नाटकीय संरचना - dramatic structure
नाटकीय संरचना - dramatic structure
नाटकीय संरचना को लम्बी कविता का प्राणतत्त्व स्वीकार किया जाता है। कविवर निराला ने 'राम की शक्ति-पूजा' की कथा का प्रस्तुतीकरण अत्यन्त नाटकीय ढंग से किया है। इसकी कथा योजना में नाटक की उचित कार्य अवस्थाओं का समुचित रूप से पालन हुआ है। जाम्बवन्त के द्वारा राम को शक्ति की मौलिक कल्पना करने के लिए प्रेरित करने से पहले कथा की पृष्ठभूमि ही मानी जाएगी और जाम्बवन्त के कथन से 'आरम्भ' नामक कार्यावस्था मानी जा सकती है। राम द्वारा शक्ति की मौलिक कल्पना करना और हनुमान को नीलकमल लाने के लिए भेजना 'प्रयत्न' नामक अवस्था है। 'निशि हुई विगत' वाले अवतरण में 'प्राप्त्याशा' का बोध होता है,
शक्ति द्वारा एक कमल को चुरा लेना और राम द्वारा नेत्र समर्पित करने के लिए प्रस्तुत होने में 'नियताप्ति' मानी जा सकती है। देवी के साक्षात् प्रकट होकर राम को विजय होने का वरदान देने में 'फलागम' है। इस कविता का प्रारम्भ और अन्त ऐसे नाटकीय ढंग से होता है कि पाठक के हृदय में कौतूहल, हर्ष, उत्कण्ठा और औत्सुक्य आदि नाट्य संचारियों का ताता बँध जाता है। यह नाटकीयता इसकी घटनाओं में ही नहीं है वरन् इसके चरित्रों में, इसके भाव में और इसमें प्रयुक्त संवादों की भाषा में भी है। पूरी कविता एक नाटक की तरह है जिसमें सारे दृश्य रंगमंच पर प्रत्यक्ष होते हैं।
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