अर्थशास्त्र - Economics
अर्थशास्त्र - Economics
अर्थशास्त्र का स्वरूप - (Nature of Economics)
आधुनिक समय में अर्थशास्त्र का अध्ययन अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गया है क्योकि वास्तविक जगत जटिल होता है। अतः उसके आर्थिक समस्याओं को समझना कठिन होता है, अर्थशास्त्र के अध्ययन से इनका समाधान अत्यन्त सुगम हो जाता है और नीतियों को परखने की समझ भी पल्लवित होती है।
English भाषा के Economics शब्द की उत्पत्ति, लैटिन भाषा के Economica या ग्रीक भाषा के oikonomi से हुई है, जिसका अर्थ है- 'गृह प्रबन्ध | हिन्दी भाषा का 'अर्थशास्त्र' शब्द, दो शब्दों से मिलकर बना है- 'अर्थ' और 'शास्त्र', जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘धन का शास्त्र ।
प्रस्तुत इकाई के अन्तर्गत हम अर्थशास्त्र के विभिन्न विद्वानो द्वारा दी गई परिभाषाओं, उसके विषय क्षेत्र, महत्व व इसके साथ ही उसकी प्रकृति का भी अध्ययन करेंगे।
अर्थशास्त्र की परिभाषा - (Definition of Economics)
• हम सभी यह सर्वमान्य रूप से स्वीकार करते हैं, कि प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताएँ असीमित होती हैं और उन्हें प्राप्त करने के साधन (जैसे आय) सीमित होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी अधिक से अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने का प्रयास करता है परन्तु वह अपने सीमित-असीमित इच्छाओं/आवश्यकताओं की अधिकतम प्राप्ति हेतु सीमित साधन को किस प्रकार प्रयुक्त करें उसका निर्णय कैसे करें? यही उसके समक्ष आर्थिक समस्या है।
'अर्थशास्त्र की परिभाषा के संदर्भ में इसके विभिन्न विद्धानों के मध्य मत भिन्नता की स्थिति रही है क्योंकि यह एक ऐसा विषय है जिसमें समय के साथ परिवर्तन होता रहा है। यही कारण है कि आज तक अर्थशास्त्र की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी जा सकी है। चूँकि विगत दो शताब्दीयों से अधिक वर्षों में अर्थशास्त्र के विषय क्षेत्र में बहुत विस्तार हुआ है। अतः इसकी परिभाषाओं में भिन्नता पाई जाना स्वाभाविक बात हैं।
अर्थशास्त्र की परिभाषाओं के प्रमुख वर्ग (Major categories of definitions of economics)
अर्थशास्त्र की बहुत अधिक परिभाषाओं की कठिनाई से बचने तथा सुविधा व सरलता की दृष्टि से परिभाषाओं को निम्न प्रमुख वर्गों में विभाजित कर सकते हैं।
1. धन केन्द्रित परिभाषा: जिसमें एड्म स्मिथ, जे. बी. से, जे. एस मिल, वाकर इत्यादि प्रमुख है।
2. कल्याण केन्द्रित परिभाषा: जिसमें मार्शल, पीगू, कैनन, बैवरेज इत्यादि प्रमुख है।
3. सीमितता या दुर्लभता केन्द्रित परिभाषा: जिसमें राबिन्सन प्रमुख है।
4. आवश्यकता विहीनता सम्बन्धी परिभाषा: जिसमें (जे.के. मेहता) प्रमुख है।
5. विकास केन्द्रित परिभाषा: जिसमें सेम्युलसन, हेनरी, स्मिथ आदि है।
धन केन्द्रित परिभाषा
प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान' कहा है। अर्थशास्त्र के जनक एड्म स्मिथ (Adam Smith) ने सन् 1776 में प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “An Enquiry into the Nature and Causes of Wealth of Nations.” में अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान कहते हुए कहा कि राष्ट्रों के धन के स्वरूप एवं कारणों की खोज करना ही अर्थशास्त्र की विषय सामग्री है। उनके अनुसार अर्थशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य शब्द की भौतिक सम्पन्नता में वृद्धि करना है।
• फ्रांसीसी अर्थशास्त्री जे.बी. से (J. B. Say) के अनुसार अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो धन का अध्ययन करता है। (Economics is the science which deals with wealth.)"
• अमेरिकी अर्थशास्त्री एफ. ए. वाकर (F. A. Walker) के अनुसार अर्थशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जो धन से संबंधित है। (Economics is that body of knowledge which relates to wealth.)"
