दहेज निषेध अधिनियम, 1961 - Dowry Prohibition Act, 1961




दहेज निषेध अधिनियम, 1961 - Dowry Prohibition Act, 1961


दहेज निषेध अधिनियम, 1961:- 

इस अधिनियम में दहेज देने या लेने पर प्रतिबंध लगाया गया है। दहेज का अर्थ है कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति (security) जो विवाह से पूर्व या विवाह के पश्चात सीधे या परोक्ष में शादी से संबंधित किसी एक पार्टी (या वर वधु माँ-बाप या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी दूसरी पार्टी (या वर वधु के माँ-बाप या किसी अन्य व्यक्ति) को दी गई हो या देना स्वीकार किया गया हो। इस अधिनियम में निम्नलिखित के लिए दण्ड का प्रावधान है:


  1. दहेज देना या लेना या दहेज देने या लेने के प्रेरित किसी दुल्हन या दुल्हे के माँ-बाप, रिश्तेदारों या संरक्षक से दहेज की मांग करना,


  1. प्रिंट मीडिया में विज्ञापन के जरिये दहेज देने की पेशकश करना,


  1. दहेज की पेशकश करने वाले किसी विज्ञापन को छापना प्रकाशित करना या वितरित करना, 


  1. दुल्हन के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा प्राप्त किए गए दहेज को दुल्हन को हस्तांतरित न करना। 


  1. दहेज देने और लेने सम्बंधित कोई भी करार रद्द माना जाएगा। अधिनियम में यह भी व्यवस्था है कि दुल्हन के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा प्राप्त दहेज की वस्तु अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक दुल्हन को हस्तांतरित कर दी जाएगी और जब तक वह हस्तान्तरित नहीं की जाती, उसको दुल्हन के हित के लिए धरोहर के रूप में रखा जाएगा। 

इस अधिनियम के तहत अपराधों के मुकदमें ऐसे न्यायालय में चलाए जाएंगे, जो मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट से कम के स्तर के न हो । न्यायालय किसी अपराध का संज्ञान स्वयं या पुलिस रिपोर्ट से या किसी पीड़ित व्यक्ति या उसके किसी रिश्तेदार या किसी स्वयंसेवी संगठन की शिकायत पर कर सकता है।







सती प्रथा (निषेध) अधिनियम, 1987:-  यह अधिनियम सती होने से रोकने और सती प्रथा का गुणगान करने और उससे संबंधित मामलों के संबंध में बनाया गया है। अधिनियम की धारा 2(c) में 'सती' की परिभाषा में निम्नलिखित व्यक्ति को जिन्दा अग्नि में जलाना या जमीन में गाड़ दिया जाना, आता है


1. विधवा को उसके मृतक पति या उसके किसी रिश्तेदार या उसके पति से या उस रिश्तेदार से जुड़ी किसी वस्तु पदार्थ या मद के साथ, या


2. किसी स्त्री को उसके किसी रिश्तेदार के शव के साथ चाहे यह जलना या जमीन में गाडना उस विधवा या उस स्त्री की अपनी मर्जी से किया जा रहा हो या अन्यथा हो। 


इस अधिनियम में निम्नलिखित मामलों में दण्ड की व्यवस्था है


(a) कोई व्यक्ति जो सती होने की कोशिश करता है के लिए प्रेरित करता है या निम्नलिखित कार्रवाई के द्वारा सती होने की कोशिश करता है या सती होने के लिए कोई कार्रवाई करता है।


(b) कोई व्यक्ति जो सती होने के लिए प्रेरित करता है या निम्नलिखित कार्रवाई के द्वारा सती होने कोशिश के लिए उकसाता है: 


(1) किसी विधवा या किसी स्त्री को उसके मृतक पति के शव था उसके किसी रिश्तेदार के शव के साथ आग में जलने या जिन्दा जमीन में गाड़ने लिए राजी करना 


(2) किसी विधवा या स्त्री को यह विश्वास दिलाना कि सती होने का परिणाम यह होगा कि उसको, या उसके मृतक पति को, या रिश्तेदार को, आध्यात्मिक लाभ पहुंचेगा या उसके परिवार का इससे कल्याण होगा, 


