एक सदी पूर्व चम्पारण में निलहे एसी एमन की क्रूरता को बयां करती सुधीर कुमार की एक रिपोर्ट.


एक सदी पूर्व चम्पारण में निलहे एसी एमन की क्रूरता को बयां करती एक रिपोर्ट-
 एमन का नाम बिहार राज्य के पश्चिमी चम्पारण जिले के लोग आजतक नहीं भूले हैं। इस नाम से यहाँ का हर वो व्यक्ति परिचित है जो एमन की कोठी के बारे में जानता है। एमन भारत उस समय आया था जब भारत अंग्रेजी शासन के अधीन था। एमन को भारत आने का न्योता अंग्रेज शासक डब्लू डब्लू ब्रुक ने दिया था। चूंकि ब्रुक अंग्रेज सरकार का बड़ा जमींदार था, जो अपने जमींदारी को चलाने के लिए क्रूर व्यक्तियों को ही नियुक्त करता था। 


इन्हीं में से ए सी एमन एक था जो अत्यंत ही क्रूर और हैवान था। जिसके आतंक से लोग घरों से बाहर निकलने में भी डरते थे। वह जिधर से गुजरता लोग अपने घरों में छिप जाते। एमन वहां के लोगों से जबरन नील की खेती करवाता था। अगर वह किसी को चार कट्ठे खेती करने को देता था, तो उसमें से 3 कट्ठे नील की खेती करना जरुरी था। ऐसा नहीं करने पर कठोर दंडित किया जाता था। दंड किस तरह का होगा यह कोई नहीं जानता था। नील की खेती करने से जमीन बंजर हो जाती थी इसलिए किसान नील की खेती करना नहीं चाहते थे। मज़बूरी में ही किसान इसकी खेती करते थे। किसान अंग्रेज सरकार का लगातार विरोध कर रहे थे। लेकिन अंग्रेज यह सब अनदेखा कर रहे थे। एक तरफ एमन के द्वारा लगातार किया जा रहा अत्याचार लोगों के बर्दास्त के बाहर हो रहा था। एमन जिस कोठी में रहता था उस कोठी को एमन की कोठी के नाम से जाना जाता है। एमन की कोठी के पास से अगर कोई डोली (बारात) निकलती थी, तो लड़की/दुल्हन को पहली रात एमन के साथ गुजारनी पड़ती थी। उसके बाद वह अपने पति के घर जाती थी यह सब बड़ा ही अजीबोगरीब और दर्दनाक स्थिति थी। यह सब रामचंद्र शुक्ल और अन्य स्थानीय नेताओं की आँखों से देखा न गया और वो गांधी जी से मिलने के लिए लखनऊ आए। उनसे मिलकर चंपारण में घटित हो रही घटनाओं की पूरी दास्ताँ सुनाई। 


यह सब सुनकर गांधी जी कुछ दिनों बाद चम्पारण आए और किसानों से मिलकर एक सभा का आयोजन किया। किसानों की समस्याओं पर बात करके एक रिपोर्ट बनाई और अंग्रेज सरकार को सौंपा जिससे अंग्रेज सरकार रिपोर्ट में लिखी गई बातें मानने को तैयार हो गई। अब रामचन्द्र शुक्ल के कहने पर गांधी जी झोपड़ी बनाकर चम्पारण, भीतिहरवा आश्रम में रहने लगे। यह सब एसी एमन के द्वारा नही देखा गया। उसने गांधी जी की झोपड़ी को लगातार तीन बार जलवा दिया। जिसमें से एक बार उसने स्वयं खुद वहाँ जाकर अपने हाथों से जलाया। इससे गांधी जी बहुत आहत हुए। इसबार गांधी जी ने अपने हाथों से मिट्टी की झोपड़ी बनाया और उसमें रहने लगे। अंत में एसी एमन को गांधी जी से हार माननी पड़ी। लेकिन एमन ने शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के साथ-साथ व्यवहार में क्रूरता और हैवानियत को और बढ़ा दिया। ए सी एमन के रुतबे में कमी न आए इसलिए उसने आम जनमानस को बहुत परेशान करना शुरू किया। गर्मी के दिनों में वह अपने ऊपर हवा करवाने के लिए गांवो में अपने आदमी भेजकर गांव से लोगों को उठवा लेता था उसने बेगार में अपने ऊपर हवा करवाता था। हद तो तब हो गई की जब वह औरतों को भी हवा करने के लिए उठवाने लगा और उनका शोषण करता। यह पूरे चम्पारण में रह रहे रहवासियों के लिए शर्मसार करने जैसा था। चूकी भारत में महिलाओं को देवी भी माना जाता है। इसलिए महिलाओं का शोषण बर्दास्त के बहार हो रहा था।


 इसी बीच स्थानीय पत्रकार दीपेंद्र बाजपेई से बात करने पर पता चला की एमन ने ज्यादा से ज्यादा महिलाओं का शोषण किया और उन्हें उपहार के रूप में जमीन भेंट किया। यह भी पता चलता है की एमन ने एक थारु जनजाति की महिला के साथ शारीरिक सबंध बनाया। जिससे उसे एक पुत्री का जन्म हुआ। उस महिला को तो उसने चम्पारण में ही छोड़ दिया और उस बेटी को इंग्लैंड लेकर चला गया। जिसका पालन पोषण इंग्लैंड में ही हुआ। कुछ वर्ष पहले एमन की बेटी चम्पारण आई तो उसने अपनी सारी संपत्ती गांव के लोगों को भेट कर दिया और भारत से विदा ले ली। एमन जब बीमार हुआ तो आसपास के क्षेत्र के लोगों में ख़ुशी की लहर थी क्योंकि एमन बहुत ज्यादा बीमार था।लेकिन कुछ दिनों बाद वह पूरी तरह से ठीक हो गया। अब तो हैवानियत को नया जन्म मिल गया। उसने ठीक होने के बाद बहुत से निर्दोष जनों को दंडित किया। अब वह काम करने का तरीका बदलना चाह रहा था। उसने अपने से नीचे और कई अधिकारीयों की नियुक्ति कर दी। 


उनमें से एक राधाकान्त बाजपेई के दादा जी रामप्रसाद बाजपेई जी की भी नियुक्ति हुई थी उन्हें दस आदमी और एक हाथी मिला था जिसपर बैठकर वे टैक्स वसूली करने जाते थे। टैक्स वसूली होने के बाद एमन को टैक्स दे दिया जाता था। अब एमन अयास्सी जीवन जा रहा था। इसी बीच एमन फिर से बीमार हुआ और इस बार उसने दुनिया छोड़ दी। जब एमन नही रहा यह बात जब लक्ष्मण प्रसाद बाजपेई को पता चला तो उनको यकीन नही हुआ। उन्होंने कोठी पर जाना बिल्कुल उचित नही समझा और कब्रिस्तान में ही उसकी लाश के आने में इंतजार में छिपकर बैठ गए। करीब चार बजे के आसपास उसकी लाश को कब्रिस्तान ले जाया जाता है। तब लक्षमण प्रसाद बाजपेई को यकीन हुआ की अब एमन इस दुनिया में नही रहा। लेकिन एमन के किस्से आज भी किसी की रूह काँपने जैसा महसूस कराते हैं।