सिगमंड फ्रायड का जीवन परिचय और मनोविश्लेष्ण सिद्धांत की व्याख्या

 


परिचय 

          सिगमंड फ्रायड का जन्म आस्ट्रिया-हंगरी  में हुआ। उनके माता-पिता यहूदी थे। फ्रायड के पिता ऊन के व्यापारी थे और माता इनके पिता की तीसरी पत्नी थीं। फ्रायड अपने सात भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। 3 साल की उम्र में फ्रायड के पिता लिपजिग (Leipzig) आ गए और उसके एक साल बाद वियना चले गए, जहाँ वे करीब 80 सालों तक रहे। फ्रायड ने वियना विश्वविद्यालय से 1881 में डॉक्टर ऑफ मेडिसिन किया। सन् 1938 में हिटलर के नाजी विद्रोह के कारण फ्रायड भागकर लन्दन चले गए।फ्रायड के प्रारम्भिक जीवन को देखने पर हमे पता चलता है  की आरम्भ से ही उनका झुकाव तंत्रिका विज्ञान की ओर था। सन् 1873 से 1881 के बीच उनका संपर्क उस समय के मशहूर तंत्रिका विज्ञानी अर्नस्ट ब्रुकी (Ernst Brucke) से हुआ|. फ्रायड, अर्नस्ट ब्रुकी से प्रभावित हुए .और उनकी प्रयोगशाला में कार्य प्रारम्भ किया। सन् 1900 फ्रायड के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष था। इसी वर्ष उनकी बहुचर्चित पुस्तक "इंटरप्रटेशन ऑफ़ ड्रीम" का प्रकाशन हुआ, जो उनके और उनके रोगियों के स्वप्‍नों के विश्लेषण के आधार पर लिखी गई थी। इसमें उन्होंने बताया कि सपने हमारी अतृप्त इच्छाओं का प्रतिबिम्ब होते हैं। इस पुस्तक ने उन्हें प्रसिद्ध बना दिया। कई समकालीन बुद्धिजीवी और मनोविज्ञानी उनकी ओर आकर्षित हुए. इनमें कार्ल जुंग, अल्फ्रेड एडलर, ओटो रैंक और सैनडोर फ्रैन्क्जी के नाम प्रमुख है। इन सभी व्यक्तियों से फ्रायड का अच्छा संपर्क था, पर बाद में मतभिन्नता हुई और लोग उनसे अलग होते गये।सन् 1909 में क्लार्क विश्व विद्यालय के मशहूर मनोविज्ञानी जी.एस. हाल द्वारा फ्रायड को मनोविश्लेषण पर व्याख्यान देने का निमंत्रण प्राप्त हुआ, जो उनकी प्रसिद्धि में मील का पत्थर साबित हुआ. इसमें फ्रायड के अलावा युंग, व्रील, जोन्स, फेरेन्कजी तथा कई अन्य मशहूर मनोविज्ञानी उपस्थित थे। जुंग और एडलर, फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद के कई बिन्दुओं से सहमत थे। परन्तु फ्रायड द्वारा सेक्स पर अत्‍यधिक बल दिए जाने को उन्होंने अस्वीकृत कर दिया। इससे अलग-अलग समय में वे दोनों भी इनसे अलग हो गए। जुंग ने मनोविश्लेषण में सांस्कृतिक विरासत के दखल पर और एडलर ने सामाजिकता पर बल दिया। सन् 1923 में फ्रायड के मुह में कैंसर का पता चला जिसका कारण उनका जरुरत से ज्यादा सिगार पीना बताया गया। सन् 1933 में हिटलर ने जर्मनी की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया. उसने साफ कहा कि फ्रायड वाद के लिए उसकी सत्ता में कोई जगह नही है। हिटलर ने फ्रायड की सारी पुस्तकों और हस्तलिपियों को जला दिया।

फ्रायड के मनोविश्लेष्ण सिद्धांत की व्याख्या के  आधार

            फ्रायड के मनोविश्लेष्ण सिद्धांत की व्याख्या तीन आधारों पर की गयी है |

(1) . व्यक्तित्व की संरचना (Structure of Personality)

(2) . व्यक्तित्व की गतिकी (Dynamics of Personality)

(3) . व्यक्तित्व का विकास (Development of Personality)

 

 (1). व्यक्तित्व की संरचना (Structure of personality)

फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना का वर्णन करने के लिए दो मॉडल का निर्माण किया है|

1.1 .आकरात्मक मॉडल (Topographical Model)

