वैयक्तिक समाज कार्य के चरण - Steps Of Social Case Work.


वैयक्तिक समाज कार्य में कार्यकर्ता सेवार्थी की सहायता विभिन्न चरणों के माध्यम से करता है, ये चरण सेवार्थी की विभिन्न समस्याओं की जड़ में जाकर, उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं समस्या-समाधान में सहायक होते हैं।

 वैयक्तिक समाज कार्य के तीन चरण हैं जिनका उपयोग करते हुए कार्यकर्ता सेवार्थी को अपेक्षित सहायता उपलब्ध कराता है : 

(1) मनोसामाजिक अध्ययन; 

(2) निदान एवं मूल्यांकन, तथा 

(3) उपचार। 

1. मनोसामाजिक अध्ययन - सर्वप्रथम कार्यकर्ता सेवार्थी के साथ मधुर सम्बन्धों की स्थापना करता है, वह सेवार्थी को यह विश्वास दिलाता है कि वह उसकी सहायता निःस्वार्थभाव से करेगा इसके लिए कर्ता को कुछ जानकारियाँ चाहिए। कर्ता सर्वप्रथम सम्बन्ध, समर्थन, पुनराश्वासन, स्पष्टीकरण, सलाह, व्याख्या आदि का उपयोग करते हुए कार्यकर्ता, सेवार्थी के साथ इस प्रकार सम्बन्ध स्थापित करता है कि उसकी चिन्ता कम हो सके, उसके आत्मविश्वास में वृद्धि हो सके, वह अपनी समस्या के विभिन्न पक्षों के परिपेक्ष्य में सोंचते हुए विचार व्यक्त कर सके, वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए समस्या-समाधान में कार्यकर्ता का अपेक्षित सहयोग कर सके। सेवार्थी की मनोसामाजिक परिस्थितियों का अध्ययन, करने के लिए कार्यकर्ता को सेवार्थी के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित करना नितान्त आवश्यक है क्योंकि ऐसा करके वह सेवार्थी में आत्मनिर्णायात्मक मनोवृत्ति का विकास करता है जिससे सेवार्थी अपने विषय में कार्यकर्ता को आवश्यक सूचनायें दे सके, साथ ही कार्यकर्ता सेवार्थी को यह विश्वास दिलाता है कि उसके द्वारा दी गई सूचनाओं को पूर्णतः गोपनीय रखा जायेगा। कार्यकर्ता और सेवार्थी के मध्य मधुर सम्बन्ध समस्या-समाधान के लिए महत्वपूर्ण होता है। 

1. वैयक्तिक अध्ययन - सेवार्थी के व्यक्तित्व तथा उसकी समस्या का सम्पूर्णता में अध्ययन करने के लिए वैयक्तिक अध्ययन का प्रयोग, वैयक्तिक समाज कार्यकर्ता द्वारा किया जाता है। यह ऐसा अध्ययन का ढंग होता है जिसमें कार्यकर्ता विभिन्न सूचनाओं के स्रोतों का प्रयोग करते हुए सेवार्थी तथा उसकी समस्या के विभिन्न पक्षों के विषय में अपेक्षित समस्त सूचनाओं को संग्रहीत कर लेता है। इस विधि के माध्यम से अधिक विस्तृत 
एवं पूर्ण सूचनाओं का संग्रह किया जा सकता है तथा इसके अन्तर्गत सेवार्थी के व्यक्तित्व तथा उसकी समस्या से सम्बन्धित विभिन्न तत्वों का संकलन तथा सम्पूर्णता की स्थिति में स्वीकार करते हुए सूचना को एकत्रित करने का प्रयास किया जाता है। कार्यकर्ता इस विधि का उपयोग वैज्ञानिक ज्ञान एवं निपुणताओं का प्रयोग करते हुए करता है जिससे सूचनाओं में वैज्ञानिकता हो और वास्तविक सूचनाएँ प्राप्त हो सकें। इस विधि का प्रयोग करते हुए यह जानने का प्रयास किया जाता है कि आन्तरिक संरचना के पक्ष कौन से हैं तथा इन पक्षों एवं बाहय वातावरण के मध्य सम्बन्ध क्या हैं। उपरिलिखित प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए कार्यकर्ता के द्वारा विभिन्न सूचना के स्रोतों एवं प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है। 

