समावेशी विकास की अवधारणा - Concept of inclusive development.

Concept of inclusive development

समावेशी विकास की अवधारणा

समावेशी विकास का मतलब वैसा विकास है जिसमें रोजगार के अवसर पैदा हों और जो गरीबी को कम करने में मदद करे। इसमें अवसर की समानता प्रदान करना और शिक्षा व कौशल विकास के द्वारा लोगों को सशक्त करना शामिल है अर्थात् समान अवसरों के साथ विकास करना ही समावेशी विकास है। दूसरे शब्दों में ऐसा विकास जो न केवल नए आर्थिक अवसरों को पैदा करेबल्कि समाज के सभी वर्गो के लिए सृजित ऐसे अवसरों की समान पहुंच को सुनिश्चित भी करे हम उस विकास को समावेशी विकास कह सकते हैं।समावेशी विकास में जनसंख्या के सभी वर्गो के लिए बुनियादी सुविधाओं यानी आवासभोजनपेयजलशिक्षाकौशलविकासस्वास्थ्य के साथ-साथ एक गरिमामय जीवन जीने के लिए आजीविका के साधनों की सुपुर्दगी भी करना हैपरन्तु ऐसा करते समय पर्यावरण संरक्षण पर भी हमें पूरी तरह ध्यान देना होगाक्योंकि पर्यावरण की कीमत पर किया गया विकास न तो टिकाऊ होता है और न समावेशी ही I वस्तुपरक दृष्टि से समावेशी विकास उस स्थिति को इंगित करता है जहां सकल घरेलू उत्पाद की उच्च संवृद्धि दर प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद की उच्च संवृद्धि दर में परिलक्षित हो तथा आय एवं धन के वितरण की असमानताओं में कमी आए।


भारत में समावेशी विकास की अवधारणा कोई नई बात नहीं है। प्राचीन धर्म ग्रन्थों का यदि अवलोकन करेंतो उनमें भी सभी लोगों को साथ लेकर चलने का भाव निहित है। सर्वे भवन्तु सुखिन में भी सबको साथ लेकर चलने का ही भाव निहित हैलेकिन नब्बे के दशक से उदारीकरण की प्रक्रिया के प्रारम्भ होने से यह शब्द नए रूप में प्रचलन में आयाक्योंकि उदारीकरण के दौर में वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को भी आपस में निकट से जुडऩे का मौका मिला और अब यह अवधारणा देश और प्रान्त से बाहर निकलकर वैश्विक सन्दर्भ में भी प्रासंगिक बन गई है। समावेशी विकास की अवधारणा पहले-पहल ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के मसौदे में प्रस्तुत की गई थी जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोगों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने और अवसर की समानता लाने की बात कही गई थी। 12वीं पंचवर्षीय योजना के मसौदे में इस पर और भी जोर दिया गया जिसमें गरीबी को कम करनेस्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाओं में सुधार और आजीविका के अवसर प्रदान करने जैसी बातों पर खास जोर दिया गया। सरकार द्वारा घोषित कल्याणकारी योजनाओं में इस समावेशी विकास पर विशेष बल दिया गया और 12वीं पंचवर्षीय योजना 2012-17 का तो सारा जोर एक प्रकार से त्वरितसमावेशी और सतत् विकास के लक्ष्य हासिल करने पर हैताकि 8 फीसद की विकास दर हासिल की जा सके।
ऐसा भी नहीं है कि इन छह दशकों में सरकार द्वारा इस दिशा में प्रयास नहीं किए गए केन्द्र तथा राज्य स्तर पर लोगों की गरीबी दूर करने हेतु अनेक कार्यक्रम बनेपरन्तु उचित अनुश्रवण के अभाव में इन कार्यक्रमों से आशानुरूप परिणाम नहीं मिले और कहीं तो ये कार्यक्रम पूरी तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। यही नहींजो योजनाएं केन्द्र तथा राज्यों के संयुक्त वित्त पोषण से संचालित की जानी थींवे भी कई राज्यों की आर्थिक स्थिति ठीक न होने या फिर निहित राजनीतिक स्वार्थो की वजह से कार्यान्वित नहीं की जा सकीं। समावेशी विकास ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों के संतुलित विकास पर निर्भर करता है। इसे समावेशी विकास की पहली शर्त के रूप में भी देखा जा सकता है। वर्तमान में हालांकि मनरेगा जैसी और भी कई रोजगारपरक योजनाएं प्रभावी हैं और कुछ हद तक लोगों को सहायता भी मिली हैपरन्तु इसे आजीविका का स्थायी साधन नहीं कहा जा सकताजबकि ग्रामीणों के लिए एक स्थायी तथा दीर्घकालिका रोजगार की जरूरत है। अब तक का अनुभव यही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सिवाय कृषि के अलावा रोजगार के अन्य वैकल्पिक साधनों का सृजन ही नहीं हो सकाभले ही विगत तीन दशकों में रोजगार सृजन की कई योजनाएं क्यों न चलाई गई हों।


