जन और जनसंचार - Mass and Mass Communication

 जन और जनसंचार - Mass and Mass Communication


इस इकाई के आरम्भ में हमने देखा कि अंग्रेजी के मास कम्युनिकेशन के पर्याय के रूप में हम जनसंचार शब्द का प्रयोग करते हैं जनसंचार में आया 'जन (Mass) शब्द [संचार (Communication) और माध्यम (Media) के साथ जुड़कर जनसंचार और जनमाध्यम के रूप में बीसवाँ शताब्दी के आरम्भ से प्रयुक्त हो रहा है। इन दोनों शब्द युग्मों में आए जन (Mass) शब्द का क्या अर्थ है और इसकी क्या विशेषताएं हैं, इस पर विचार करने पर हम पाते हैं कि मास यानी जन शब्द के विविध अर्थ है।


शब्दकोशों में मास शब्द का अर्थ है- group, crowd, public समूह भी जनता आदि जनसंचार के संदर्भ में मास शब्द आरम्भ में अशिक्षित उपेक्षित, बुद्धिहीन, असमर्थ उपद्रवी हिंसक के अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है और दूसरी ओर इसका सकारात्मक अर्थ या किसी उद्देश्य के लिए एक साथ कार्य करने वाला समूह लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रभावित होने के साथ मास शब्द सकारात्मक अर्थ में प्रयुक्त हुआ। फिर राजनैतिक सन्दर्भ में मास शब्द सामान्यतः व्यक्तिसमूह के लिए प्रयुक्त होने लगा, जिसका पृथक व्यक्तित्व न हो। आक्सफोर्ड डिक्शनरी में मास के लिए कहा गया An often large quantity of something without a definite shape, form or order Large number of people or things together Aggregate in which indivisuality is lost.


एकत्रित समुदाय, जिसकी व्यक्तिगत पहचान न हो, एक निश्चित आकार प्रकार या क्रम के किसी चीज की बड़ी मात्रा बढी संख्या में एकत्र लोग या चीजें इस आधार पर हिन्दी में मास के लिए प्रयुक्त समूह भीड़ या जनता शब्दों की व्याख्या करें तो हम पाते है कि समूह से आशय है किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आपस में मिलने जुलने वाले लोग जो एक दूसरे को मतीमति जानते हो आपस में मिलते रहते हो। भीड़ का स्वरूप समूह की तुलना में बड़ा होता है। भीड़ ऐसा समूह है, जिसका अस्तिता अथायी होता है। भीड़ के सदस्य समान होते हैं और मिलकर किसी घटना विशेष में हिस्सा लेते हैं और कुछ समय बाद बिखर जाते है।


इन शब्दों के अतिरिक्त मास का पर्याय है जनता हर्बट ब्लूमर ने 1939 में जानसंचार शब्द को पारिभाषित करते हुए समसामयिक परिप्रेक्ष्य में नई सामाजिक बनावट के अनुसार गारा के लिए जनता, जनसमुदाय (Public) शब्द का व्यवहार किया है। एक छोटे समूह के लोग आपरा में एक दूसरे से परिचित होते हैं और अपने विचार अपने मूल्य आपस में बाँटते हैं। किसी उद्देश्य विशेष से आपस में जुड़ते हैं और उनके सम्बन्धों में निश्चित सम्बन्ध होता है। मीठ अस्थाई समूह है। भीड़ मे व्यक्ति की स्वतन्त्र पहचान खो जाती है। यह समूह थोड़े समय के लिए किसी उद्देश्य विशेष से एकत्र होते है और फिर बिखर जाते हैं जनता वह समूह है जो लोकतान्त्रिक संस्था का आवश्यक अग है, जो राजनीतिक अभिमत रखता है, किसी राजनैतिक मुद्दे के लिए संघर्ष करता है व्यक्तिगत हित की अपेक्षा पूरे माया समूह के हित के लिए न करता है। मास के लिए प्रयुक्त इन तीन रूपों के अतिरिक्त सिनेमा, रेडियो, मेरा आदि ने ऐसे समूह की परिकल्पना को साकार किया है, जो इन तीनों अर्थी से अलग है। यह समूह मीडिया जनता को अपेक्षा एक नये तरीके का समूह है। यह समूह किसी भी ग्रुप भीड़ से बड़ा व्यापक किन्तु छिन्न भिन्न होता है । इसके सदस्य सामान्य तौर पर एक दूसरे से अपरिचित बेमेल स्वतन्त्र पहचान से रहित होते हैं ही ये भी की तरह अनियन्त्रित नहीं होते आणि प्रस्तोता के प्रभाव से उसके अनुरूप चलते हैं।









बचपन में आपने एक कहानी पढ़ी होगी 'सुरीवाला। इसका कन्य है कि एक राज्य में बहुत सारे चूहे हो गए थे। राजा ने घोषणा करवाई कि जो भी इन चूहों को उसके राज्य से निकाल देगा, उसे वह अपनी कन्या को सौंप देगा। एक बाँसुरीने यह कार्य करने का बीड़ा उठाया और अपनी बारी बजाना आरम्भ किया। उसकी बाँसुरी की मधुर ध्वनि से राज्य के सभी चूहे आकृष्ट होकर उसके पीछे पीछे चलने लगे। वह आगे बढ़ते हुए एक नदी के अन्दर उतरा और सारे हे भी पानी में उतर गए। राजा ने अपनी शर्त पूरी नहीं की। फिर बाँसुरीवाले ने बांसुरी बजाई और इस बार राज्य के सभी युवक उसके पीछे हो लिए। आखिरकार राजा को अपनी शर्त माननी पड़ी। बचपन सुनी इस कथा में हमने यह देखा कि जिस तरह बड़े उस युवक के पीछे-पीछे चल ऐसे ही राज्य के सारे युवक भी उनकी अपनी आइडेन्टिटी' वहाँ नहीं रह गई थी।