 वैयक्तिक अध्ययन पद्वति के दौरान कार्यकर्ता सेवार्थी तथा उससे सम्बन्धित अन्य व्यक्ति से सूचनाएं प्राप्त करता हैं, सेवार्थी के परिवार, व्यवसाय, शिक्षा मनोरंजन, चिकित्सा आदि से सम्बन्धित सूचनाएँ संग्रहीत करता है, सेवार्थी के इष्टमित्र, सगे  सम्बधी से सूचनाएँ प्राप्त करना है जोकि सेवार्थी के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित हैं, सेवाथी के निजी दस्तावेज, पत्र, डायरी इत्यादि से भी कार्यकर्ता सूचनाएँ एकत्रित करता है। वैयक्तिक अध्ययन पद्धति में कार्यकर्ता विभिन्न प्रविधियों का प्रयोग करते हुए सेवार्थी से महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त करता है, 

जिनमें कुछ निम्नलिखित हैं। 

(1) इसमें कार्यकर्ता बिना किसी अनुसूची के औपचारिक साक्षात्कार करता है, 
(2) सेवार्थी के व्यक्तिगत इतिहास को जानने के लिए उसके दस्तावेजों से इच्छित सूचनाएँ एकत्रित करता है। 

 (3) जीवन इतिहास की रूपरेखा तैयार करता है, तथा

 (4) संगठनात्मक अभिलेखों का अध्ययन एवं अवलोकन करते हुए विभिन्न सूचनाओं का संकलन कार्यकर्ता द्वारा किया जाता है। 

2. निदान एवं मूल्यांकन - निदान शब्द का तात्पर्य समस्या या रोग के विषय में सम्पूर्ण जानकारी से है। अधिकांशतः निदान शब्द का उपयोग चिकित्सा से सम्बन्धित क्षेत्रों या चिकित्साशास्त्र में किया जाता है जहाँ पर इसका तात्पर्य रोग के विषय में समस्त जानकारियों से है। लेकिन समाज कार्य में निदान शब्द का तात्पर्य चिकित्साशास्त्र के अन्तर्गत प्रयुक्त किये जाने वाले निदान से कहीं अधिक व्यापक है। वैयक्तिक समाज कार्य में न मात्र समस्या के विषय में पूर्ण ज्ञान बल्कि जिस व्यक्ति की सहायता की जानी है, उसके पारिवारिक, व्यक्तिगत इतिहास को ध्यान में रखते हुए उसकी आन्तरिक एवं वाह्य परिस्थितियों का भी ज्ञान प्राप्त किया जाता है। 

अतः हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि समाज कार्य में प्रयुक्त किये जाने वाले निदान शब्द का अर्थ चिकित्साशास्त्र में प्रयुक्त होने वाले निदान से कहीं अधिक व्यापक है। मेरी रिचमण्ड के मत में, ‘‘सामाजिक निदान वस्तुतः एक सेवार्थी के व्यक्तित्व एवं सामाजिक परिस्थिति की सही परिभाषा करने का प्रयास है।’’ इसी कड़ी में हरबर्ट आप्टेकर के मत में, ‘‘निदानात्मक सम्प्रदाय के दृष्टिकोण के अनुसार निदान उस समस्या के कारण की खोज है जो किसी सेवार्थी को कार्यकर्ता के पास सहायता के लिए जाता है। इस तरह निदान ऐसे मनोवैज्ञानिक अथवा व्यक्तित्व सम्बन्धी कारकों जो सेवार्थी की समस्याओं के साथ कारणात्मक सम्बन्ध रखते हैं, तथा सामाजिक अथवा पर्यावरणात्मक कारकों जो उसे यथास्थिति बनाये रखते हैं, दोनों को समझने से सम्बन्धित हैं।’’ निदान सेवार्थी की समस्या, उसके पर्यावरण एवं व्यक्तित्व को सही रूप में जानने का प्रयास है।

 निदान एक प्रक्रिया है जिसमें समस्या से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न तथ्यों को एकत्रित किया जाता है, इसमें सेवार्थी की शारीरिक, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक कार्यात्मकता का निरीक्षण एवं परीक्षण किया जाता है, पर्यावरण से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न कारकों को समस्या के सन्दर्भ में दृष्टिगत किया जाता है तथा सेवार्थी एवं पर्यावरण दोनों का एक साथ विश्लेषण करते हुए समस्या के सम्बन्ध में कुछ निष्कर्ष निकाले जाते हैं। सेवार्थी की समस्या के कारणों को जानने एवं विश्लेषण करने का सफलतम प्रयास किया जाता है।