विकेंद्रिकरण के दोष अथवा सीमाएं - demerits or limitations of decentralization

विकेंद्रिकरण के दोष अथवा सीमाएं - demerits or limitations of decentralization


विकेंद्रिकरण के मुख्य दोष सीमाएं निम्नलिखित हैं :


अधीनस्थों की योग्यता पर निर्भता विकेंद्रिकरण व्यवस्था में संस्था की सफलता पूरी तरह से अधीनस्थों की योग्यता पर निर्भर करती है। अधीनस्थों को दैनिक निर्णयों के साथ-साथ अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लेने के अधिकार भी होते हैं। यदि अधीनस्थ अयोग्य सिद्ध हुए तो संस्था को काफी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।


(ii) सहयोग में कमी सभी विभाग एक स्वतंत्र इकाई होने के कारण उनके प्रबन्धक केवल अपने विभाग की ही प्रगति का बात सोचते हैं। कई बार तो दूसरे विभागों को नीचा दिखाने के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ जाती है

कि एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के स्थान पर विरोध करने लगते हैं। यह समस्या उस समय और भी गम्भीर हो जाती है जब दो एक-दूसरे पर निर्भर विभाग आपसी प्रतिस्पर्धा करने लगें। उदाराणार्थ, उत्पादन विभाग विक्रय विभाग की स्थिति खराब करने के लिए वस्तुओं के उत्पादन में जानबूझ कर देरी कर सकता है।


(iii) निर्णयों में एकरुपता का अभाव विकेंद्रिकरण में स्वतंत्र इकाईयां सीमित हो जाने के कारण सभी विभाग अपनी अलग-अलग नीतियां निर्धारित करते हैं। यही कारण है कि कई बार एक जैसी समस्या का समाधान करने के लिए विभिन्न विभागों द्वारा एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत निर्णय भी लिए जा सकते हैं।

इस प्रकार एक विभाग के सफल निर्णय का लाभ दूसरा विभाग नहीं उठा सकता।


(iv) महंगी व्यवस्था विकेंद्रिकरण व्यवस्था को अपनाने का साहस केवल बहुत बड़ी संस्थाएं ही कर सकती हैं क्योंकि यह एक महंगी व्यवस्था है। इसके अतंर्गत प्रत्येक विभाग को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करना आवश्यक है जिसके लिए अनेक उपकरणों एवं कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।


उदाहरणार्थ, यदि एक संस्था में एक ही समय पर अनेक वस्तुओं का उत्पादन एवं विक्रय किया जा रहा है तो इस व्यवसाय के अंतर्गत सभी वस्तुओं के अलग-अलग विभाग बनाए जाएंगे और सभी में उत्पादन,

विपणन, लेखांकन, कर्मचारी नियुक्ति आदि के कार्य भी अलग अलग किए जाएंगे जिससे काम की अनावश्यक रुप से दोहराई होती हैं। जहां एक ही लेखांकन विभाग से काम चल सकता था इस व्यवसाय में अनेक लेखांकन विभाग स्थापित करने पड़ते हैं। इस प्रकार खचों में अनावश्यक वृद्धि होती है।


(v) निर्णयन बिंदुओं पर विशेषज्ञों के मार्ग-दर्शन का अभाव विकेंद्रिकरण में अधिक कुशल एवं योग्य व्यक्तियों के उच्च प्रबन्ध में सम्मिलित कर लिया जाता है और जहां निर्णय लिए जाते हैं वहां उनकी कमी रहती है। इस प्रकार विशेषज्ञों की राय उपलब्ध न होने के कारण कई बार अच्छे निर्णय नहीं लिए जाते।


(vi) नियंत्रण का अभाव उच्च प्रबन्धक अपने अधिकारों को अन्य लोगों को साँप कर स्वयं आराम करने लगते हैं। उनकी यह लापरवाही पूरे संगठन में नियंत्रण को ढीला कर देती है और सभी अपनी मनमानी करने लगते हैं।


उपयुक्तताः विकेंद्रिकरण के लाभ एवं दोषों का अध्ययन करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इसके लाभ भी है और इसमें जो दोष दिखाई देते हैं वे सभी इसके सिद्धान्तों को ठीक से न समझ पाने के कारण ही उत्पन्न होते है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया सकता कि यह एक महंगी व्यवस्था है। इसलिए यह उन संस्थाओं में अधिक उपयोगी है जहां संगठन बहुत बड़ा व जटिल हो तथा योग्य एवं कुशल प्रबन्धक उपलब्ध हों।