संस्कृत व्याकरण - वर्ण-प्रकरण
संस्कृत व्याकरण - वर्णमाला - वर्ण-प्रकरण
व्याकरण-व्याकरण
एक शब्द शास्त्र है जिसके अध्ययन से शब्दों की उत्पत्ति, विकास, अर्थ एवं प्रयोग
का सम्यक् ज्ञान होता है । इसकी इकाइयों में वर्ण,
शब्द, वाक्य, संज्ञा, सर्वनाम, अव्यय, विशेषण, क्रिया, सन्धि, समास, उपसर्ग
प्रत्यय आदि प्रमुखता से जाने जाते हैं । कारक और विभक्तियों
का भी अध्ययन आवश्यक है । अत: क्रमशः उनका विवेचन किया जायेगा।
वर्ण-प्रकरण - वर्ण-शब्द
का वह खण्ड जिसका फिर टुकड़ा न हो सके,
वर्ण कहलाता है ।
टुकड़ा हो सकने की
स्थिति में इन्हें अक्षर कहते हैं । जैसे-क = क + अ । वस्तुत: व्यवहार में वर्ण और अक्षर में
कोई अन्तर नहीं किया जाता । वर्ण दो प्रकार के होते हैं
१. स्वर और
२. व्यंजन ।
स्वर - जिस
वर्ण का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से होता है, उसे
स्वर वर्ण कहते
हैं । इनकी संख्या १३ है ।
मूल-स्वर
इन्हें हस्व-स्वर भी कहते हैं । जैसे अ,
इ, उ, ॠ, लृ
= ५ ।
इनके उच्चारण में एक
मात्रा का समय लगता है ।
सन्धि-स्वर
- किसी-न-किसी सन्धि के आधार पर दो मूल-स्वरों से बने हुए स्वरों को सन्धि-स्वर
कहते हैं । इसे अच् सन्धि भी कहते हैं । जैसे-आ,
ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ
= ८ । आ, ई और ऊ स्वरों में दीर्घ-सन्धि होने
से इन्हें दीर्घ-स्वर भी कहते
हैं सभी सन्धि-स्वरों में दो मात्रा के उच्चारण का समय लगता है।
व्यञ्जन -
जिन वर्णों को हम बिना स्वर की सहायता से नहीं बोल सकते हैं उन्हें व्यञ्जन
वर्ण कहते
हैं। 'क'
में दो वर्ण हैं-'क' और
'अ'
। 'क' व्यंजन
है और 'अ'
स्वर । क
से लेकर ह तक ३३ व्यंजन वर्ण हैं । क्ष,
त्र, ज्ञ, संयुक्त
व्यञ्जन वर्ण
हैं । 'व्यञ्जयन्ति
अर्थात् प्रकटी कुर्वन्तीति व्यञ्जनानि ।'
प्लुत-स्वर
इसका कोई पृथक् संकेत-चिह्न नहीं है । जिसमें प्लुत-स्वर दिखाना होता है उसके
सामने ३
लिख देते हैं । जोर से या देर तक चिल्लाने में प्लुत स्वर रहता है।
इसके
उच्चारण में ३ मात्रा का समय लगता है । खास कर वेदों तथा संगीत में
प्लुत स्वर
प्रयुक्त होते हैं। जैसे-हे राम ३ अत्र आगच्छ ।
'एकमात्रो भवेद् हस्वः द्विमात्रो
दीर्घ उच्यते ।
त्रिमात्रश्च
प्लुतो ज्ञेयो व्यञ्जनम् चार्धमात्रकम् ।।'
स्पर्श-वर्ण
- कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग
और पवर्ग के २५ वर्ण स्पर्श वर्ण हैं । "(कादयोमावसाना:
स्पर्श:)"
घोष-वर्ण -
पाँचों
वर्गों के तृतीय, चतुर्थ और पंचम
वर्ण तथा य्, र, ल, व्
और ह घोप-बर्ष के
सभी वर्गों
के प्रथम और द्वितीय वर्ण तथा शू. प. स्की अघोष-वर्ण कहने ।
अघोष-वर्ण-
जिह्वामूलीय-
के और खू से पूर्व यदि ऐसा ४ चिह्न लगे तो उसे जिह्वामूलीय कहते हैं। जैस।
४ क, ५ ख ।
उपध्मानीय-
प और फ से
पूर्व यदि यह चिह्न लगता है तो उसे उपध्यानीय कहते हैं ।
४ व, ५ फ
सभी वर्गों
के प्रथम, तृतीय और पंचम
वर्ण तथा यू, र, लु, व्
अल्पप्राण है ,
अल्पप्राण-
सभी वर्गों
के द्वितीय और चतुर्थ वर्ण तथा शु, पु, स्, ह, महाप्राण हैं ।
महाप्राण-
अन्तःस्थ-
यू, ब्, लू, व को अन्तःस्थ वर्ण कहते हैं ।
ऊष्म वर्ण-
श उ, प्, स्, ह् उष्म वर्ण हैं ।
अयोगवाह-
अनुस्वार और विसर्ग को अयोगवाह कहते हैं ।
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