इसके अलावा गांवों में ढ़ांचागत विकास भी उपेक्षित रहा फलत:गांवों से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन होता रहा और शहरों की ओर लोग उन्मुख होते रहे। इससे शहरों में मलिन बस्तियों की संख्या बढ़ती गई तथा अधिकांश शहर जनसंख्या के बढ़ते दबाव को वहन कर पाने में असमर्थ ही हैं। यह कैसी विडम्बना है कि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहीं जाने वाली कृषि अर्थव्यवस्था निरन्तर कमजोर होती गई और वीरान होते गएतो दूसरी ओर शहरों में बेतरतीब शहरीकरण को बल मिला और शहरों में आधारभूत सुविधाएं चरमराई यही नहीं रोजी-रोटी के अभाव में शहरों में अपराधों की बढ़ गई है। वास्तविकता यह है कि भारत का कोई राज्य ऐसा नहीं है जहां कृषि क्षेत्र से इतर वैकल्पिक रोजगार के साधन पर्याप्त संख्या में उपलब्ध होंपरन्तु मूल प्रश्न उन अवसरों के दोहन का है सरकार को कृषि में अभिनव प्रयोगों के साथ उत्पादन में बढ़ोतरी सहित नकदी फसलों पर भी ध्यान केन्द्रित करना होगा। यहां पंचायतीराज संस्थाओं के साथ जिला स्तर पर कार्यरत् कृषि अनुसंधान संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है जो किसानों से सम्पर्क कर कृषि उपज बढ़ाने की दिशा में पहल करे तथा उनके समक्ष आने वाली दिक्कतों का समाधान भी खोजे तभी कृषि विकास का इंजन बन सकती है। कृषि के बाद सम्बद्ध राज्य में मौजूद घरेलू तथा कुटीर उद्योगों के साथ पर्यटन पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।


समावेशी विकास की अवधारणा को  ध्यान में रखते हुए सरकार ने कई सारी योजनाओं की शुरूआत की है जो समाज के हाशिए के लोगों को मुख्यधारा में लाने में मदद करेगी और उन तक तीव्र आर्थिक विकास का फायदा पहुंचाएगी। ऐसी ही योजनाओं में से एक है प्रधानमंत्री जनधन योजना जिसने अपनी शुरूआत के महज दस महीनों में लाजवाब नतीजे हासिल किए हैं और 98 फीसदी घरों तक हमारी बैंकिंग प्रणाली की पहुंच हो गई है। (उन घरों के लोगों के बैंक का खाता खुल गया है)। इसी तरह मुद्रा बैंकसेतु (स्वरोजगार के लिए प्रतिभा उपयोगऔर स्किल इंडिया मिशन सरकार के कुछ ऐसे ही मजबूत कदम हैं जो देश में कुशल श्रम और आजीविका के अवसर मुहैया कराएंगे। साथ ही प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजनाप्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा योजना और अटल पेंशन योजना कुछ ऐसी योजनाएं हैं जो लोगों को टिकाऊ (जीवनसुरक्षा-तंत्र मुहैया कराएगी। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगाने लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया है और गांवों से हो रहे पलायन को रोकने में एक निश्चित भूमिका अदा की है। दूसरी तरफ किसान कार्डप्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट कुछ ऐसी योजनाएं हैं जो कृषक समुदाय को बड़े पैमाने पर मदद करेगीजो देश की सामाजिक-आर्थिक खुशहाली का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।

 हालांकि 1.25 अरब जनसंख्या वाले देश में सबसे बड़ी चुनौती ये है कि विकास के फायदों को समाज के सभी वर्गों और सभी हिस्सों तक केसे पहुंचाया जाए और यहीं पर तकनीक के उपयुक्त इस्तेमाल की भूमिका सामने आती है। हाल हीं मे डिजिटल इंडिया कार्यक्रम इसी चुनौती का सामना करने के लिए शुरू किया गया है ताकि तकनीक के प्रभावी और सक्षम इस्तेमाल से प्रशासन और सेवाओं को समाज के आखिरी व्यक्ति तक पहुंचाया जा सके। इस मिशन का उद्देश्यतकनीक के इस्तेमाल से शिक्षास्वास्थ्यकृषि और विनिर्माण क्षेत्र में आमूल-चूल बदलाव लाकर आमलोगों के जीवन की सामान्य गुणवत्ता में सुधार लाना है। भारतीय अर्थव्यवस्था समावेशी विकास के एक विराट ध्येय के साथ आगे बढ़ रही है और यह अपने नागरिकों के बीच अवसर और हैसियत की समानता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।

VAISHALI SCHOOL OF ECONOMICS