परोक्ष सौन्दर्य - hidden beauty
रचना-काल में दृश्य जगत् का इन्द्रिय-प्रत्यक्ष सौन्दर्य परोक्ष सौन्दर्य का प्रतिबिम्ब मात्र नहीं रह जाता, वह अनुभूति का विषय बन जाता है। क्षितिज की श्याम छटा, शुक्र की छाया एवं उषा की लालिमा में केवल उसकी छाया - झलक मिल पाती है। जैसे-
उषा सुनहले तीर बरसती जयलक्ष्मी-सी उदित हुई, उधर पराजित काल रात्रि भी जल में अन्तर्निहित हुई। 10
प्रसादजी चर्म चक्षुओं से उसके बाध्य और अन्तश्चक्षुओं से उसके अन्तस्वरूप को देखते हैं। फलतः उन्हें मस्तिष्क तथा जीवन में अनोखा सौन्दर्य देखने को मिलता है।
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