संस्कृत भाषा में अनुस्वार और अनुनासिक तथा अर्धस्वर और ऊष्म व्यंजन
अनुस्वार
और अनुनासिक- अनुस्वार का उच्चारण अर्धस्वर,
ऊष्म और ह से पूर्व नासिक्य ध्वनि को बताने के लिए होता है, जैसे:- संयम, संशय, संहार आदि।
अनुस्वार और अनुनासिक में अन्तर है। अनुस्वार एक अलग व्यंजन वर्ण है, परन्तु अनुनासिक कोई अलग ध्वनि नहीं है। जब किसी स्वर के उच्चारण में हवा
नासिका में से भी निकले तो वह स्वर अनुनासिक हो जाता है, जैसे: देवॉस्तरति, कस्मिंश्चित्।।
अर्धस्वर
और ऊष्म व्यंजन - य र ल व को अर्धस्वर
कहते हैं क्योंकि इनका उच्चारण स्वरों और व्यंजनों के बीच का है। आगे चलकर हम
देखेगे कि इन चारो अर्ध स्वरों का क्रमशः इ, ऋ, लृ और उ स्वरों के साथ विशेष संबंध
है। श ष ह का सामूहिक नाम ऊष्म है। ऊष्म ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख
में जीभ से रगड़ खाकर बाहर निकलती है। इनमें से ष का उचारण लगभग लुप्त हो
चुका है और अब इसका उच्चारण श के समान ही होने लगा है। पर संस्कृत शब्दो को
लिखते हुए श और ष का अंतर करना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए शेष शब्द में दोनों
व्यंजनों का उच्चारण एक जैसा होते हुए भी उन्हें अलग-अलग रूप में लिखना आवश्यक है।
निम्नलिखित शब्दों को ध्यानपूर्वक पढिए।
सुखी
आशा, आय:, देवः,
तव-तुम्हारा, स-वह (पु.) सा-वह (स्त्री.). एषः
यह (पुलिंग). एषा- यह (स्त्रीलिंगी). वेश: शेष बाकी सखा. एव।
वैसे
तो सभी भाषाओं में शुद्ध उच्चारण करना आवश्यक है पर संस्कृत में शुद्ध उच्चारण का
विशेष महत्त्व है। संस्कृत की एक सुदीर्घ और गंभीर मौखिक परम्परा है। संस्कृत की
आत्मा में प्रवेश करने के लिए शब्दों का मुखर उच्चारण बहुत महत्वपूर्ण है। संस्कृत
के मंत्रों का पाठ, श्लोकों का वाचन,
स्त्रोत का गायन आज भी प्रचलित है। संस्कृत की ध्वनियों का अपना एक
विशेष स्पन्दन है जो हमारी चेतना को प्रभावित करता है। इसलिए संस्कृत के वाक्यों
को मौन पढ़कर उनका अर्थ समझ लेना काफी नहीं है। उन्हे बार-बार ऊँची आवाज में बोलिए
ताकि आप संस्कृत शब्दों के स्पन्दन को आत्मसात् कर सके। इसी प्रकार पाठो में आए
श्लोकों को याद कर लीजिए और उनका बार-बार गायन कीजिए। इस प्रकार आप न केवल संस्कृत
के शब्दों और उनके अर्थों को समझ सकेंगे अपितु संस्कृत की आत्मा में भी सहज रूप से
प्रवेश कर सकेगे।
अकारान्त
शब्दों में अ का उच्चारण, संयुक्ताक्षरों के
विमित्र रूप नासिक्य ध्वनिया संयुक्ताक्षरों के पुराने रूप, संस्कृत
वाक्य, प्रार्थना। इस पाठ में हम संयुक्ताक्षरों के लेखन पर
ध्यान देगे। वैसे तो आप संयुक्तरों के लेखन से परिचित होगे लेकिन इनकी कुछ विशेष
बातों पर ध्यान दिलाना आवश्यक प्रतीत होता है।
जब
देवनागरी लिपि में किसी व्यंजन पर कोई भी मात्रा नहीं लगी होती तो उस व्यंजन को अ
ध्वनि के साथ बोला जाता है। जब केवल किसी व्यंजन को ही बताना होता है तो उस अक्षर
के नीचे हलन्त का चिह ( ् ) लगाते है तब उस व्यंजन का उच्चारण बिना स्वर के होता
है,
जैसेः
अहम्
- मैं
किम्
-
क्या
आम्
-
हाँ
रूपम्
- रूप, शक्ल
तत्
- वह (नपु. एक व.)
एतत्
- यह (नपु. एक व.)
नगरम्
- शहर
हृदयम्
-
हृदय, दिल
टिप्पणी:-
हिन्दी मे यदि किसी शब्द के अन्त में अ हो तो प्रायः उसका उच्चारण नहीं होता।
हिन्दी में कमल, चालक, सुमन आदि शब्दों का अंतिम अ पूरी
तरह उच्चारित नहीं होता। संस्कृत में इनका उच्चारण हिन्दी से कुछ भिन्न है तथा
इनके अंत का अ स्पष्ट सुनाई देता है (क-म-ल, बा-ल-क, सु-म-न)।
हिन्दी में समता, अपमान जैसे शब्दों
के बीच के स्वर का ला कर इन्हें समता, अपमान बोला जाता है। परन्तु संस्कृत में इस
अ स्वर का पूर्ण उच्चारण होता है और इन्हें स-म-ता, अ-प-मा-न बोला
जाता है।
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