कल्याण केन्द्रित परिभाषा -
आपने जाना कि प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने 'धन' पर अधिक जोर दिया। इसके कारण कार्लाइल (Carlyle) व रस्किन (Ruskin) जैसे अंग्रेज अर्थशास्त्रियों ने धन के विज्ञान के रूप में अर्थशास्त्र की कटु आलोचना करते हुए इसे 'कुबेरपंथ (Mammon) Worship) व 'घृणित विज्ञान' (Dismal Science) आदि कहा। अर्थशास्त्र को इस आलोचना से बचाने हेतु 19वीं सदी के अंत में नव प्रतिष्ठित (Neo-classical) अर्थशास्त्री प्रो0 अल्फ्रेड मार्शल (Prof. Alfred Marshall) ने बताया कि धन साध्य (end) नहीं बल्कि साधन मात्र है। जिसकी सहायता से मानव कल्याण में वृद्धि की जा सकती है। उन्होंनें सन् 1890 में प्रकाशित अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "Principles of Economics” में अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी- “अर्थशास्त्र मानव जाति के साधारण व्यवसाय का अध्ययन है। यह व्यक्तिगत और सामाजिक क्रियाओं के उस भाग की जाँच करता हैं जिसका निकट सम्बन्ध कल्याण के भौतिक साधनों की प्राप्ति और उनके उपयोग से है। (Economics is the study of mankind in the ordinary business of life. It examines that part of individual and social action which is most closely connected with the attainment and use of material requisites of well being)"
'प्रो. कैनन (Prof. Cannan) ने भी मार्शल से मिलती-जुलती अर्थशास्त्र की परिभाषा दी। उन्होने भी भौतिक कल्याण की वृद्धि . पर जोर देते हुए स्पष्ट किया कि “राजनीतिक अर्थशास्त्र का उद्देश्य उन सामान्य कारणों की व्याख्या करना है जिन पर मनुष्य का भौतिक कल्याण निर्भर है। (The aim of political economy is the explanation of the general rules on which the material welfare of human being depends.)"
सीमितता (दुर्लभता) सम्बन्धी परिभाषा
'लॉर्ड रॉबिन्स (Lord Robbins) ने मार्शल की कल्याण सम्बन्धी परिभाषा की न केवल आलोचना ही की है, अपितु अर्थशास्त्र की एक नवीन और वैज्ञानिक परिभाषा भी दी है। उन्होंने सन् 1932 में प्रकाशित अपनी पुस्तक- “An eassay on the Nature and Significance of Economic science" में अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी
• “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो साध्यों तथा वैकल्पिक उपयोग वाले सीमित साधनों के सम्बन्ध के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। (Economics is the science which studies human behavior as a relationship between ends and scarce means which have alternative uses.)"
• विकस्टीड (Wicksteed) के अनुसार अर्थशास्त्र उन नियमों का अध्ययन है जिनके अनुसार एक समाज के साधन इस प्रकार व्यवस्थित तथा संगठित किए जाएँ जिनसे सामाजिक लक्ष्य बिना अपव्यय के प्राप्त हों सकें। (Economics is “Study of those principles on which the resources of a community should be so regulated and administered as to secure communal ends without waste.)"
'स्टिगलर (G.J. Stigler) के अनुसार “अर्थशास्त्र उन सिद्धान्तों का अध्ययन है जो प्रतिस्पद्र्धी लक्ष्यों में दुर्लभ साधनों के बँटवारे कों निर्धारित करते हैं जबकि बँटवारे का उद्देश्य (आवश्यकताओ) की अधिकतम सम्भव प्राप्ति करना है। (Economics is the study of the "principles governing the allocation of scare means amoung competing ends when the objectives of allocation is to maximise the attainment of the ends.)"
