारा दिए जाने वाले ऋणों के उद्देश्य भी अलग-अलग होते हैं। इनके प्रमुख कार्यों तथा उद्देश्यों के आधार पर विभिन्न रूप निम्नलिखित है:


(1) वाणिज्यिक बैंक:- वाणिज्यिक बैंक जिन्हें व्यावसायिक बैंक भी कहते हैं, सामान्य बैंकिग के कार्य करते हैं तथा व्यापारिक उद्देश्यों के लिए अल्पकालीन ऋणों की व्यवस्था करते है। चूँकि इन बैंकों की अधिकतर अल्पकालीन जमाराशियाँ ही होती हैं, इसलिए साधारणतः ये एक वर्ष से अधिक समय के लिए ऋण नहीं दे पाते हैं।

भारत में निजी क्षेत्र में मिश्रित पूँजी बैंक तथा सार्वजनिक क्षेत्र में स्टेट बैंक, इसके सहायक बैंक तथा उन्नीस राष्ट्रीयकृत बैंक वाणिज्यिक बैंक ही है। व्यापार संबंधी ऋण प्रदान करने के अतिरिक्त यें बैंक जमा प्राप्त करने, चैकों का संग्रह व भुगतान करने तथा एजेन्सी संबंधी अनेक कार्य करते है जिनका उल्लेख हम पीछे कर चुके है।


प्रो. चैण्डलर के अनुसार इन बैंकों का वाणिज्यिक बैंक कहना अनुचित तथा भ्रमात्मक है और इनकों किसी अन्य नाम से पुकारा जाना चाहिए। वाणिज्यिक बैंक कहलाने वाली संस्थाओं के कार्यों का अब अधिक विस्तार हुआ हैं,

क्योंकि इनके द्वारा अब केवल वाणिज्य तथा व्यापार संबंधी ऋण ही नहीं बल्कि औद्योगिक तथा अन्य कई प्रकार के ऋण भी दिए जाते है। इसके अतिरिक्त वे चैकों के भुगतान, बचत को प्रोत्साहन तथा अनेक प्रकार के एजेन्सी कार्यो के द्वारा अपने ग्राहकों की सेवा करते है।


(2) औद्योगिक बैंक: - उद्योगों के लिए मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋणों की व्यवस्था करने वाली संस्थाएँ औद्योगिक बैंक कहलाती है। अपने पास से ऋण देने के अतिरिक्त ये औद्योगिक फर्मों का उनके शेयर्स, ऋणपत्र तथा बॉण्ड आदि बिकवा कर अथवा अभिगोपन द्वार पूँजी प्राप्त करने में भी सहायक होते हैं।

सामान्यतः औद्योगिक बैंकों के तीन प्रकार से कार्य होते है- प्रथम, दीर्घकालीन जमा प्राप्त करना, द्वितीय औद्योगिक कंपनियों की ऋण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना तथा तृतीया कुछ अन्य कार्य करना, जैसे-औद्योगिक कंपनियों के अंशों व ऋणपत्रों के क्रय विक्रय में सहायक होना तथा उनकी निवेश संबंधी समस्याओं पर उन्हें परामर्श देना आदि


(3) विदेशी विनिमय बैंक:- विदेशी मुद्रा में लेन-देन तथा विदेशी व्यापार के लिए वित्तीय व्यवस्था करने वाली संस्थाओं को विनिमय बैंक कहा जाता है। इस प्रकार के बैंकों को अपनी शाखाएँ अनेक देशों में स्थापित करनी पड़ती है।

इन्हें काफी अधिक पूँजी तथा अपेक्षाकृत अधिक कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। आजकल विनिमय बैंक साधारण वाणिज्यिक बैंकों के समान बैंकों के अन्य कार्य भी करते है। इसके विपरीत वाणिज्यिक बैंक भी विनिमय बैंकों का कार्य करते हैं इसलिए इसका कोई अलग वर्ग नहीं है। प्रायः ऐसे बैंकों को ही जो अन्य बैंकिंग कार्यों के साथ-साथ विदेशी विनिमय का लेन-देन करते है, विनिमय बँक कहा जाता है। भारत में विदेशी बैंकों की शाखाएं मुख्य रूप से विदेशी विनिमय का


