बीमा अनुबन्धों के प्रकार - types of insurance contracts

बीमा अनुबन्धों के प्रकार - types of insurance contracts


बीमा के अनुबंध दो प्रकार की श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं। वे अनुबंध जिनमें क्षतिपूर्ति का उत्तरदायित्व होता है और वे जिनमें क्षतिपूर्ति का प्रश्न नहीं होता वरन् एक निश्चित धनराशि अदा करने का अनुबंध होता है। क्षतिपूर्ति विषयक बीमा सामुद्रीय (मैरीन इंश्योरेंस) भी हो सकता है और गैरसामुद्रीय भी। पहले का उदाहरण समुद्र द्वारा विदेशों को भेजे जानेवाले समान की सुरक्षा का बीमा है और दूसरे का उदाहरण अग्निभय अथवा मोटर का बीमा है। क्षतिपूर्ति के अनुबंध में केवल क्षति की पूर्ति की जाती है। यदि एक ही वस्तु का बीमा एक से अधिक स्थानों (बीमा संस्थानों) में है तो भी बीमा करानेवाले को क्षतिपूर्ति की ही धनराशि उपलब्ध होती है।

हाँ, वे बीमा कंपनियाँ आपस में अदायगी की धनराशि का भाग निश्चित कर लेती हैं। अतः क्षतिपूर्ति अनुबंध का यह सिद्धांत जीवन बीमा तथा दुर्घटना बीमा पर लागू नहीं होता। अतः जीवन बीमा तथा दुर्घटना बीमा कितनी भी धनराशि के लिए किया गया है, बीमा करानेवाले को (यदि वह जीवित है) अथवा उसके मनोनीत व्यक्ति को वह पूरी रकम उपलब्ध होती है।

अग्नि बीमा


जैसा कहा जा चुका है, अग्नि बीमा क्षतिपूर्ति का अनुबंध है अर्थात् जो धनराशि बीमापत्र पर अंकित है वह अवश्य मिल जाएगी, ऐसा नहीं वरन् उस सीमा तक क्षतिपूर्ति हो सकेगी।

अग्नि बीमा अनुबंध यद्यपि किसी न किसी संपत्ति के संबंध में ही होता है, फिर भी वह व्यक्तिगत अनुबंध ही है अर्थात् उक्त संपत्ति के स्वामी अथवा उस संपत्ति में बीमा हित रखनेवाले व्यक्ति को उस अनुबंध द्वारा क्षतिपूर्ति से आश्वस्त किया जाता है। अत: अगर बीमा करानेवाले को किस संपत्ति में स्वामित्व अथवा अन्य प्रकार का कोई ऐसा अधिकार नहीं है जिससे उसे बीमा हित उपलब्ध होता हो तो वह बीमा करा लेने के बाद भी अनुबंध का लाभ नहीं उठा सकता।


संपत्ति का स्वामित्व बदलने पर यद्यपि बीमा हित हस्तांतरित हो जाता है किंतु बीमा अनुबंध अंग्रेजी कानून के अनुसार स्वतः हस्तांतरित नहीं होता। यदि संपत्ति विक्रय के साथ साथ तत्संबंधी अनुबंध लाभ भी हस्तांतरित करना अभिप्रेत हो तो भी बीमा करने वाले की अनुमति आवश्यक है।

भारतीय विधि में ऐसा नहीं है। स्थिर संपत्ति हस्तांतरण विधि की धारा 49 और 133 के अनुसार कोई विपरीत अनुबंध के अभाव में संपत्ति प्राप्तकर्ता बीमा अनुबंध का लाभ क्षतिपूर्ति के लिए माँग सकता है। एक ही वस्तु में एक से अधिक लोगों को कुछ कुछ अधिकार उपलब्ध हो सकते हैं एवं उनके विभिन्न प्रकार के बीमा हित हो सकते हैं। अतः वे सब अपने हितों के आधार पर उस एक की संपत्ति पर अनेक बीमे करा सकते हैं।


अग्नि बीमा अनुबंध पर क्षतिपूर्ति का दावा करने के लिए यह आवश्यक है कि क्षति का निकट कारण अग्नि ही हो और अग्नि का अर्थ है कि चिनगारी निकली हो (अंग्रेजी में इसे इग्नीशन Ignition कहते हैं)।