1.2. संरचनात्मक मॉडल या गत्यात्मक मॉडल  (Structural Model)

1.1.आकरात्मक मॉडल (Topographical Model)

            मन के आकरात्मक मॉडल (topographical Model) से तात्पर्य वैसे पहलु से होता है जहाँ संघर्षमय परिस्थिति को गत्यात्मकता होती है | अत: इसे विस्तृत रूप से समझने के लिए फ्रायड ने तीन स्तरों में विभाजित किया है

 

 1.1.1. चेतन (Conscious)  

           मन का वह स्तर जिसका संबंध व्यक्ति की चेतना अथवा ज्ञान से होता है चेतन मन कहलाता है| इसमें व्यक्ति जो कुछ भी कार्य करता है या कर रहा होता है उसे उसका ज्ञान होता है |

जैसे अगर हम लिख रहे है तो लिखने की चेतना , अगर पढ़ रहे है तो पढने की चेतना आदि |

1.1.2. अर्धचेतन (Preconscious)

           यह चेतन और अचेतन मन के बीच की स्थिति होती है जिसमे व्यक्ति किसी ज्ञान या बात को अपनी इच्छानुसार या कुछ प्रयास के द्वारा कभी भी यद् क्र सकता है|

जैसे आलमारी में रखा किताब जब हम नही पते है तो परेशान हो जाते है फिर कुछ देर सोचने के बाद पते है कि हमने किताब दोस्त को दिया है |

1.1.3. अचेतन (Unconscious)

            मन का वह भाग जो चेतन से परे होता है अर्थात व्यक्ति के बहुत से विचार , इच्छाए ,संवेग आदि दबी अवस्था में पड़ी रहती है और व्यक्ति अपनी इच्छानुसार इन विचारो को ज्ञान या चेतना में नही ला सकता है अचेतन मन का भाग होता है |

 

1.2. संरचनात्मक या गत्यात्मक मॉडल (Dynamic Model)

          मन के गत्यात्मकता मॉडल से तात्पर्य वैसे पहलू से होता है जहाँ मूल प्रवृत्तियो से उत्पन्न मानसिक संघर्ष का समाधान होता है | अत: इसे विस्तृत में समझने के लिए फ्रायड ने तीन स्तरों में विभाजित किया है |

1.2.1. इदं (Id)

            इदं की उत्पति मनुष्य के जन्म के साथ ही हो जाती है। फ्रायड इसे व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मानता था। इसकी विषयवस्तु वे इच्छाएं हैं जो लिबिडो (यौन मूल प्रवृति की उर्जा ) से सम्बंधित है और तात्कालिक संतुष्टि चाहती है। उर्जा की वृद्धि इदं नही सहन कर पाता और अगर इसे सही ढंग से अभिव्यक्ति नही मिलती तब यह विकृत स्वरुप धारण करके व्यक्ति को प्रभावित करता है।

1.2.2. अहम् (Ego)

            अहम् (Ego) फ्रायड के लिए स्व-चेतना की तरह थी जिसे उसने मानव के व्यवहार का द्वितीयक नियामक बताया. यह इदं का संगठित भाग है इसका विकास अपेक्षाकृत देर से होता है। अहम् वास्तविकता से संबंध रखता है और व्यक्ति को वास्तविक परिस्थितियों के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रेरित करता है|

1.2.3. पराअहम् (Super Ego)

          यह नैतिकता के सिद्धांतों पर कार्य करता है और समाज के मूल्यों को भी प्रदर्शित करता है | व्यक्तित्व का यह पक्ष सबसे बाद में विकसित होता है अर्थात परा अहं व्यक्ति को पूर्ण रूप से सामाजिक एवं आदर्श प्राणी बनता है|

2. व्यक्तित्व की गतिकी (Dynamics of Personality)

इसके अंतर्गत फ्रायड ने मूल प्रवृत्ति , चिंता तथा मनोरचनाओ को प्रस्तुत किया है|

2.1. मूल प्रवृत्ति

        मूल प्रवृत्ति से फ्रायड का तात्पर्य वैसे जन्मजात शारीरिक उत्तेजन से होता है जिसके द्वारा व्यक्ति के सभी तरह के व्यहार निर्धारित किये जाते है|

फ्रायड ने मूल प्रव्रत्ति को दो भागो में बांटा है|

2.1.1.  जीवन मूल प्रव्रत्ति (Eros)

2.1.2. मृत्यु मूल प्रवृत्ति (Thanatos)

 

2.1.1. जीवन मूल प्रव्रत्ति (Eros)

