स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी का विकास - Development of Hindi after independence

स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी का विकास - Development of Hindi after Independence

भाषा राष्ट्रीय अस्मिता की अभिव्यक्ति का माध्यम होती है इसलिए देश की स्वतन्त्रता का स्वप्न भी भाषा की मुक्ति से जुड़ा हुआ है। वर्ष 1947 ई. में जब देश आजाद हुआ तब संविधान निर्माताओं को ऐसी भाषा की आवश्यकता महसूस हुई जो राष्ट्र के विभिन्न समूहों की भाषा बन सके, जिसमें भारतीय संस्कृति की सामाजिक चेतना की अभिव्यक्ति हो सके, जो इस विशाल देश की प्रशासनिक भाषा बनने का दायित्व वहन कर सके । स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी के भाषिक विकास के सन्दर्भ में निम्नलिखित बिन्दुओं का उल्लेख किया जा सकता है-


1. राजभाषा के रूप में हिन्दी को प्रतिष्ठित करते हुए सांवैधानिक प्रावधान


ii. तकनीकी शब्दावली एवं विधि कोश आयोग की स्थापना


iii. हिन्दी भाषा के मानकीकरण के सरकारी एवं गैर सरकारी प्रयास


iv. हिन्दी में अनुवाद कार्य


V. भारतीय भाषाओं में परस्पर लिप्यन्तरण को प्रोत्साहित करना


vi. गैर हिन्दीभाषी राज्यों में हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्रयास।