नारी सौन्दर्य - female beauty
जब प्राकृतिक सौन्दर्य से कवि की सौन्दर्य वृत्ति को संतुष्टि नहीं मिलती तब वह नारी सौन्दर्य को अपनी सौन्दर्योपासना का साधन बना लेता है। "अखिल विश्व के निखिल सौन्दर्य के सार से बनी नारी सौन्दर्य का प्रतीक है। सौन्दर्य की उर्मिल मधुधारा उसके अंगों में ही नहीं, उसके हृदय एवं मानस में भी कलनिनाद करती बहती रहती है। नारी सुलभ सलज्जता एवं अल्हड़ता उसकी आंगिक सुघड़ता सुकुमारता एवं कान्तता से मिलकर उसके रमणी-रूप को सार्थक बना देती है।"37 कामायनी के प्रणयन-काल में श्रद्धा एवं इड़ा के रूप में नारी का रूप सौन्दर्य उसकी सौन्दर्यानुभूति का विषय है।
यौवन छवि से तृप्त रूप-राशियाँ उसकी आँखों के सामने इन्द्रजाल खड़ा कर देती हैं। अवलम्बित मुख के पास घिरे उसके घुँघराले बाल तथा रक्त किसलय से उसके अधरों पर खेलती मुस्कान की रेखा उसमें नवीन स्फुरण जगाती हैं। श्रद्धा का सौन्दर्य देखिए-
नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग, खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघवन बीच गुलाबी रंग । 38
इसी प्रकार कवि ने इड़ा के मुख मण्डल पर बिखरी अलक, पद्म-पलाश चषक-सी उसकी दो आँखें तथा मधुप मुखरित मुकुल सदृश उसका आनन, शशि-खण्ड सदृश उसके भाल का वर्णन किया है।
कवि का मानना है। कि जो सुन्दर है, वह अलंकार के बिना भी सुन्दर लगता है। उसे श्रद्धा और इड़ा का अलंकाररहित सौन्दर्य, देवांगनाओं के कृत्रिम सौन्दर्य से कहीं अधिक मनमोहक लगता है। जिस प्रकार वसन्त के आते ही कोयल का कण्ठ फूट पड़ता है, उसी प्रकार यौवन का आगमन होते ही सौन्दर्य मुखरित हो उठता है।
प्रसाद को नारी में ही नहीं मानव में भी सौन्दर्य दिखाई देता है।
वह सुन्दरता की प्रतिमूर्ति श्रद्धा एवं इड़ा जैसी सुकुमारियों के सौन्दर्य को देखते हुए मनु जैसे पुरुष के सौन्दर्य एवं मानव जैसे चंचल शिशु के सुकुमार सौंदर्य की ओर भी दृष्टि डालते हैं। यदि नारी की कोमलता, रमणीयता में उन्हें सौन्दर्य का साक्षात्कार होता है तो पुरुष के पौरुष में भी सौन्दर्य के दर्शन होते हैं। उनकी दृष्टि में पुरुष का सौन्दर्य उसका पौरुष है। सुन्दर पुरुष वह है जिसकी शिराओं में स्वस्थ रक्त का संचार होता है. -
अवयव की दृढ़ मांस-पेशियाँ ऊर्जस्वित था वीर्य अपार, स्फीत शिरायें स्वस्थ रक्त का होता था जिनमें संचार। #
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