संस्कृत प्रयत्न - विचार आभ्यन्तर प्रयत्न और बाह्य प्रयत्न
प्रयत्न-विचार
वर्णों के
उच्चारण के लिए कण्ठ-तालु आदि उच्चारण यन्त्रों से जो क्रिया की जाती है, उसे
प्रयत्न
कहते दो प्रकार के होते हैं-आभ्यन्तर और बाह्य
आभ्यन्तर
प्रयत्न
ध्वनि
उत्पन्न होने के पहले वागिन्द्रिय द्वारा जो किया जाता है उसे आभ्यन्तर प्रयत्न
कहते हैं।
आभ्यन्तर प्रयत्न के पाँच भेद
१.
स्पृष्ट-सभी स्पर्श-वर्णों (क से म तक) का स्पृष्ट होता है इसके उच्चारण
के साथ
वागिन्द्रिय के उच्चारण-स्थान स्पर्श होता
२. वर्णों
का ईषत्-स्पृष्ट होता है य, र,ल, का
स्वर और
व्यंजन का
मध्यवर्ती होने से अन्तस्थ कहते हैं इसमें वागिन्द्रिय कुछ बन्द रहती
३.
विवृत-सभी स्वर-वर्णों का विवृत प्रयत्न होता इसमें वागिन्द्रिय खुली रहती है।
४. का ह)
ईषत्-विवृत प्रयत्न होता इसमें
कुछ खुली
रहती
५.
संवृत-हस्व अकार का संवृत प्रयत्न होता
बाह्य
प्रयत्न
उच्चारण
अन्त प्रयत्न बाह्य प्रयत्न कहते हैं इसके आठ भेद हैं-विवार, संवार,
नाद, अघोष, अघोष, अल्पप्राण और महाप्राण
(क) विवाह, श्वास और का प्रथम तथा द्वितीय वर्ण
अर्थात् क, ख,
ट, ठ, त, थ, प, तथा श, और स अघोष होते इनके उच्चारण केवल
श्वास
योग होता
है इसलिए इनकी श्वास-संज्ञा भी है इनके उच्चारण समय कण्ठ खुला रहता
इसलिए
इन्हें विवाह भी कहा जाता
(ख) संवार, नाद
और घोष-शेष व्यंजन तथा सभी स्वर, घोष कहे जाते हैं। इ
उच्चारण
में नाद का योग होता है तथा कण्ठ मुंदा रहता है। अत: इन्हें संवार और नाद भी कहते
ै
(ग) अल्पप्राण और महाप्राण-जिन
वर्णों के उच्चारण में कम श्वास या प्राण-वाय
उन्हें
अल्पप्राण कहते हैं। जिनके उच्चारण में अधिक प्राण वायु का प्रयोग किया जाता है,
महाप्राण
कहते हैं । साधारण: जिन व्यंजनों में हकार की ध्वनि सुनाई पडती है, उन्हें
महा
तथा अन्य
को अल्पप्राण कहते हैं। अन्त:स्थ अल्पप्राण है और उष्ण वर्ण महाप्राण । वगं क
द्वितीय और
चतुर्थ वर्ण महाप्राण होता है । रोमन लिपि में इनके लिए जोड़ना पड़ता है। जो
(ख),
घ (घ), च
(छ), ध (dh)
इत्यादि।
1 टिप्पणी
the text in the बाह्य प्र्यत्न says 'विवाह" while it should actually read विवार्
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वन्दे मातरं