किसी वस्तु के अत्यधिक दबाव के कारण वस्तु का झुलस जाना आग लगना नहीं माना जाता। बिजली गिरने से होनेवली हानि पर "चिनगारी लगने" की अनिवार्यता का नियम लागू नहीं होता। विस्फोट द्वारा हुई हानि अग्नि से हानि नहीं कहलाती, भले ही वह विस्फोट अग्नि से ही हुआ तो इसका आधार यह है कि हानि का निकट (Proximate cause) कारण अग्नि ही होना चाहिए। इसी प्रकार अग्नि लगने से उत्पन्न स्थिति में किसी तीसरे पक्ष द्वारा किए गए कृत्यों से उत्पन्न हानि भी अग्नि हानि में शामिल नहीं की जाती। लेकिन अग्नि अथवा जलहानि की सीमा का निर्धारण अग्नि बुझने के तुरंत बाद ही नहीं किया जाता वरन् उस समय किया जाता है जब उक्त बीमा संपत्ति बीमा करानेवाले को सौंपी जाती है।


अग्नि बीमा अनुबंध तीन प्रकार के होते हैं:


1. मूल्यांकित अथवा अमूल्यांकित


2. संपूर्ण तथा अनिश्चित


3. निर्धारित तथा औसत


मूल्यांकित बीमा अनुबंध में यदि संपत्ति पूर्ण नष्ट हो जाए तो बीमा पत्र पर लिखित धनराशि बीमा करनेवाले को अनिवार्य रूप से देनी पड़ती है। अमूल्यांकित बीमा अनुबंध में यदि पूर्ण संपत्ति नष्ट हो जाए तो उक्त संपत्ति का मूल्यांकन उस समय किया जाता है।

संपूर्ण तथा अनिश्चित अग्नि बीमा अनुबंध में वस्तुओं की सूची नहीं दी जाती वरन् अग्नि से हानिभय का बीमा सामान्य रूप में किया जाता है। निर्धारित अग्नि बीमा अनंबंध में धनराशि निर्धारित बीमा पत्र पर लिखी रहती है। औसत अग्नि बीमा अनुबंध में आनुपातिक क्षतिपूर्ति की जाती है : अग्नि बीमा अनुबंध में पुनस्थापन (Restoration or Restitution), औसत ( average) तथा भागदारी (Partial liability) सिद्धांत लागू होते हैं।


जीवन बीमा


जीवन बीमा का प्रारंभ भी समुद्री बीमा के प्राय: साथ ही हुआ क्योंकि व्यापारिक यात्रा पर जानेवाले पोतों के मालिकों को जहाँ पोत नष्ट होने की संभावनाओं के विरुद्ध प्रबंध करने की चिंता थी,

वहीं उन जहाजों के कप्तानों का जीवन भी उतना ही मूल्यवान था। साथ ही जब कारीगरों के संघों की स्थापना होने लगी और जन्म मृत्यु के लेखे रहने के साथ साथ आयु सीमा के औसत निकालने के नियमों की स्थापना की जा सकी तो जीवन बीमा अनुबंध का भी काफी प्रसार हो सका। लेकिन उस समय के बीमा पत्रों की शर्तें काफी कठिन होती थीं। अमरीकी गृहयुद्ध के पूर्व के जीवन बीमा अनुबंध की शर्तों के अनुसार बीमा पत्र का काई अर्पण मूल्य (Surrender value) नहीं होता था। बीमे पर कोई कर्ज नहीं मिल सकता था। बीमा प्रव्याजि (प्रीमियम) अदा करने के लिए अतिरिक्त समय (Grace period) नहीं मिलता था तथा आत्महत्या, द्वंद्वयुद्ध अथवा समुद्रयात्रा करने पर बीमा अवैध करार दे दिया जाता था।


जीवन बीमा दो व्यक्तियों बीमा करानेवाले और बीमा करनेवाले के बीच ऐसा अनुबंध है जिसके अनुसार बीमा करानेवाला निश्चित अवधि तक सामयिक अदायगियों के बदले एक निश्चित धनराशि प्राप्त करने का वचन लेता है।