            व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में जो भी नित्य क्रियाए करता है वह जीवन मूल प्रव्रत्ति के अंतर्गत आता है|

जैसे-   पढ़ना , लिखना , सोना इत्यादि |

 

2.1.2. मृत्यु मूल प्रवृत्ति (Thanatos)

            इसके अंतर्गत फ्रायड ने उन व्यहारो को शामिल किया है जो मानव के लिए हानिकारक होता है अर्थात अक्रमककारी व्यहार आदि |

 2.2. चिंता (Anxiety)

            फ्रायड के अनुसार चिंता एक दुखद क्रिया है जिसमे व्यक्ति अपने वातावरण से समन्वय खो देता है अत: फ्रायड ने इसके तीन प्रकार बताया है|

2.2.1. वास्तविक चिंता

            इस तरह की चिंता की उत्पति वाह्य कारणों से होती है|    

जैसे आग , भूकंप , तूफान से डर इत्यादि |

2.2.2. तांत्रिक तापी चिंता 

          इस तरह की चिंता की उत्पत्ति व्यक्ति के स्वय. के मानसिक विकारो से होता है |

2.2.3. नैतिक चिंता

            जब किसी व्यक्ति को समाज से क्षति होती है और वह अपना आपा खो देता है तो वह नैतिक चिंता से ग्रसित हो जाता है |

 2.3.अहं रक्षात्मक प्रक्रम (Ego Defence Mechanism)

          इसके अंतर्गत फ्रायड ने अनेकों रक्षात्मक प्रक्रम को शामिल किया है

2.3.1. दमन (Repression)

2.3.2. यौकतिकरण

2.3.3. प्रतिक्रिया निर्माण (Reaction Formation)

2.3.4. प्रतिगमन (Regrassion)

2.3.5. प्रक्षेपण (Projection)

2.3.6. विस्थापन (Displacement)

 

3 -  व्यक्तित्व का विकास (Development of Personality)

फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व का विकास 5 अवस्थाओ से होकर गुजरता है

3.1. मुखावस्था (Oral Stage)-  0 से 1 वर्ष तक

3.2.  गुदावस्था (Anal Stage)- 2 से 3 वर्ष तक

3.3. लिंग प्रधानावस्था(Phallic Stage) 4 से 5 वर्ष तक 

3.4. अव्यक्तावस्था (Latency Stage) 6 से 12 वर्ष तक

3.5 जननेन्द्रियावस्था (Genital stage) 13 से प्रारंभ

 

 

 

 3.1. मुखावस्था (Oral Stage)-  0 से 1 वर्ष तक

            यह अवस्था जन्म से एक साल की उम्र तक मानी जाती है और इस अवस्था का कामुकता क्षेत्र मुख से होता है | इस अवस्था में बालक अपने मुख से की गयी सभी तरह की क्रियाओ जैसे- चुसना , निगलना ,जीभ चटपटाना आदि से आनंदित होता है और सेक्स की अनुभूति भी करता है |      

3.2. गुदावस्था (Anal Stage)- 2 से 3 वर्ष तक

          यह अवस्था 2 वर्ष से 3 वर्ष की आयु तक होती है और इसमें बालक मल-मूत्र त्यागने ,लिंगो को छूने आदि कार्यो से आनंदित होता है | और दूसरी बात ये मानी जाती है कि इस अवस्था में बालक मल मूत्र को रोक कर रखते है इससे मूत्राशय में हल्का तनाव उत्पन्न होता है बालक इससे में आनंद की अनुभूति करता है |

 3.3. लिंग प्रधानावस्था(Phallic Stage) 4 से 5 वर्ष तक

          यह अवस्था 4 से 5 वर्ष की आयु तक होती है और इस अवस्था में बालक माता के प्रति और बालिका पिता के प्रति आकर्षित होती है | इस अवस्था में बालक अपने जनेंद्रिय  को छु कर , मल कर , खीचने से जो संवेदना उत्पन्न होती है उससे आनंद की अनुभूति करते  है

 

3.4. अव्यतावस्था (Latency Stage) 6 से 12 वर्ष तक

            यह अवस्था 6 वर्ष से 12 वर्ष की आयु तक होती है | और इस अवस्था में बालक शिक्षा , चित्रकारी , खेल- कूद आदि में रूचि लेना शुरू कर देता है |

 

3.5. जननेन्द्रियावस्था (Genital Stage) 13 से प्रारंभ

            यह अवस्था 13 वर्ष की आयु से प्रारंभ होती है और चलती रहती है |