आर्थिक उन्नति - समुदायिक संगठन का कार्यक्षेत्र - SCOPE OF COMMUNITY ORGANIZATION.
समुदायिक संगठन का कार्यक्षेत्र
सामुदायिक विकास के लिए यह आवष्यक है कि समुदाय के सदस्यों के जीवन की मूलभ्ूत आवष्यकताओं को पूरा किया जाए और इसके लिए आर्थिक उन्नति आवष्यक है आर्थिक उन्नति के लिए निम्नलिखत कार्य किये जा सकते है।
(1) आर्थिक उन्नति
(क) कृषि एवं कृषि से सम्बन्धित कार्य
प्रायः देखा जाता है कि ग्रामीण सामुदायिक सदस्य अषिक्षा एवं अज्ञानता के कारण कृषि के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न विकास संस्थाओं के विषय मे अनभिज्ञ रहते है।
दूसरी तरफ भ्रष्टाचार एवं व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण कर्मचारी कृषि से सम्बन्धित सुविधाओं को आम सदस्यों तक नही पहुंचने देते है। इन कर्मियों के कारण न तो उपलब्ध साधनों का उचित सदुपयोग ही हो पाता है और न ही आम सदस्य लाभान्वित हो पाते है।
कार्यकर्ता अपने व्यावसायिक ज्ञान एवं कार्यकुषलता से सदस्यों को कृषि विकास के लिये उपलब्ध साधनों जैसे अच्छे किस्म के उत्पादक बीज, खाद, नये एवं अधिक कार्यकुषल कृषि यन्त्रों के बारे में उनका मार्गदर्षन करता है।
(ब) सहकारी खेती एवं सहकारी बाजार से सम्बन्धित कार्य
ग्रामीण सामुदाय के अधिकतर सदस्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं उससे सम्बन्धित कार्य ही है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण आज खेतिहर भूमि के टुकड़े होते जा रहे है। इससे न तो उसमें आधुनिक मषीनों का प्रयोग हो पाता हैय और न ही उत्पादन बढ़ पाता है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता इस बारे में किसानों का मार्गदर्षन करता है तथा उन्हें सहकारी खेती के लिये प्रोत्साहित करता है। सहकारी खेती की भावना का विकास होने से सदस्यगण सामूहिक रुप में अपने श्रम, पूंजी, संगठन और आधुनिक एवं उत्पादक मषीनों का प्रयोग मिलजुल कर करते है। इस प्रकार उत्पादन बढ़ता है और सदस्य लाभान्वित होते है।
(स) सहकारी दुग्ध केन्द्र स्थापना सम्बन्धी कार्य
प्रायः देखा जाता है कि ग्रामीण समुदायों में पषुपालन का विषेष महत्व है। लोगो को पषुओं के दुध का उचित मूल्य नही मिल पाता है। दूसरी तरफ दूध का अभाव है, वहां लोगों को शुद्ध दूध नहीं मिल पाता है और यदि मिलता है तो उसका मूल्य जनसधारण की सामर्थ्य के बाहर होता है। इस विम्डबना को महसूस करते हुए कार्यकर्ता अपने सामुदायिक अनुभव एवं कार्यकुषलता के कारण सदस्यों के समक्ष इस विषय पर विचार-विमर्ष करता है।
सदस्यों को लाभकारी निर्णय लेने के लिये प्रोत्साहित करता है तथा कोषिष करता है कि उनके दूध स्थापित सहकारी समिति के माध्यम से खरीद कर उसे उन स्थानों पर ले जाकर बेचा जाये जहां उन्हे उचित लाभ मिल सकें। इससे न केवल समुदाय का आर्थिक विकास होता है बल्कि सदस्यों में एकता एवं प्रेम-भाव का विकास होता है। इस प्रकार कार्यकर्ता समुदाय के सदस्यों को पषुपालन एवं सहकारी दुग्ध क्रय-विक्रय केन्द्र स्थापित करने को प्रोत्साहित करता है।
(द) स्थानीय औद्योगिक विकास सम्बन्धी कार्य