व्यवसाय करती है। भारतीय वाणिज्यिक बैंक भी विदेशी विनिमय का व्यवसाय करते हैं।


(4) कृषि कार्य:- कृषि की वित्त संबंधी आवश्यकताएं व्यापारिक तथा औद्योगिक आवश्यकताओं से भिन्न प्रकार की होती है।

कृषक को बीज, खाद्य, औजार आदि खरीदने के लिए अल्पकालीन ऋण तथा भूमि के स्थायी सुधार के लिए दीर्घकालीन ऋण की आवश्यकता होती है। परंतु कृषक ऋण प्राप्ति के लिए उस प्रकार की जमानत नहीं दे पाते जिस प्रकार वाणिज्यिक तथा औद्योगिक बैंक चाहते है। अतएव उनके लिए अलग प्रकार के बैंकों की व्यवस्था करनी पडती है। जापान, जर्मनी, अमेरिका आदि देशों में अनेक नामों से कृषि बैंकों की स्थापना की गई है। भारत सरकार तथा केंद्रीय बैंक इसके लिए प्रयत्नशील रहे हैं कि देश में वाणिज्यिक बैंक कृषि वित्त की व्यवस्था करें। कृषि बैंक मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं- सहकारी बैंक तथा भूमि बंधक बैंक ।


कृषि बैंकिग के क्षेत्र में भारत में वाणिज्यिक बैंक भी कार्य कर रहे है। 1975 से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किए गए है।

एक सर्वोच संस्था के रूप में जुलाई 1982 में राष्ट्रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की गयी है।


सहकारी बैंक - इनका प्रारंभ सर्वप्रथम जर्मनी में हुआ था। भारत में इनका प्रारंभ सन 1904 के सहकारी साख समिति एक्ट से हुआ और समय समय पर इसके संगठन में परिवर्तन होता रहा है। शहरों में सहकारी बैंक अन्य वाणिज्यिक बैंकों की भांति ही कार्य करते हैं, परंतु इनका पंजीकरण संबंधित राज्य सरकार के सहकारी समिति अधिनियम के अंतर्गत किया जाता है। इन पर रिजर्व बैंक को भी विनियामक और पर्यवेक्षी प्राधिकार प्राप्त हैं।


ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ग्रामीण सहकारी ऋण संस्थाएँ स्थापित की जाती है।

अल्पावधि ऋणों के लिए प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ गठित की जाती है। कृषक प्रारंभिक समितियों के सदस्य होते है, जो सदस्यों को शेयर बेचकर तथा जमा स्वीकार करके पूँजी इकट्ठी करती है। इनकी देखभाल तथा सहायता के लिए मध्यवर्ती तथा राज्य सहकारी बैंकों का संगठन किया जाता है जो प्रारम्भिक समितियों को ऋण प्रदान करते हैं। बैंकिग विनियमन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत केवल शहरी सहकारी बैंक, राज्य सहकारी बैंक और जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक सहकारी क्षेत्र के बैंक कहलाने के पात्र हैं।


सहकारी बैंक अपने व्यापक शाखा नेटवर्क और स्थानीयकृत परिचालानात्मक आधार के साथ सामान्यतः विकास प्रक्रिया में और विशेषतः ऋण वितरण तथा जमा संग्रहण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।


भूमि विकास बैंक ये ऐसी सहकारी, अर्द्ध सहकारी अथवा गैर सहकारी संस्थाएँ हैं जो भूमि को बंधक रखकर भूमि के स्थायी सुधार के लिए दीर्घकालीन ऋण प्रदान करती है। इसलिए इन्हें भूमि बंधक बैंक कहा जाता था। इनकी स्थापना सर्वप्रथम 1882 में फ्रान्स में हुई । कालान्तर में इन्हें दूसरे देशों में भी स्थापित किया गया। अधिकांश देशों में ये बैंक मिश्रित पूँजी वाले बैंक होते हैं। ये अपनी अधिकांश कार्यशील पूँजी अंशों, ऋणपत्रों तथा दीर्घकालीन जमाराशियों एवं ऋणों द्वारा प्राप्त करते हैं। कुछ वर्ष पूर्व भारत मे इन्हें भूमि विकास बैंक कहा जाने लगा था। अब इन्हें सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक कहा जाने लगा है।


