लम्बी कविता: परिभाषा और स्वरूप - Long Poem: Definition and Format

रूपबन्ध की दृष्टि से काव्य के दो भेद स्वीकार किए जाते हैं दृश्यकाव्य तथा श्रव्यकाव्य । दृश्यकाव्य का आनन्द देख कर लिया जाता है। इसमें नाटक, एकांकी, प्रहसन आते हैं। श्रव्यकाव्य का आनन्द पढ़कर या सुन कर लिया जाता है। इसमें प्रबन्ध काव्य और मुक्तक काव्य आते हैं। निबद्ध रचनाओं को प्रबन्ध काव्य तथा अनिबद्ध रचनाओं को मुक्तक कहा जाता है। प्रबन्ध काव्य के पुनः दो भेद स्वीकार किए जाते हैं महाकाव्य तथा - खण्डकाव्य | महाकाव्य में मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन का चित्रण होता है तथा खण्डकाव्य में मनुष्य के जीवन के किसी एक खण्ड या पक्ष का चित्रण होता है।

आधुनिक हिन्दी साहित्य के युग में प्रबन्ध और मुक्तक काव्य से अलग एक नये काव्य रूप अर्थात् 'लम्बी कविता' का विकास हुआ। युग परिवेश के अनुरूप मनुष्य की परिस्थितियों, सोच और भावनाओं में भी पर्याप्त बदलाव आ गया। इसी प्रकार उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम भी बदला और प्रबन्ध काव्य का स्थान लम्बी कविता ने ले लिया। डॉ. युद्धवीर धवन के शब्दों में "लम्बी कविता ने महाकाव्य का स्थान लेकर एक अलग - ढंग से जीवन के बहुआयामी यथार्थ को अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करने की चेष्टा की है। "


हिन्दी साहित्य में पूर्व में प्रबन्ध काव्य को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा और वह भी अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। लेकिन समय के साथ आगे चलकर प्रबन्ध काव्य की कथात्मक इतिवृत्तात्मकता धीरे-धीरे लुप्त होने लगी और इसके स्थान पर लम्बी कविता का विकास हुआ। हिन्दी साहित्य में लम्बी कविताओं के सृजन की शुरुआत छायावाद से हुई। कालक्रम के अनुसार सुमित्रानन्दन पन्त की 'परिवर्तन' कविता हिन्दी की पहली लम्बी कविता मानी जाती है। लेकिन लम्बी कविताओं की सार्थक शुरुआत 'राम की शक्ति-पूजा' से मानी जाती है।

डॉ० रमेश कुन्तल मेघ के शब्दों में "लम्बी कविता विधा की समकालीन और सार्थक शुरुआत निराला की 'राम की शक्ति-पूजा' के पौराणिक सन्दर्भ से हुई और इसके बाद इसका समारम्भ मुक्तिबोध की कविता 'अँधेरे में' से हुआ।"


लम्बी कविता के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों ने इसे परिभाषित किया है, जिनमें से प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-


"लम्बी कविता की तुलना उस विशाल, भव्य, सुदृढ़ उत्तुंग मीनार से की जा सकती है जिसकी नींव इतिहास की जमीन में बड़ी गहराई तक है।

जिसकी बाह्य भित्तियाँ युग-परिप्रेक्ष्य से जुड़ी हैं और जिसकी चोटी आगत से भी बेखबर नहीं। उसकी एक-एक ईंट व्यक्ति, समाज, देश तथा विश्व के सन्दर्भ में घटित घटनाएँ हैं, जो सृजनात्मक तनाव रूपी सीमेंट द्वारा मजबूती से परम्परा से जुड़ी हैं। उसके कोण कवि मानस के गुह्यतम प्रदेश हैं। वहाँ संवेदनाओं की सीढ़ियाँ हैं और विचारों के वातायन हैं।"


- डॉ. कमलेश्वर प्रसाद


"लम्बी कविता वह है जिसमें नये जीवन विधान की संगति हो और जो परम्परागत रूप-विधान की रूढ़ियों से मुक्त भी हो।

जिसमें नये सत्य के साक्षात्कार की क्षमता हो और जो आधुनिक परिस्थिति और संवेदना द्वारा पुष्ट और प्रमाणित भी हो।


- डॉ. नरेन्द्र मोहन


"लम्बी कविता समसामयिक युग-सत्य को उसकी सम्पूर्णता, संश्लिष्टता और नाटकीयता में पकड़ने की बड़ी कोशिश होती है इसलिए लम्बी कविता को महाकाव्यात्मक रचना कहा जाता है। ऐसी कविता प्रायः एक विराट् रूपक के माध्यम से युग-सत्य को चित्रित करती है।"


- डॉ. नरेन्द्र वशिष्ठ


समग्रतः कहा जा सकता है कि लम्बी कविता मानव जीवन के विविध भावों पक्षों और विचारों को सशक्त रूप से उभारने में पूर्णतः समर्थ है तथा मानव जीवन का खुला यथार्थ पूरी व्यापकता और विशालता के साथ अभिव्यक्त करना लम्बी कविता का मूल कथ्य है। वर्तमान में लम्बी कविता एक समर्थ काव्य-विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है, जो वर्तमान सन्दर्भों और समस्याओं को प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करने में पूर्ण तः समर्थ है।