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता अपने ज्ञान एवं सामुदायिक अध्ययन के आधार पर समुदाय में उपलब्ध स्थानीय उद्योगों को भी बढ़ावा देने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार के उद्योगों के संचालन एवं विकास में वह सदस्यों की सहायता करता है। समुदाय में स्थापित विभिन्न संगठनों जैसे नवयुवक मंगल दल, महिला मंडल, कृषक समिति इत्यादि के माध्यम से कार्यकर्ता समुदाय के उन पुरुषों, महिलाओं एवं बेरोजगार नवयुवकों को संगठित करता है जिन्हे रोजगार की जरुरत है। इससे
(1) स्थानीय स्तर पर उपलब्ध उद्योगो के विकास एवं सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है
(2) बेरोजगार लोगों को रोजगार मिलता है,
(3) इस क्षेत्र में उपलब्ध कच्चे माल की खपत को बढ़ावा मिलता है और
(4) समुदाय का आर्थिक एवं सामाजिक विकास सम्भव होता है।
स्थानीय उद्योग के सार्वजनिक विकास के लिये सामुदायिक कार्यकर्ता न केवल सदस्यां में इसके संचालन के लिये प्रयास करता है, बल्कि उनके द्वारा उत्पन्न सामान का उचित मूल्य दिलाने के लिये, उसके विक्रय के विषय में चर्चा करता है, लाभकारी निर्णय लेता है। उत्पादन को बाजार में उचित मूल्य पर बेचने से उत्पादकों को प्रोत्साहन मिलता है और उनका जीवन-स्तर ऊपर उठता है।
(य) कुटीर उद्योग का विकास
समुदाय के आर्थिक विकास के लिये आवष्यक है कि कार्यकर्ता समुदाय के सदस्यों में कुटीर उद्योग सम्बन्धी ज्ञान का विकास करे व सस्ते और सुविधाजनक कुटीर उद्योग जैसे माचिस, साबुन, चमड़ा उद्योग, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन आदि कार्यो के लिये उन्हे प्रोत्साहित करे। इसके लिये समुदाय में काम कर रहे विभिन्न संगठनों की सहायता लेनी चाहिए। समुदाय के आस-पास उपलब्ध विभिन्न साधनां से इस कार्य को विकसित करने का प्रयास किया जा सकता है। इन उद्योगो के विकास से बेरोजगार सदस्यों को रोजगार उनके समुदाय में ही उपलब्ध हो जाते है।
कार्यकर्ता इन कुटीर उद्योगो द्वारा उत्पादित सामान की बिक्री के लिये भी सदस्यों के साथ विचार -विमर्ष करता है तथा उचित मूल्य हासिल करने की योजना बनाने में उनकी सहायता करता है। इससे सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
(र) व्यावसायिक मार्गदर्षन एवं सलाह सम्बन्धी कार्य
कभी-कभी सदस्यों में कार्य की योग्यता होते हुए भी वे बेरोजगार रहते है। कुछ सदस्य किसी विषेष क्षेत्र से लगाव रखते है लेकिन आवष्यक साधन व सुविधाओं के ज्ञान के अभाव के कारण व ऐच्छिक व्यवसाय-कार्य को नही अपना पाते है। कुछ नवयुवकों को षिक्षा में कोई खास लगाव नही होता लेकिन पारिवारिक लगाव के कारण उन्हे विद्यालय तक जाना पड़ता है। दूसरी तरफ कुछ नव-युवक षिक्षा के लिए इच्छुक होते है पर पारिवारिक असमर्थता के कारण वे उससे दूर रहते है। ऐसे सभी मामलों में व्यावसायिक मार्गदर्षन एवं सलाह की आवष्यकता होती है। कार्यकर्ता अपने व्यावसायिक प्रषिक्षण एवं सामुदायिक अनुभव के आधार पर इन विषयों में सदस्यों का मार्गदर्षन कर सकता है। इसके अनुसार व्यवसाय दिलाने में वह सदस्यों की मदद कर सकता है।
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