और बीमा करानेवाला उन निर्धारित अदायगियों के बदले एक निश्चित रकम निश्चित समय पर अदा करने का वचन देता है। अन्य प्रकार के बीमा अनुबंधों और जीवन बीमा अनुबंध का अंतर यही है कि यह केवल मानव जीवन से संबंधित है और बीमा अनुबंध का प्रकार अथवा रूप कुछ भी हो उसमें मूल शर्त यही होती है कि अनुबंध के चालू रहने के काल में यदि बीमा करानेवाले की मृत्यु हो जाएगी तो बीमा करनेवाला बीमापत्र पर लिखित धनराशि अदा करेगा। मृत्यु का कारण केवल दो स्थितियों में ही इस अनुबंध को समाप्त कर सकता है। एक, यदि बीमा कराने वाले के ही किसी गैरकानूनी कृत्य द्वारा उसकी मृत्यु हुई हो। दो, यदि बीमा करानेवाले की मृत्य ऐसे कारणों से हुई हो जिन्हें बीमापत्र में बाद कर दिया गया है। इस विषय पर अंग्रेजी विधि और भारतीय विधि में कुछ अंतर है।

भारत में आत्महत्या का प्रयत्न करना तो अपराध है किंतु आत्महत्या अपराध नहीं है अत: आत्महत्या करने पर ऐसा ही बीमा अनुबंध समाप्त किया जा सकता है जिसके बीमापत्र में यह शर्त लिखित हो। अंग्रेजी विधि में आत्महत्या का विषय पहली श्रेणी में आता है।


जीवन बीमा में मिलनेवाली धनराशि बीमा करनेवाले पर कर्ज माना गया है। इसलिए संपत्ति हस्तांतरण विधि (T.P.A.) की धारा तीन के अंतर्गत यह "संपत्ति" की श्रेणी में आ जाता है तथा उक्त विधि की धारा 130 के अनुसार इसका हस्तांतरण किया जा सकता था। अब जीवन बीमा की धनराशि के हस्तांतरण की व्यवस्था बीमा विधि की धारा 38 व 39 में की गई है। उक्त धनराशि का हस्तांतरण अभिहस्तांकन (assignment) द्वारा भी किया सकता है (धारा 38) और नामांकन (nomination) द्वारा भी (39) |

अभिहस्तांकन में बीमा करानेवाला उस बीमा अनुबंध से उत्पन्न अपन अधिकारों एवं हितों को दूसरे को हस्तांतरित कर देता है। नामांकन का अर्थ केवल यह है कि बीमा करानेवाले की मृत्यु पर यदि नामांकित व्यक्ति जीवित हो तो बीमे की धनराशि उसे उपलब्ध हो जाए। नामांकन बिना सूचना के बदला जा सकता है। यदि नामांकित व्यक्ति की मृत्यु पहले हो जाए तो बीमा करानेवाले को ही धनराशि पाने का अधिकार पुनः प्राप्त हो जाता है। अभिहस्तांकन में ऐसा नहीं है। यदि एक बार बीमा अनुबंध के अधिकार अभिहस्तांकित कर दिए गए तो उसकी पूर्व अनुमति के बिना दूसरा अभिहस्तांकन नहीं किया जा सकता। यदि बीमा करानेवाले के पहले अभिहस्तांकित की मृत्यु हो जाए तो वे अधिकार बीमा करानेवाले को वापस नहीं मिलते वरन् उस मृत व्यक्ति के उत्तराधिकारियों को उपलब्ध हो जाते हैं। दुर्घटना बीमा


अनुबंध के अंतर्गत दो प्रकार की परिस्थितियाँ आ सकती हैं


दुर्घटनावश दूसरों की क्षतिपूर्ति करने का भार तथा


दुर्घटनावश स्वयं अथवा स्वसंपत्ति को होनेवाली हानि। अमरीका में इसे 'कैजुएल्टी इंश्योरेंस' कहते हैं। अंग्रेजी विधि में इसे 'क्षतिपूर्ति बीमा' की श्रेणी में रेखा जाता है। भारतीय बीमा विधि में ये प्रकार स्वीकार नहीं किए गए हैं वरन् यहाँ का विभाजन जीवन बीमा तथा सामान्य बीमा (जनरल इंश्योरेश) में किया गया है। अतः उपर्युक्त वर्णित दो परिस्थितियों में बादवाली परिस्थिति जीवन बीमा की श्रेणी में आती है। इस प्रकार की दुर्घटनाओं का बीमा मोटर सवारी विधि (1930) तथा विमान वाहन विधि ( Air navigation act 1934) के अंतर्गत अनिवार्य कर दिया गया है ताकि क्षतिग्रस्त के हितों की रक्षा हो सके।