आवश्यकता विहीनता सम्बन्धी परिभाषा
• इलाहाबाद वि०वि० के अर्थशास्त्र विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष प्रो() जमशेद के खुसरो महेता (जे. के. मेहता) जिन्हे भारतीय दार्शनिक सन्यासी अर्थशास्त्री (Indian philosopher saint Economist) कहा जाता है ने आर्थिक क्रियाओं के उद्देश्य को नये रूप में स्वीकार किया।
• भारतीय दर्शन जो सादा जीवन उच्च विचार पर आधारित है से प्रभावित होने के कारण मेहता ने यह मत व्यक्त किया कि अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य संतुष्टि की वृद्धि नही बल्कि 'वास्तविक सुख' में वृद्धि करना है। वास्ततिक सुख की प्राप्ति इच्छाओं को अधिकतम करने से नही बल्कि न्यूनतम करने से ही होगी। में इसीलिए उन्होने कहा कि इच्छाओं से मुक्ति पाना ही प्रमुख आर्थिक समस्या है। उन्होने अर्थशास्त्र की निम्न परिभाषा दी अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जो मानवीय व्यवहार को आवश्यकता विहीनता की अवस्था तक पहुंचने के साधन के रूप मे अध्ययन करता है।”
. प्रो) मेहता के विचारों को भली प्रकार समझने के लिए जरूरी है कि रॉबिन्स की संतुष्टि की धारणा व मेहता की सुख की धारणा को ठीक ढंग से समझ लिया जाय, दोनों में काफी अंतर है। संतुष्टि वह अनुभूति है जो इच्छा या आवश्यकता के पूर्ण होने पर मिलती है जब तक उस इच्छा की पूर्ति नही होगी कष्ट का अनुभव होगा और इच्छा की तीव्रता जितनी ही अधिक होगी उसके पूर्ण न होने पर कष्ट की तीव्रता उतनी ही अधिक होगी। प्रो) मेहता ने इस प्रकार की संतुष्टि आनंद कहा है।
. प्रो() मेहता के अनुसार सुख वह अनुभूति है जिसकी प्राप्ति तब होती है जब कोई इच्छा न हो। उनका कहना है कि जब तक इच्छाएँ बनी रहेगी मस्तिक संतुलन की स्थिति में नहीं होगा। क्योंकि ज्यों ही कोई इच्छा उत्पन होती है मनुष्य के मस्तिष्क का संतुलन भंग हो जाता है और वह सन्तुलन की प्राप्ती हेतु इच्छा पूर्ण करने का प्रयास करेगा। इस इच्छा के पूर्ण होने पर मानसिक सन्तुलन पुनः स्थापित हो जायेगा और उसे कुछ समय तक आनंद प्राप्त होगी, पर यह स्थिति सुख की नहीं होगी। क्योंकि एक इच्छा की पूर्ति दूसरी, तीसरी या चैथी इच्छा को जन्म दे सकती है।
विकास केन्द्रित परिभाषा
'बेनहम (Benham) के अनुसार- “अर्थशास्त्र उन तत्वों का अध्ययन है जो रोजगार और जीवनस्तर को प्रभावित करते हैं। ; ( Economics is the study of factors affecting employment and standards of living)"
इस परिभाषा के अन्तर्गत राष्ट्रीय आय और रोजगार का निर्धारण के साथ ही आर्थिक विकास के सिद्धान्त भी आ जाते हैं लेकिन इसमें दुर्लभ साधनों के आवंटन का विषय प्रत्यक्ष रूप से नहीं आता।
• हेनरी स्मिथ ने अर्थशास्त्र की अधिक उपयुक्त परिभाषा दी है। उनके अनुसार " अर्थशास्त्र यह अध्ययन करता है कि एक सभ्य समाज में कोई व्यक्ति अन्य व्यक्तियां द्वारा उत्पादित पदार्थों से किस प्रकार अपना भाग प्राप्त करता है और कैसे समाज के कुल उत्पादन में परिवर्तन होता है और कैसे कुल उत्पादन का निर्धारण होता है। (Economics is the study of how, in a civilised society, one obtains a share in what other people have produced and of how the total product of society changes and is determined.)"
हमने जानना कि अर्थशास्त्र क्या है ? इसका विषय क्षेत्र व इसकी प्रकृति क्या है ? इस सन्दर्भ मे विस्तारपूर्वक चर्चा की है। एडम स्मिथ की धन केन्द्रित परिभाषा के पश्चात मार्शल, पीगू, रॉबिन्स, मेहता व विकास केन्द्रित परिभाषाओं से हमे अर्थशास्त्र के व्यापक दृष्टिकोण का पता चलता है। अर्थशास्त्र की विषय सामग्री के अन्र्तगत उपभोग, उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा राजस्व पाँच प्रमुख क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र अब धन का शास्त्र न रहकर मानवीय कल्या बन चुका है। इसमें विज्ञान तथा कला दोनों के गुण है। यद्यपि यह भी सही है कि अर्थशास्त्र में केवल आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन होता है। तथा आर्थिक नियम भौतिकी के नियमों की तरह निश्चित भी नही होते ये कुछ तथ्य अर्थशास्त्र की सीमाएं भी प्रदर्शित करते हैं। इसके बावजूद आधुनिक समय मे अर्थशास्त्र का अध्ययन महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है, क्योंकि यह ज्ञान तो प्रदान करता ही है व्यावहारिक जीवन मे पथ प्रदर्शक भी है।
वार्तालाप में शामिल हों