इनका संगठन प्राथमिक स्तर तथा राज्य स्तर पर किया जाता है।

(5) देशी बँकर्स: - आधुनिक बैंकों के विविध रूपों के अतिरिक्त भारत में देशी बैंकर्स का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इनकों महाजन, साहूकार, सर्राफ आदि नामों से भी पुकारा जाता है। भारतीय केंद्रीय बैंकिग जाँच समिति के अनुसार, "देशी बैंकर अथवा बैंक वह व्यक्ति अथवा व्यक्तिगत फर्म है जो जमा स्वीकार करने, हुण्डियों में व्यवसाय करने अथवा ऋण देने का कार्य करती है।" ये देश के हर भाग में पाए जाते हैं तथा कृषि एवं व्यापार की अधिकतर वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। ये अन्य बैंकों से भिन्न होते हैं, क्योंकि इनकी जमाराशियाँ नहीं होती हैं अथवा बहुत ही कम होती है। ये अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन ऋणों तथा ऋण के उद्देश्यों में भेद नहीं करते, बैंकिग के साथ अन्य व्यापार तथा व्यवसाय भी करते है तथा बहुत ऊँची ब्याज दर रखते है। भारतीय बैंकिग कंपनी अधिनियम के अनुसार इनको बैंक अथवा बैंकर नहीं माना गया है और न ही इन पर अधिनियम की व्यवस्थाएँ लागू होती है,

परंतु वर्तमान भारतीय व्यवस्था में इनके महत्व को स्वीकार करना ही पड़ेगा ।


(6) बचत बैंक: - पाश्चात्य देशों मे कम अथवा निश्चित आय वाले लोगों द्वारा बचत को प्रोत्साहन देने के लिए बचत बैंक स्थापित किए जाते हैं, जो प्रायः वाणिज्यिक बैंकों के सहायक बैंक के रूप में कार्य करते है। भारत में वाणिज्यिक बैंक ही बचत खातों का संचालन करते है और अलग से बचत बैंक स्थापित नहीं किए जाते है।


इंग्लैंड तथा भारत में डाकखाने भी लोगों की बचत जमा के रूप में स्वीकार करते है तथा उस पर ब्याज देते हैं। जमाकर्ता सप्ताह में एक या दो बार रूपया निकलवा सकता है।

इस प्रकार डाकखाने बचत बैंक का कार्य करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों मे जहाँ बैंक नहीं है, पोस्ट ऑफिस सेंविग्स काफी महत्वपूर्ण है।


(7) केंद्रीय बैंक: - प्रत्येक देश में एक केंद्रीय बैंक होता है जो देश की मुद्रा का निर्गमन करने के साथ-साथ मुद्रा तथा साख की मात्रा पर नियन्त्रण रखता है। यह सरकार का बैंकर होता है और सरकार के सभी खातों का हिसाब किताब रखता है तथा सरकार को ऋण देता है। यह बैंकों का भी बैंक होता है, क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर वे इससे ऋण लेते हैं तथा अपनी जमाओं का एक निश्चित अनुपात इसके पास जमा करते हैं। अन्य बैंक केंद्रीय बैंक के आदेशों का पालन करते हैं और यह देश की समूची बैंकिंग प्रणाली पर अपना नियंत्रण रखता हैं। केंद्रीय बैंक सरकार को आर्थिक तथा मौद्रिक विषयों पर परामर्श देता है तथा देश की आर्थिक स्थिति से संबंधित आंकड़ों का इकट्ठा करता है और प्रकाशित करता है।