अन्य बीमाएँ


. स्वास्थ्य बीमा


गाड़ी की बीमा (आटोोबाइल इंश्योरेंश)


बीमा की आवश्यकता


व्यक्तियों का जीवन अनेक प्रकार की अनिश्चितताओं एवं जोखिमों से घिरा हुआ है। उसे कुछ सम्पत्ति से सम्बन्धित जोखिमें है तो कभी जीवन को जोखिम है अतः वह इन जोखिमों के प्रति कै से सुरक्षा प्राप्त करे इसी विचार ने बीमा को एक आवश्यकता बना दिया है।

वर्तमान औद्योगिक विकास का आधार ही प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से यदि बीमा को कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मनुष्य जीवन को तनाव मुक्त करने हेतु बीमा एक महती आवश्यकता बन गया है। निम्न बिन्दुओं के आधार पर बीमा की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है 1. जोखिमों के विरूद्ध सुरक्षा प्राप्ति हेतु सम्पत्तिर्यो का इसलिए बीमा किया जाता है कि उनके नष्ट होने की सम्भावना निरन्तर बनी रहती है या आकस्मिक घटना के घटित होने से अपने अपेक्षित जीवनकाल से पहले ही वे


निष्क्रिय हो सकती है।


2. संभावित जोखिमों से सुरक्षा प्राप्ति हेतु बीमाकृत विषयवस्तु को क्षति हो भी सकती है और नहीं भी, भूकम्प


आ भी सकता है, और नहीं भी, भूकम्प आये तो हो सकता है सम्पत्ति को क्षति पहु चे अथवा नहीं। मनुष्य की मौत होना निश्चित है लेकिन मृत्यु कब होगी समय अनिश्चित है, अतः इस अनिश्चितता या संभावित जोखिमों से सुरक्षा प्राप्ति हेतु बीमा आवश्यकता बन गया है।


3. जोखिमों के प्रभाव को कम करने हेतु बीमा बीमाकृत विषयवस्तु को संरक्षण प्रदान नही करता है, खतरे के . कारण पहु$1चाने वाली हानि को भी नहीं रोकता है खतरे को घटित होने से टाला भी नही जा सकता है। परन्तु कभी-कभी बेहतर सुरक्षातथा क्षतिनियन्त्रक उपायों द्वारा खतरे को टाला या तीव्रता को कम किया जा सकता है। जिससे उस विषयवस्तु पर निर्भर व्यक्तियों के जीवन व सम्पत्ति पर खतरे के प्रभाव को कम अवश्य किया जा सकता है।


4. सुरक्षा के लिए अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता से मुक्ति हेतु बीमा उद्योगपतियों, व्यवसायियों एवं अन्य व्यक्तियों को सुरक्षा के लिए पूंजी विनियोग से मुक्त कर दे ता है। थोड़ी सी प्रीमियम का भुगतान करके जोखिम को उस सीमा तक सीमित कर लिया जाता है। अतः इस व्यवस्था में लगने वाले धन का अन्यत्र उपयोग किया जा सकता है।


5. वृहत स्तरीय उपक्रमों के विकास हेतु आवश्यक - वृहतस्तरीय उपक्रमों में इतनी अधिक जोखिम होती हैं कि बीमा के बिना प्रारम्भ करना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव भी हो सकता है।


6. वित्तीय संस्थाओं से वित्त प्राप्ति हेतु वित्तीय संस्थाओं द्वारा भी इन औद्योगिक व व्यावसायिक संस्थाओं को वित्त तभी प्रदान किया जाता है जबकि इनकी सम्पत्तियों का बीमा हो चुका है। अतः भारी मात्रा में वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भी बीमा आवश्यक है।


7. विदेशी व्यापार विकास हेतु आवश्यक निर्यात व्यापार के प्रोत्साहन हेतु भी बीमा आवश्यक है। बीमा माल के मूल्य की क्षति की दशा में भी पूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है व जिससे निर्यातक क्षति की अनिश्चितता से मुक्त होकर निर्यात कर सकते हैं।


8. बचत व निवेश को प्रोत्साहित करने हेतु जीवन बीमा बचत व विनियोग का अच्छा स्रोत है। जीवन की अनिश्चितताओं को बीमा द्वारा निश्चित करने हेतु अधिक राशि का बी मा कराता है, जिससे अपव्यय कम होकर बचत को प्रोत्साहन मिलता है।