सामुदायिक संगठन के चरण - Steps of Community Organization
सामुदायिक
संगठन के चरण
Steps of Community Organization
किसी कार्य को व्यवस्थित ढंग से सम्पन्न करने के
लिये जिस प्रकार एक क्रमबद्ध योजना की आवष्यकता पड़ती है, उसी
प्रकार कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए कई चरणों से गुजरना आवष्यक है। ये चरण न
केवल सामुदायिक संगठन से जुड़े है बल्कि उन सभी कार्यक्रमों से भी जुड़े है जो एक
समुदाय में चल रहे है। जैसे कि वैयक्तिक सेवा कार्य के अभ्यास के लिए तीन प्रमुख
चरणों जैसे अध्ययन, निदान, उपचार
आदि को आवष्यक माना गया है, उसी प्रकार सामुदायिक संगठन कार्य
के भी विभिन्न विद्वानों ने कुछ चरण बताये है। इनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है
जिनसे गुजरना सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सामुदायिक संगठन कार्य के उद्देष्यों
को पूर्ण करने के लिए आवष्यक है।
1. अवलोकन
तथा स्वीकृति प्राप्त करना
प्रत्येक समाज की अपनी अलग संस्कृति एवं सभ्यता
होती है, जो दूसरे समाज से भिन्न होती है।
सदस्यगण अपनी संस्कृति को दूसरे समाज की संस्कृति से विषिष्ट मानकर उसमें प्रगाढ़
विष्वास रखते है और उसे बनाये रखना चाहते है।
सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता का मुख्य कार्य
समुदाय के सदस्यों के साथ कार्य कर,
उनके विचारों एवं
कार्यो में आवष्यक परिवर्तन स्थापित कर,
उनमें अपनी समस्या
समाधान एवं आवष्यकता की पूर्ति करने की योग्यता का विकास करना है।
2. अध्ययन
करना -
सामुदायिक संगठन कार्य का दूसरा चरण समुदाय का
अध्ययन करना है। अध्ययन कार्य की सफलता स्वीकृति के अभाव में असम्भव है। स्वीकृति
प्राप्त सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता को सामुदायिक सदस्यों के साथ द्वितीय चरण में
समुदाय की उन सभी समस्याओं एवं अनुभूत आवश्यकता का अध्ययन करना चाहिए जो उस
समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है।
3. आवश्यकता की चेतना का प्रसार करना
सामुदायिक सदस्य अपनी सामाजिक-आर्थिक एवं
सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण कुछ मूलभूत सामुदायिक आवशकताओं जैसे स्वास्थ्य, सफाई, समाजिक
आर्थिक उन्नति आदि को भी नहीं पहचान पाते है।
4. संगठन
का रचना करना
सामुदायिक संगठन कार्य का चौथा महत्वपूर्ण चरण
सामुदायिक सदस्यों में संगठन की आवशकयता एवं संगठित जीवन की उपयोगिता पर बल देते
हुए संगठित जीवन को प्रोत्साहन देना है।
5. नेतृत्व
का विकास करना
समुदाय में सगठन की रचना के पश्चात् योग्य नेता
के चुनाव की आवष्यकता होती है। योग्य नेता में अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को
प्रभावित करने तथा निर्देषित करने की क्षमता होनी चाहिए। वह अपनी शक्तियों का
प्रयोग-व्यक्तियों के विकास में करता है।
6. कल्याणकारी
योजना एवं कार्यक्रम तैयार करना
इसके
पष्चात् सामुदायिक संगठन कार्यकर्ता समुदाय की समस्या एवं आवष्यकतानुसार सामान्य
कल्याणकारी योजना बनाने एवं कार्यक्रम तैयार करने के लिये मार्गदर्षन देता है।
7. कार्यक्रमों
का कार्यान्वयन करना
कल्याणकारी
योजनाओं एवं कार्यक्रमों के निर्धारण के पष्चात् कार्यक्रमों का कार्यान्वयन किया
जाता है। अपने व्यावहारिक ज्ञान एवं अनुभव से कार्यकर्ता इस बात से पूर्ण अवगत
होता है कि कार्यक्रमों की सफलता सदस्यों की रुचि,
दक्षता और
सहभागिता पर निर्भर होती है।
8. साधनों
को संचालित करना
सामुदायिक
संगठन कार्यकर्ता विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी कल्याणकारी संस्थाओं की सेवाओं को
समुदाय के अनुरुप बनाने का प्रयास करता है।
9. मूल्यांकन
एवं ऐच्छिक परिवर्तन लाना
सामुदायिक
संगठन में मूल्यांकन का एक विषेष महत्व है। मूल्यांकन से हमें सामुदायिक
उद्देष्यों की सफलता एवं असफलता का ज्ञान होता है। हमें सदस्यों के कार्य के
वास्तविक परिणामों का ज्ञान होता है। इससे सदस्यों की कार्यषक्तियों, निपुणताओं, उनकी
कमियों, अक्षमताओं, दोषों
एवं सघर्षो को जानने में सुविधा होती है।
अन्तिम
चरण में कार्यकर्ता को यह देखने की आवष्यकता होती है कि सदस्यों में कहां तक स्वयं
अपनी सहायता करने की योग्यता का विकास हुआ है। क्या वे बिना कार्यकर्ता के स्वयं
सामूहिक निर्णय ले पाते है या नही,
कल्याणकारी
योजनाओं का निर्माण कर पाते है या नही,
और कार्यक्रमों को
क्रियान्वित कर पाते है या नही। उनकी सफलता इसमें है कि वह स्वयं समुदाय के लिये
अनावष्यक बन जाये।
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