वैयक्तिक सेवा कार्य में संचार का महत्व - The importance of Communication In Social Case work


 1. बिना संचार से सेवार्थी तथा कार्यकर्ता अपनी बात को एक दूसरे तक नहीं पहुँचा सकते। 

 2. संचार का स्पष्ट होना आवश्यक है। 

3. संचार में प्रयोग की गयी भाषा सरल व सेवार्थी को समझ में आने वाली हो। 

4. संचार सेवार्थी तथा कार्यकर्ता बीच के सम्बन्ध को घनिष्ठ करता है। 

5. संचार के माध्यम से ही सेवार्थी अपनी समस्या को कार्यकर्ता के सामने रख पाता है।  

वैयक्तिक सेवा कार्य संचार में सन्दर्भित करना  कई बार, सम्बन्ध समाप्ति से पूर्व ही सेवार्थी को किसी अन्य वैयक्तिक कार्यकर्ता या चिकित्सक जैसे सामूहिक कार्यकर्ता या इसी प्रकार से किसी अन्य संस्था को, कुछ महत्वपूर्ण कारणों से सन्दर्भित कर दिया जाता है। यह एक प्रक्रिया है, जिसके बारे में न तो सेवार्थी को जानकारी होती है और न ही उसको अधिकार होता है कि वह उनका उपयोग करे। सन्दर्भित करने वाले कार्यकर्ता द्वारा सन्दर्भित प्रक्रिया में मदद करने की प्रक्रिया का अन्त नहीं होता, परन्तु उसके साथ सेवार्थी का अब कोई अनुबन्ध नहीं रहता। सेवार्थी का एक नये चिकित्सक या संस्था के साथ मदद प्राप्त करने का सम्बन्ध स्थापित होता है।  सन्दर्भित करने की प्रक्रिया निम्न स्थितियों में की जाती है-  

1. जब किसी विशेष प्रकार की चिकित्सा या उपचार की सेवार्थी को जरूरत होती है, जिससे उसके उपचार का लक्ष्य पूरा होता हो। 

2. जब कार्यकर्ता तथा सेवार्थी उपचार में आगे नहीं बढ़ पाते अर्थात् कार्यकर्ता को सेवार्थी के उपचार में परेशानी आती है।  तब केस को किसी अन्य संस्था के लिए सन्दर्भित कर दिया जाता है। कुछ स्थितियों तथा बिन्दुओं में कार्यकर्ता सन्दर्भित तब करता है, कि वह यह सुनिश्चित करता है कि उसके पास आवश्यक सेवाओं की कमी हैं अतः वह सेवार्थी को वह सेवायें नहीं उपलब्ध करवा पाता है, जिनकी उसके उपचार में आवश्यक होती है। सन्दर्भित करने वाला कार्यकर्ता, सेवार्थी का सन्दर्भित नोट तैयार करता है, जिसमें सेवार्थी की समस्या का विवरण, कार्यकर्ता द्वारा इस्तेमाल की गयी सभी विधियाँ, प्रयोग, समाधान आदि का विवरण दिया जाता है।  सन्दर्भित करने की प्रक्रिया एक प्रकार से सम्बन्ध समाप्ति की स्थिति होती है परन्तु  निर्दिष्ट स्थिति अन्तिम स्थिति नहीं होती है। 

सन्दर्भित नोट को तैयार करने के लिये निम्न बिन्दुओं का होना आवश्यक है-  

1. सन्दर्भित करने के कारण का विवरण। 

2. सन्दर्भित प्रक्रिया में समाहित, सकारात्मक तथा नकारात्मक भावनाओं की चर्चा। 

3. सभी प्रश्नों के उत्तर सही ढंग से होने चाहिए। 

4. सेवार्थी को नये सम्बन्ध के लिये तैयार करना। यदि सन्दर्भित प्रक्रिया आवश्यक सेवाओं के उपलब्ध न हो पाने के कारण की जा रही है, तो कार्यकर्ता अगर चाहे तो एक एडवोकेट या लाइजनिगं कर्ता की भूमिका भी अदा कर सकता है। ऐसा करने से यह पता चल जायेगा कि समुदाय में सेवार्थी को सुविधा पहुँचाने वाले तथा उसके लिये उपयोगी कौन- कौन से संसाधन या सेवायें उपलब्ध है। एडवोकेसी तब काम आती है, जब सेवार्थी को संस्था द्वारा सेवायें प्राप्त नहीं होती तब वैयक्तिक कार्यकर्ता नियमों को ध्यान में रखते हुये एक की भूमिका निभाते हुये सेवार्थी को सेवायें दिलवाने का पूरा प्रयास करता है।