बीमा की सीमाएँ - limits of insurance

बीमा की सीमाएँ - limits of insurance


अनिश्चितताओं एवं आशंकाओं से भरे जीवन में बीमा अत्यधिक महत्वपूर्ण है, आज बीमा सम्पूर्ण व्यावसायिक जगत एवं मानव समुदाय की प्राथमिक आवश्यकता बन गया है फिर भी बीमा की अपनी कुछ सीमाएँ हैं जिनके कारण बीमा के वांछित लाभ नही मिल पाते हैं। बीमा की कुछ सीमाएं इस प्रकार है।


1. सभी जोखिमों का बीमा नहीं कराया जा सकता जीवन में अनेक जोखिमें विद्यमान है परन्तु सभी का बीमा सम्भव नहीं है केवल शुद्ध जोखिमों का ही बीमा करवाया जा सकता है, परिकल्पी जोखिमों का बीमा नहीं करवाया जा सकता है।


2. ऊंची प्रीमियम दरें देश में जीवन बीमा के प्रति लोगों की विशेष रूचि नहीं है।

वाहन बीमा भी कानूनी अनिवार्यता के कारण करवाया जाता है। बड़े कारखानों का बीमा प्रचलित है परन्तु मकान, दुकान, चोरी आदि का


बीमा अधिक चलन में नहीं है। इन सब का मुख्य कारण बीमा प्रीमियम का ऊंचा होना है। 3. नैतिक संकट- बीमा करवाने वाले कुछ लोग बीमा का दुरूपयोग भी करते है। निम्न परिस्थितियों में व्यक्ति की


नैतिक कमजोरियों के कारण बीमा की सफलता संदिग्ध हो जाती है (क) कुछ लोग बीमा सेवा का आवश्यकता से अधिक उपयोग करना चाहते हैं जैसे आवश्यकता से अधिक समय


अस्पताल में रुक कर ईलाज करवाना क्योंकि बीमा कम्पनी भुगतान कर रही है। (ख) कुछ लोग बीमाकृत जीवन व सम्पति को अपनी सेवाएं देने के बदले अधिक पारिश्रमिक वसूल करते हैं।


उदाहरण- बीमित रोगी से डॉक्टर द्वारा अधिक फीस वसूल करना।


(ग) बीमाकृत सम्पत्ति का लापरवाही से प्रयोग करना।


(घ) बीमितों द्वारा नुकसान को बढ़ा चढ़ा कर बताया जाना।

4. बीमा लाभकारी विनियोग नहीं है- बीमा सुरक्षा के साथ-साथ निवेश भी है किन्तु यह बहुत आकर्षक


निवेश भी नहीं है। इससे प्राप्त होने वाला लाभ अन्य निवेशों से कम ही है। क्षतिपूरक बीमा में व्यक्ति को केवल वास्तविक क्षति प्राप्ति का ही अधिकार होता है। अत इसे आकर्षक निवेश नहीं माना जाता है।


5. बीमा की ऊंची संचालन लागतें बीमा कम्पनियां प्रीमियम का लगभग 20 प्रतिशत भाग अपने संचालन पर


ही खर्च कर देती है। जिससे अन्ततः प्रीमियम दरों में वृद्धि होती है।


6. एकाकी व्यक्ति की जोखिम का सीमा समग्र नही बीमा की सफलता तभी संभव है जब समान प्रकार की जोखिमों से घिरे व्यक्तियों का बड़ा समूह हो। यदि किसी एक व्यक्ति या बहुत कम व्यक्तियों को जोखिम हो तो उनका बीमा करना संभव नहीं होता है।


7. बीमा केवल वित्तीय मूल्य तक ही सीमित - किसी घटित होने वाली घटना की वास्तविक हानि का मुद्रा में मापन हो सके तो ही बीमा संभव है। इस प्रकार केवल भौतिक हानियों का बीमा, पर अमौद्रिक हानियों जैसे मानसिक पीड़ा, उत्पीडन, तनाव, चिन्ता, आदि की क्षतिपूर्ति का मापन व बीमा दोनों ही संभव नहीं है। 8. कुछ बीमा पत्र केवल सरकारी सहयोग पर निर्भर- निजी बीमाकर्ता कुछ विशिष्ट प्रकार की जोखिमों का


बीमा नहीं कर सकते हैं, उनमें सरकारी सहयोग की आवश्यकता होती है। जैसे -बेरोजगारी बीमा आदि।


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