(3) किसी विधवा या स्त्री को सती होने के फैसले पर अडिग या हठी रहने के लिए प्रोत्साहित करना और इस प्रकार उसको सती होने के लिए उकसाना


(4) सती होने सम्बंधित किसी जुलूस में भाग लेना या किसी विधवा या किसी स्त्री को सती होने के अपने निर्णय लेने में सहायता देते हुए उसे उसके मृतक पति या रिश्तेदार के शव के साथ शमशान भूमि या कब्रिस्तान में ले जाना,


(5) जिस स्थान पर सती कांड हो रहा हो, यहाँ उस कार्यवाई में सक्रिय भाग लेना या उससे सम्बंधित किसी संस्कार में भाग लेना, 


(6) किसी विधवा या स्त्री को उसके अग्नि में जलने या जिंदा जमीन में गाडने बचाने बाधा डालना और रुकावट पैदा करना 


(7) अगर सती होने के लिए किसी महिला को बचाने के लिए पुलिस अपनी ड्यूटी निभाते हुए कोई कदम उठाती है तो उसमें बाधा डालना और दखल देना


(c) कोई भी व्यक्ति अग सती होने की कार्रवाई को बढ़ावा देता है, उसमें सहयोग देता है, जैसे कि सती सम्बंधी किसी संस्कार में दर्शक बनता है, या सती के जुलूस में मांग लेता है, उसमें सहयोग देता है, सती प्रथा को सही ठहराता है या उसका प्रचार करता है, या जो व्यक्ति सती हो चुका है, या जो व्यक्ति सती हो चुका प्रशंसा के लिए समारोह आयोजित करता है। उसकी इस अधिनियम के तहत गठित विशेष अदालतें घटना के तथ्यों की शिकायत प्राप्त होने पर 

या 

उन तथ्यों पर पुलिस की रिपोर्ट प्राप्त होने पर अपराध का संज्ञान करेंगी। 






व्यभिचार (निषेध) अधिनियम 1986 :- इस अधिनियम के अन्तर्गत यौन शोषण और महिलाओं और बच्चों का दुरुपयोग रोकने और देह व्यापार के शिकार व्यक्तियों तथा चारित्रिक खतरे में खतरे में पड़े व्यक्तियों को बचाने और उनके पुनर्वास के बारे में प्रावधान किया गया है।

इस अधिनियम में वेश्यावृत्ति की परिभाषा में यौन शोषण या किन्हीं व्यक्तियों का व्यापारिक उद्देश्य के लिए दुरुपयोग करना बताया गया है। इस प्रकार वेश्यावृत्ति सिर्फ किसी महिला का अपनी देह किराये पर देने तक ही सीमित नहीं है, किसी पुरुष या बच्चों का यौन शोषण या व्यापारिक उद्देश्य के लिए दुरुपयोग भी इसमें शामिल है।


इस अधिनियम में बच्चे की परिभाषा में वह व्यक्ति आता है जिसने 16 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है। नाबालिग वह व्यक्ति है जो सोलह (16) साल का हो गया है लेकिन 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है। नाबालिग वह व्यक्ति है जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है। यह आयु–भेद बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि नाबालिग के साथ दुर्व्यवहार के मामले में दण्ड ज्यादा सख्त है बनिस्पत बालिगों के मामले में। इस पर कानूनन रोक नहीं है। यदि वैश्या 18 वर्ष की आयु से ऊपर है, और वह शान्तिपूर्वक और स्वेच्छा से किसी से यौन संबन्ध बनाती है, उसके कार्यकलाप सार्वजनिक स्थानों और अधिसूचित इलाकों के दायरे में बाहर है, यह कानून के विरुद्ध नहीं है। तथापि वैश्यावृत्ति निम्नलिखित मामलों में गैर कानूनी है जैसे कि (1) वेश्यावृत्ति चलाना, (ii) वेश्यालय चलाने में किसी को किसी को उकसाना, (iii) वेश्यावृत्ति की कमाई पर जीना, (iv) वेश्यावृत्ति के लिए किसी व्यक्ति को लाना और उसे उकसाना, (v) जहाँ वेश्यावृत्ति का व्यापार चल रहा है, उस स्थान पर किसी व्यक्ति को बन्धन रखना (vi) सार्वजनिक स्थानों पर या उसके दायरे में वेश्यावृत्ति चलाना, (vii) सार्वजनिक स्थानों पर वेश्यावृत्ति के लिए उकसाना, (viii) वेश्यावृत्ति के उद्देश्य के लिए फुसलाना और भड़काना (ix) अपनी परिरक्षा में आये हुए किसी व्यक्ति का शील भंग करना। इस अधिनियम के उद्देश्यों के लिए विशेष पुलिस, अवैध देह व्यापार पुलिस अधिकारियों और विशेष अदालतों की नियुक्ति की गई हैं। इनके अतिरिक्त इस कानून में प्रावधान है कि गैर-सरकारी सलाहकार निकायों की सेवाओं का लाभ उठाया जाए जिसमें इलाके के अधिक से अधिक पाँच समाज सेवक शामिल हों ये समाज सेवक और सामाजिक संगठन, विशेष पुलिस अधिकारियों को सलाह देंगे और मजिस्ट्रेटों को रक्षित पीड़ित व्यक्तियों की आयु, चरित्र और पूर्व वृत्तान्त जानने में सहायता करेंगे और उन लोगों के पुनर्वास और उन्हें सुरक्षित गृहों या सुधारक संस्थानों में रखने की व्यवस्था करेंगे।







