शैक्षणिक विकास - समुदायिक संगठन का कार्यक्षेत्र - SCOPE OF COMMUNITY ORGANIZATION.
शैक्षणिक विकास
समुदाय के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये आवष्यक है कि शैक्षणिक विकास पर बल दिया जाये। षिक्षा एक ऐसा विषय है जो व्यक्तियों किसी भी विषय पर योजनाबद्ध तरीके से चिंतन करने की योग्यता प्रदान करते है। षिक्षा नागरिकों का एक संवैधानिक अधिकार होते हुये भी आज देष के लगभग 60 प्रतिषत जनसंख्या अषिक्षित है। इसलिए सामुदायिक संगठन के क्षेत्र में शैक्षणिक विकास का अपना महत्व है। षिक्षा के विकास के लिये कार्यकर्ता क्षेत्र में कार्यरत सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं का विस्तार करवाने कार्यरत संस्थाओं से सामुदायिक अषिक्षित नवयुवकों, बच्चों एवं अषिक्षिति युवकों तथा कृषकों को ष्क्षित कराने का प्रयास निम्नलिखित प्रकार से करता है।
(अ) प्राथमिक एवं मूलभूत षिक्षा विकास सम्बन्धी कार्य
उन समुदायों में जहां के नागरिक न तो स्वयं षिक्षित है और न ही बच्चों की षिक्षा पर बल देते है। कार्यकर्ता सदस्यों में व्याप्त षिक्षा के प्रति उनके निरुत्साह के विभिन्न आर्थिक, सामाजिक कारणों का पता लगाता है। कारणों की जानकारी के पष्चात् बच्चों के शैक्षणिक अधिकार कार्य पर चर्चा कर इसे प्राथमिक कार्य के रुप में स्वीकार करवा कर उनकी सहायता करता है। षिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों को शैक्षणिक उद्देष्य की पूर्ति के लिये सामुदायिक सदस्यों का सहयोग प्राप्त करने लिये प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता अषिक्षित बच्चों को नियमित षिक्षा प्रदान कराने के लिये उनके माता पिता समुदाय के वरिष्ठ सदस्यां, षिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों एवं बच्चों के साथ कार्य का प्राथमिक एवं मूल षिक्षा के विकास के क्षेत्र में सहायक होता है।
(ब) प्रौढ़ षिक्षा और प्रकार्यात्मक षिक्षा विकास सम्बन्धी कार्य
सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित प्रौढ़ षिक्षा एवं प्रकार्यात्मक षिक्षा के विकास में कार्यकर्ता विभिन्न रुपों में सहायक होता है। सर्वप्रथम वह सदस्यों को इस प्रकार के संचालित कार्यक्रमों की महत्ता एवं आवष्यकता का बोध कराता है। इसकी दूसरी तरफ प्रौढ़ षिक्षा एवं प्रकार्यात्मक षिक्षा के जिम्मेदार कर्मचारियां की लाभार्थियों की आवष्यकता के अनुरुप कार्यक्रम का प्रारुप तैयार करने में सहायता करता है। इस सबसे
(1) सामुदायिक सदस्यों को शैक्षणिक कार्यक्रमों के विषय में जानकारी होती है,
(2) जरुरतमन्द सदस्यों को लाभ मिलता है,
(3) संस्था के उद्देष्यों की पूर्ति होती है,
(4) सरकारी जिम्मेदारियो की पूर्ति होती है
(5) सामुदायिक संगठन कार्य सम्भव होता है,
(6) सामुदायिक सदस्यों एवं संस्थाओं के बीच सम्बन्ध बढ़ता है,
(7) सामुदायिक कल्याण के साथ-साथ राष्ट्र कल्याण को बढ़ावा मिलता है।
(स) वाचनालय एवं पुस्तकालय विस्तार सम्बन्धी कार्य
जनसंख्या की दृष्टि से भारत विष्व का एक दूसरा वृहद् देष होने के कारण यहां की कुछ जनसंख्या ऐसे भागों में निवास करती है जहां देष-विदेष के समाचार तो दूर रहे प्रान्तीय स्तर के भी समाचार नहीं मिलते। सरकारी समाज कल्याण संस्थायें एवं स्वयंसेवी संगठन भी ऐसे क्षेत्रों में कार्यरत नही है। एक समुदाय मे जहां एक बड़ी जनसंख्या निवास करती है, उनके स्वयं के सहयोग से सामूहिक वाचनालय एवं पुस्तकालय की स्थापना की जा सकती है। इस कार्य की सफलता के लिए कार्यकर्ता सदस्यों की पुस्तकालय एवं वाचनालय सम्बन्धी आवष्यकता के विषय में विचार-विमर्ष कर इसके स्थापन एवं संचालन की योजना तैयार करने में सदस्यों की सहायता करता है। ऐसे कार्यक्रम मे सहायता प्रदान करने वाली विभिन्न संस्थाओं एवं सगठनों के विषय में उन्हे जानकारी देता है। जिससे
(1) सामुदायिक सदस्यों को विभिन्न प्रकार की उपलब्ध पुस्तकों, समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होता है,
(2) सदस्यों का खाली समय अच्छे कार्य में व्यतीत हो जाता है,
(3) कार्यरत संस्थाओं के उद्देष्यों की पूर्ति सम्भव होती है और
