लम्बी कविता के रूपबन्ध की दृष्टि से 'राम की शक्ति-पूजा' - 'Shakti-worship of Ram' from the point of view of the format of a long poem
'राम की शक्ति-पूजा' महाकवि निराला की सर्वश्रेष्ठ रचना है। यह कृति निराला के कृतित्व और व्यक्तित्व की महानतम उपलब्धि है। यह कविता मूल रूप से उनके काव्य-संकलन 'अनामिका' में संकलित है। इस लम्बी कविता की रचना 1936 ई में हुई। इसका कथानक कृतिवास ओझा-कृत बांग्ला रामायण से लिया गया है। निराला ने इस पौराणिक कथा को सर्वथा मौलिक रूप में प्रस्तुत किया है। इसका विधान ऊपरी तौर पर आख्यान मूलक है, लेकिन यह कविता राम के मिथकीय चरित्र को आधुनिक जीवन और परिस्थितियों से जोड़ती है।
निराला ने राम के वनगमन के पश्चात् रावण के साथ हुए युद्ध का चित्रण युग की परिस्थिति के अनुरूप कर अपनी मौलिक प्रतिभा का परिचय दिया है। यह कविता रामकथा की दीर्घ परम्परा में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी होने के साथ ही निराला की प्रसिद्धि का प्रमुख आधार भी है। अपने औदात्य, ओज, चरित्र-चित्रण, रस वैविध्य, भावानुकूल भाषा और प्रवाहपूर्ण मुक्त छन्द के कारण यह रचना हिन्दी की उत्कृष्ट रचना स्वीकार की जाती है।
लम्बी कविता के सन्दर्भ में विलियम बटलर येट्स ने लिखा है कि- "जब हम अपने से बाहर संघर्ष करते हैं
तो कथा-साहित्य की सृष्टि होती है और अपने आप से लड़ते हैं तो गीतिकाव्य की।" अपने आप से लड़ने पर जो गीत काव्य पैदा होता है वह निःसन्देह छायावादी गीत नहीं बल्कि आज की कविता का गीत है। लेकिन एक तीसरी भी स्थिति होती है, जब हम अपने आप से लड़ते हुए बाहरी स्थिति से भी लड़ने की कोशिश करते हैं और एक विशेष प्रकार की लम्बी कविता पैदा होती है, जो आधुनिक कविता की सबसे बड़ी उपलब्धि है। निराला की 'राम की शक्ति-पूजा' इसी प्रकार के संघर्ष से उत्पन्न हुई है।
'राम की शक्ति-पूजा' को लम्बी कविता के रूपबन्ध की दृष्टि से निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझा जा सकता है-
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