महिलाओं का अश्लील प्रदर्शन (निषेध) अधिनियम 1986:-  इस अधिनियम के अन्तर्गत, विज्ञापनों या प्रकाशनों, लेखों, चित्रों या किसी अन्य तरीके से महिलाओं के अश्लील -प्रदर्शन के निषेध और उनसे सम्बंधित मामलों के लिए प्रावधान है। अधिनियम की धारा (c) में महिला के अश्लील प्रदर्शन की परिभाषा में किसी महिला के शरीर उसकी फिगर, उसके जिस्म के किसी भी भाग को किसी ऐसे तरीके से पेश करना जो महिलाओं को अश्लील, या अपमानजनक या अवमानित करता है या जनता के चरित्र, या आचार को भ्रष्ट दूषित करता हो या क्षति पहुंचाता हो, शामिल है। किसी भी उल्लंघन के लिए जुर्माना और कारावास सकता है।


चिकित्सकीय गर्भ समापन अधिनियम, 1971:-  इस अधिनियम में प्रत्यक्ष रूप से गर्भपात के संबंध में चयन के अधिकार का प्रावधान है धारा 4 के तहत चिकित्सा द्वारा गर्भ गिराने का कार्य सिर्फ उन परिस्थितियों में किया जाता है जब भी के जीवन को बचाना हो, या गर्भ धारण किसी बलात्कार के कारण हो, या भ्रूण असामान्य प्रतीत होता हो या गर्भावस्था को जारी रखना मानसिक तनाव का कारण हो सकता है। इस अधिनियम के तहत गर्भपात सरकार द्वारा। अनुमोदित स्थान या अस्पताल में कराया जा सकता है, और वह भी किसी प्रशिक्षित मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा यह सुविधा पर्याप्त रूप में ग्रामीण या किसी दूरदराज के इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए उपलब्ध नहीं है तथा इस बारे में अक्सर सम्बंधित पुरुष ही चयन करता है कि गर्भ गिराया जाए या नहीं।


प्रसवपूर्ण जाँच तकनीक नियमन और रोकथाम अधिनियम 1994:-  इस अधिनियम में प्रसव से पहले गर्भ में लिंग की जांच और उसका निर्धारण करने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की तकनीक, जिसमें अल्ट्रासाउंड भी शामिल है. को नियमित करने के लिए प्रावधान है और सिर्फ लिंग के आधार पर लड़की पैदा होने की संभावना पर गर्भ को गिराने वाले डॉक्टरों के लिए दण्ड की व्यवस्था भी निर्धारित की गई है। फिर भी, इस तरह नियमों के कुख्यात उल्लंघन, अधिकांश मामलों में बिना दण्ड पाये ही रह जाते हैं। यह अधिनियम, लिंग का पहले चयन करने की धीरे-धीरे बढ़ती हुई प्रवृत्ति को रोकने में असमर्थ साबित हुआ है।