उपकल्पना का महत्व - Importance of Hypothesis

उपकल्पना का महत्व - Importance of Hypothesis

गुडे एवं हॉट के अनुसार, "अच्छे शोध में उपकल्पना का प्रतिपादन एक केन्द्रीय प्रतिपादन है।”


मैक्स वेबर का मानना है कि “प्रत्येक वैज्ञानिक सम्पादन में नूतन प्रश्नों का निर्माण किया जाता है। " 


सेल्टिज, जहोदा तथा उनके सहयोगियों के शब्दों में, "उपकल्पनाओं का निर्माण तथा सत्यापन वैज्ञानिक अध्ययन का उद्देश्य है।"


उपकल्पना के महत्व को इस प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता है -


1) अध्ययन के उद्देश्य का निर्धारण - 


उपकल्पना यह बताती है कि किस चीज का अन्वेषण किया जाए। यह शोध के उद्देश्य का निर्धारण करती है। उपकल्पनाएँ यह बताती है कि किन तथ्यों का संकलन करना है और किन तथ्यों का संकलन नहीं करना है कौन-से तथ्य हमारे उद्देश्य के अनुरूप और सार्थक है तथा कौन-से निरर्थक।


2) अध्ययन क्षेत्र को सीमित करना- 


उपकल्पना शोध कार्य की सीमा का निर्धारण करके शोधकर्ता का ध्यान विषय के एक विशिष्ट पहलू पर केन्द्रित करने का काम करती है। तथ्यों का विश्व बहुत बड़ा है और किसी भी शोधकर्ता के लिये यह असंभव है कि वह एक विषय से सम्बद्ध सभी पहलुओं का अध्यान एक ही समय पर करे। ऐसी स्थिति में उपकल्पना अध्ययन क्षेत्र को सीमित कर अध्ययन विषय के एक विशिष्ट पहलू पर शोधकर्ता का ध्यान आकृष्ट करती है।


3) अध्ययन को उचित दिशा प्रदान करना- 


जैसा कि ऊपर भी कहा जा चुका है कि उपकल्पनाएँ शोधकर्ता का ध्यान विषय के एक विशिष्ट पहलू पर केन्द्रित कर देती है। इससे शोधकर्ता को एक निश्चित दिशा प्राप्त होती है। उपकल्पना के आधार पर शोधकर्ता यह जानता है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं? वास्तव में एक अच्छी उपकल्पना के निर्माण से न केवल अध्ययन क्षेत्र का ही अपितु लक्ष्य का भी स्पष्टीकरण हो जाता है। 


श्रीमती पी.वी. यंग के अनुसार, "इस प्रकार उपकल्पना का प्रयोग दृष्टिहीन खोज तथा अंधाधुंध तथ्य संकलन से रक्षा करता है, जो बाद में शोध समस्या को अनुपयोगी सिद्ध कर सकते हैं।” 


4) शोध में निश्चितता लाना- 


उपकल्पना की सहायता से एक निश्चित निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकता है तथा यह शोध को विशिष्ट व विषयानुकूल बना देगी। 


5) उपयुक्त तथ्यों के संकलन में सहायक -


उपकल्पना शोधकर्ता को समस्या से सम्बन्धित उपयुक्त तथ्यों को संकलित करने हेतु प्रोत्साहित करती है। शोध की शुरुआत में यह भी हो सकता है कि वैचारिक अस्पष्टता के कारण सभी तथ्यों का संकलन कर लिया जाए परंतु बाद में उनमें से कुछ विशिष्ट तथ्यों को ही चुनना पड़ता है तथा इसमें उपकल्पना सहायक होती है।


6) पुनरावृत्ति को संभव बनाना -


पुनरावृत्ति और पुनर्परीक्षण द्वारा शोध के परिणामों की विश्वसनीयता और सत्यता को उपकल्पना की सहायता से मूल्यां कित किया जाता है। 


7) निष्कर्ष निकालने में सहायक -


उपकल्पना के निर्माण के बाद उससे संबंधित तथ्यों को संकलित किया जाता है तथा उन्हीं तथ्यों के आधार पर यह जाँचने का प्रयास किया जाता है कि वह उपकल्पना सही है अथवा गलत। उपकल्पना में जिन तथ्यों का परस्पर गुण सम्बन्ध दिया जाता है उन्हीं की सत्यता की पड़ताल करके शोधकर्ता निष्कर्ष तक पहुंचता है। 


8) सिद्धांत के निर्माण में सहायक -


उपकल्पना के आधार पर ही शोधकर्ता नवीन सिद्धांतों को निर्मित करने की स्थिति तक पहुंचता है। उपकल्पना तथ्यों व सिद्धांतों के बीच की कड़ी होती है, जब उपकल्पना सत्य सिद्ध तथा स्थापित हो जाती है तो वह एक सिद्धांत के रूप में प्रामाणिक हो जाती है।