तुलनात्मक आलोचना और साहित्य का मूल्यांकन - Comparative Criticism and Evaluation of Literature

साहित्य के विभिन्न अंग- उपांगों तथा साहित्यकारों और रचनाओं के अध्ययन के लिए भी तुलना का आधार ग्रहण किया जाता है। रेने वेलेक ने तुलना शब्द के व्यापक प्रयोग को स्वीकार करते हुए भी उसे साहित्यिक अध्ययन की पहली विशिष्ट प्रक्रिया को सन्तोषजनक ढंग से व्यक्त करने में असमर्थ माना है। उसके अनुसार साहित्यों, आन्दोलनों, लेखकों और कृतियों के बीच तुलना साहित्यिक इतिहास का मुख्य विषय नहीं रहा है। फिर भी उसने यह स्वीकार किया है कि साहित्यिक विकास की समानान्तर धाराओं और सादृश्यों तथा उनके बीच के भेदों की व्याख्या करने की दृष्टि से साहित्य के विभिन्न पहलुओं की तुलना की पद्धति ज्ञानवर्धक हो सकती है। टी. एस. इलियट ने तुलना और विश्लेषण को आलोचक के मुख्य अस्त्र माना है। लेकिन उसने आगाह किया है कि इनका प्रयोग सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।


वस्तुतः किसी भी रचना या रचनाकार का पूर्ण रूप से स्वतन्त्र मूल्यांकन असम्भव है । रचनाकार अपनी सामाजिक ऐतिहासिक परिस्थितियाँ होती हैं। वह अपने वर्तमान और अतीत से एकदम विच्छिन्न नहीं हो सकता। उसकी कल्पना में भी देश-काल विद्यमान रहता है। इसलिए किसी रचना या रचनाकार की तुलना पूर्ववर्ती और समकालीन रचनाओं और रचनाकारों के साथ करना आवश्यक भी हो जाता है। तुलना की प्रविधि साहित्यिक समालोचक के विश्लेषण- विवेचन की प्रक्रिया का सामान्य अंग है। किसी रचना का मूल्यांकन करते समय उसी भाषा या किसी अन्य भाषा की कोई न कोई रचना आलोचक के मस्तिष्क में रहती ही है।


तुलना और विषमता तुलनात्मक आलोचना के मुख्य उपकरण हैं। इसमें इतिहास के विकास क्रम का ध्यान भी रखा जाता है, लेकिन यह सामान्यतः देश-काल की सीमाओं के आर-पार जाकर कार्य करती है। क्योंकि साहित्य की सार्थक समानताओं और महत्त्वपूर्ण विभेदों का पता लगाने के लिए इतिहास की सीमा बाधक होती है ।


तुलनात्मक आलोचना के अन्तर्गत कवियों और लेखकों की रचनाओं का अन्य भाषा की रचनाओं के लेखकों और रचनाओं से तुलना के आधार पर उनके साहित्यिक महत्त्व का मूल्यांकन किया जाता है।

इस आलोचना पद्धति का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इसमें साहित्यिक रचना की किसी एक पंक्ति या अंश से लेकर उसी भाषा या अन्य भाषा के साहित्य की किसी पंक्ति या अंश से तुलना की जाती है। इसके अन्तर्गत एक ही भाषा, विधा या कृति की तुलना उसी भाषा या किसी अन्य भाषा की विधाओं या कृतियों से की जाती है। इस तुलना में दो साहित्यकार या साहित्यिक कृतियाँ भी हो सकती हैं और दो से अधिक भी। इस प्रकार की तुलना का उद्देश्य साहित्य के मर्म की दृष्टि से किसी विशेष साहित्य के महत्त्व का उद्घाटन करना होता है।


तुलनात्मक आलोचना में आलोचक अपने उद्देश्य के अनुसार साहित्य के किसी विशेष पक्ष को तुलना के लिए चुनता है। इस पद्धति में दोनों पक्षों के सृजनात्मक महत्त्व के प्रतिपादन का लक्ष्य भी हो सकता है और किसी एक पक्ष को श्रेष्ठ या निम्न सिद्ध करने का लक्ष्य भी हो सकता है। यदि तुलना के लिए चुने गए विभिन्न पक्षों के महत्त्व और प्रभाव को प्रकट करना या समझना इस आलोचना का लक्ष्य हो तो यह साहित्य के विकास में सहायक हो सकती है। यदि किसी को छोटा या बड़ा सिद्ध करना ही उद्देश्य हो तो इसका परिणाम आपसी विवाद और कटुता भी हो सकता है।


तुलनात्मक आलोचना में भाषा, कृति या कृतिकार के चयन के कई आधार हो सकते हैं। इसके अन्तर्गत विभिन्न साहित्यिक अंगों, विभिन्न काल खण्डों और विचारधाराओं के आधार पर भी तुलना की जाती है। तुलना के कई विषय हो सकते हैं। मुख्य रूप से भाव, रस, विचार या दार्शनिक चिन्तन, विषयवस्तु, साहित्यिक रूप, शैली, सम्प्रदाय, भाषा और साहित्य के प्रभाव आदि के आधार पर तुलनात्मक आलोचना अधिक देखी जाती है। तुलनात्मक आलोचना में यदि प्रामाणिक सामान्यीकरण का अभाव हो तो वह आलोचना निरर्थक हो जाती है।