(4) समुदाय में पारस्परिक सहयोग, संगठन एवं कल्याण का विकास सम्भव होता है।
(द) अपंगो के लिए षिक्षा संबंधी कार्य
अशिक्षित एवं अविकसित समुदायों में अपंग सदस्यों को एक सामाजिक बोझ समझकर इन्हें इनके सामान्य अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता उनकी अनेक प्रकार से सहायता कर सकता है। इनके प्रति परिवार व समुदाय में सदस्यों का दृष्टिकोण बदल सकता है। सामुदायिक सामर्थ्यता के अध्ययनोपरान्त कार्यकर्ता सदस्यां में इन नागरिकों के शैक्षणिक विकास के लिये विषेष विद्यालय की स्थापना में भी इनकी सहायता कर सकता है। अन्य कल्याणकारी संस्थाओं का ध्यान उनकी ओर खींच कर उनके लिये षिक्षा की व्यवस्था कर सकता है।
(य) जनसंख्या षिक्षा के विकास सम्बन्धी कार्य
सरकारी, स्वयं सेवी संस्थाओं एवं स्वयं सेवकों के सतत् प्रयास के बाद भी आज देष की जनसंख्या यहॉ के उपलब्ध साधनों से कई गुनी अधिक है। सीमित साधनां में भी जनसंख्या में लगातार होने के कारण अभी भी हम आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य एवं विकास की दृष्टि से पीछे है। झुग्गी-झोपड़ियों की तो बाढ़ सी आ रही है और यहां के अनेक बच्चे अपने अधिकारों से वंचित होकर अपराधी व्यवहारों की तरफ अग्रसर हो रहे है।
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय की जनसंख्या समस्या का अध्ययन करता है। जनसंख्या सम्बन्धी सरकारी नीतियों, जनसंख्या वृद्धि के कारणों एवं इसके प्रभावों के विषय में लोगो का ज्ञानवर्धन कर सकता है। इसके साथ-साथ कार्यकर्ता छोटे परिवार के मूल्य को स्थापित करने में उनकी सहायता करता है। जनसंख्या नियंत्रण के लिये काम कर रही सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाआें से लोगों को अवगत कराता है जिससे जरुरतमन्द लोग लाभान्वित हो सकें। इसके साथ साथ जनसंख्या के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थाओं के कर्मचारियों और जरुरतमंद सदस्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित कराने में सहायक होता है।
समुदाय के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिये आवष्यक है कि शैक्षणिक विकास पर बल दिया जाये। षिक्षा एक ऐसा विषय है जो व्यक्तियों किसी भी विषय पर योजनाबद्ध तरीके से चिंतन करने की योग्यता प्रदान करते है। षिक्षा नागरिकों का एक संवैधानिक अधिकार होते हुये भी आज देष के लगभग 60 प्रतिषत जनसंख्या अषिक्षित है। इसलिए सामुदायिक संगठन के क्षेत्र में शैक्षणिक विकास का अपना महत्व है। षिक्षा के विकास के लिये कार्यकर्ता क्षेत्र में कार्यरत सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं का विस्तार करवाने कार्यरत संस्थाओं से सामुदायिक अषिक्षित नवयुवकों, बच्चों एवं अषिक्षिति युवकों तथा कृषकों को ष्क्षित कराने का प्रयास निम्नलिखित प्रकार से करता है।
(अ) प्राथमिक एवं मूलभूत षिक्षा विकास सम्बन्धी कार्य
उन समुदायों में जहां के नागरिक न तो स्वयं षिक्षित है और न ही बच्चों की षिक्षा पर बल देते है। कार्यकर्ता सदस्यों में व्याप्त षिक्षा के प्रति उनके निरुत्साह के विभिन्न आर्थिक, सामाजिक कारणों का पता लगाता है। कारणों की जानकारी के पष्चात् बच्चों के शैक्षणिक अधिकार कार्य पर चर्चा कर इसे प्राथमिक कार्य के रुप में स्वीकार करवा कर उनकी सहायता करता है। षिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों को शैक्षणिक उद्देष्य की पूर्ति के लिये सामुदायिक सदस्यों का सहयोग प्राप्त करने लिये प्रोत्साहित करता है। इस प्रकार सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता अषिक्षित बच्चों को नियमित षिक्षा प्रदान कराने के लिये उनके माता पिता समुदाय के वरिष्ठ सदस्यां, षिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों एवं बच्चों के साथ कार्य का प्राथमिक एवं मूल षिक्षा के विकास के क्षेत्र में सहायक होता है।
(ब) प्रौढ़ षिक्षा और प्रकार्यात्मक षिक्षा विकास सम्बन्धी कार्य
सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित प्रौढ़ षिक्षा एवं प्रकार्यात्मक षिक्षा के विकास में कार्यकर्ता विभिन्न रुपों में सहायक होता है। सर्वप्रथम वह सदस्यों को इस प्रकार के संचालित कार्यक्रमों की महत्ता एवं आवष्यकता का बोध कराता है। इसकी दूसरी तरफ प्रौढ़ षिक्षा एवं प्रकार्यात्मक षिक्षा के जिम्मेदार कर्मचारियां की लाभार्थियों की आवष्यकता के अनुरुप कार्यक्रम का प्रारुप तैयार करने में सहायता करता है। इस सबसे
(1) सामुदायिक सदस्यों को शैक्षणिक कार्यक्रमों के विषय में जानकारी होती है,
(2) जरुरतमन्द सदस्यों को लाभ मिलता है,
(3) संस्था के उद्देष्यों की पूर्ति होती है,
(4) सरकारी जिम्मेदारियो की पूर्ति होती है
(5) सामुदायिक संगठन कार्य सम्भव होता है,
(6) सामुदायिक सदस्यों एवं संस्थाओं के बीच सम्बन्ध बढ़ता है,
(7) सामुदायिक कल्याण के साथ-साथ राष्ट्र कल्याण को बढ़ावा मिलता है।
(स) वाचनालय एवं पुस्तकालय विस्तार सम्बन्धी कार्य
जनसंख्या की दृष्टि से भारत विष्व का एक दूसरा वृहद् देष होने के कारण यहां की कुछ जनसंख्या ऐसे भागों में निवास करती है जहां देष-विदेष के समाचार तो दूर रहे प्रान्तीय स्तर के भी समाचार नहीं मिलते। सरकारी समाज कल्याण संस्थायें एवं स्वयंसेवी संगठन भी ऐसे क्षेत्रों में कार्यरत नही है। एक समुदाय मे जहां एक बड़ी जनसंख्या निवास करती है, उनके स्वयं के सहयोग से सामूहिक वाचनालय एवं पुस्तकालय की स्थापना की जा सकती है। इस कार्य की सफलता के लिए कार्यकर्ता सदस्यों की पुस्तकालय एवं वाचनालय सम्बन्धी आवष्यकता के विषय में विचार-विमर्ष कर इसके स्थापन एवं संचालन की योजना तैयार करने में सदस्यों की सहायता करता है। ऐसे कार्यक्रम मे सहायता प्रदान करने वाली विभिन्न संस्थाओं एवं सगठनों के विषय में उन्हे जानकारी देता है। जिससे
(1) सामुदायिक सदस्यों को विभिन्न प्रकार की उपलब्ध पुस्तकों, समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होता है,
(2) सदस्यों का खाली समय अच्छे कार्य में व्यतीत हो जाता है,
(3) कार्यरत संस्थाओं के उद्देष्यों की पूर्ति सम्भव होती है और
(4) समुदाय में पारस्परिक सहयोग, संगठन एवं कल्याण का विकास सम्भव होता है।
(द) अपंगो के लिए षिक्षा संबंधी कार्य
अशिक्षित एवं अविकसित समुदायों में अपंग सदस्यों को एक सामाजिक बोझ समझकर इन्हें इनके सामान्य अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता उनकी अनेक प्रकार से सहायता कर सकता है। इनके प्रति परिवार व समुदाय में सदस्यों का दृष्टिकोण बदल सकता है। सामुदायिक सामर्थ्यता के अध्ययनोपरान्त कार्यकर्ता सदस्यां में इन नागरिकों के शैक्षणिक विकास के लिये विषेष विद्यालय की स्थापना में भी इनकी सहायता कर सकता है। अन्य कल्याणकारी संस्थाओं का ध्यान उनकी ओर खींच कर उनके लिये षिक्षा की व्यवस्था कर सकता है।
(य) जनसंख्या षिक्षा के विकास सम्बन्धी कार्य
सरकारी, स्वयं सेवी संस्थाओं एवं स्वयं सेवकों के सतत् प्रयास के बाद भी आज देष की जनसंख्या यहॉ के उपलब्ध साधनों से कई गुनी अधिक है। सीमित साधनां में भी जनसंख्या में लगातार होने के कारण अभी भी हम आर्थिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य एवं विकास की दृष्टि से पीछे है। झुग्गी-झोपड़ियों की तो बाढ़ सी आ रही है और यहां के अनेक बच्चे अपने अधिकारों से वंचित होकर अपराधी व्यवहारों की तरफ अग्रसर हो रहे है।
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय की जनसंख्या समस्या का अध्ययन करता है। जनसंख्या सम्बन्धी सरकारी नीतियों, जनसंख्या वृद्धि के कारणों एवं इसके प्रभावों के विषय में लोगो का ज्ञानवर्धन कर सकता है। इसके साथ-साथ कार्यकर्ता छोटे परिवार के मूल्य को स्थापित करने में उनकी सहायता करता है। जनसंख्या नियंत्रण के लिये काम कर रही सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाआें से लोगों को अवगत कराता है जिससे जरुरतमन्द लोग लाभान्वित हो सकें। इसके साथ साथ जनसंख्या के क्षेत्र में कार्यरत विभिन्न संस्थाओं के कर्मचारियों और जरुरतमंद सदस्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित कराने में सहायक होता है।
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