• मैथिलीशरण गुप्त की कृति साकेत' में एक प्रसंग है कि राम के वनवास के वनवास के समय भरत सारी अयोध्या को लेकर राम के पास राम को लौटाने के लिए पहुंचे। यहाँ कैकेयी के विषय में भरतादि ने अपना क्रोध व्यक्त किया कि कैकेयी के कारण राम को वन में आना पड़ा। सारे अयोध्यावासी इसी भाव से युक्त थे किन्तु तभी राम ने कैकेयी का साथ देते हुए यह कहा कि वह नाता है जिसने भरत जैसे पुत्र को जन्म दिया है निंदा की नहीं प्रशंसा की अधिकारिणी है। उन्होंने कहा- सौ बार धन्य वह एक लाल की माई, जिस जननी ने है जना भरत सा भाई कुछ समयोपरान्त सारी सभा ने भी यही चिल्लाना शुरु कर दिया-सौ बार अन्य वह एक लाल को माई, जिस जननी ने है। भरत सा भाई आशय यह है कि यह जनसमुदाय आपस में बेगेल होने पर भी प्रस्तोता द्वारा समान रूप से प्रभा और निर्देशक डायरेक्टर) के अनुसार चलता है।


वैसे इन शब्दों की अपेक्षा जान शब्द के लिए व्यवहृत 'लोक' शब्द मास के अधिक निकट है। लोक का अर्थ है जग संसार पृथ्वी का कुछ अलग माग किसी देश या स्थान में रहने वाले लोगों का समुदाय, समाज वर्ग, लोग आदि भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में नाटक के प्रयोजनों की चर्चा करते हुए लोक को बहुत महत्व दिया गया है। भरतमुनि कहते हैं कि नाटक की उत्पत्ति लोक से हुई है अत: नाटक के प्रयोग में लोक को प्रमाण माना जाना चाहिए।


लोकसिद्धं भवेत्सिद्धं नाट्यं लोकस्वभावजम्।

तस्मान्नाट्यप्रयोगे तु प्रमाणं लोक इष्यते।। - नाट्य शास्त्र


यह लोक बहुत विस्तृत है, प्रत्येक वस्तु में व्याप्त है, इसीलिए भरतमुनि कहते हैं कि नाटक (व्यापक अर्थ में साहित्य के अंतर्गत प्रत्येक विद्या प्रत्येक कला, लोकव्हा आचार विचार यानी लोक से जुड़ा प्रत्येक पक्ष जा जाता है। जाहिर है कि समूह भीड़ जनसमुदाय की अपेक्षा जन या लोक का क्षेत्र अधिक व्यापक है। यह जन अपने लिए कार्य नहीं करता, वरन सारे कार्य जन को लक्ष्य करके किये जाते हैं। जन की प्रासंगिकता आज के संदर्भ में जन उत्पादन (Mass production) और जन उपयोग (Mass consumption) में है जैसे यदि कोई पुस्तक प्रकाशित होती है, कोई फिल्म निर्मित होती है, कोई विज्ञापन बनाया जाता है तो वह कुछ लोगों के लिए नहीं बनाया जाता या प्रकाशित, प्रसरित किया जाता है अपितु जन- यानी विशाल समूह के लिए जाता है। बनाया जाता है।








इस प्रकार जन विशेषण जुड़कर बनने वाले जनसंचार शब्द की व्याख्या करने पर हम कह सकते हैं कि वह संचार जो जन के लिए जन तक पहुँचने के लिए होता है, जन संचार है। इस संचार का लक्ष्य बड़ी संख्या में लोगों को प्रमादित या सम्मिलित करना, भागीदार बनाना (affeeting or involving a large number of people ) है।


जनसंचार के लिए एक और वे स्रोत हैं, जो सूचना प्रेषित करते और दूसरी ओर ग्रहणकर्ता है जो सूचनाएँ ग्रहण करके उनसे प्रभावित होते हैं, उनके प्रति प्रतिक्रिया करते है। स्रोत और ग्रहणकर्ताओं के बीच सम्पर्क सूत्र है माध्यम से माध्यम इस प्रकार निर्मित किये जाते हैं कि अधिकाधिक लोगों तक पहुंच सकें। ये माध्यम प्रेषक और प्रेष्य (sender and receiver) के बीच तालमेल स्थापित करते हैं। प्रेषक के रूप में पत्रकार प्रस्तोता प्रोड्यूसर, मनोरंजनकर्ता, सलाहकार, राजनीतिज्ञ, प्रचारक धर्मोपदेशक, वकील आदि हो सकते हैं। प्रेष्य है 'जन प्रेषक और प्रेष्य के बीच एक अलिखित पारस्परिक असमंजस्यपूर्ण इकरारनामा होता है जिसमें सामान्यतः प्रेषक का लक्ष्य प्रेष्य की अधिकाधिक प्रभावित है। जैनोविट्ज (Zanowitz, 1968) ने जनसंचार को करना होता इसी रूप में पारिभाषित किया है


'Mass communications comprise the institutions and techniques by which specialized groups employ technological devices (press, radio, films etc) to disseminate symbolic content to large, heterogeneous and widely dispersed audiences, संक्षेप में जनसंचार का आधुनिक सन्दर्भ में आशय उस संचार से है जिसमें बड़े पैमाने पर संदेश भेजा और ग्रहण किया जाता है, जिसमें प्रेषक ग्रहणकर्ता को अधिकाधिक प्रभावित करने का प्रयत्न करता है, जिसमें प्रेषक और प्रेष्य का परस्पर अलिखित असामंजस्यपूर्ण इकरारनामा होता है। उदाहरण स्वरूप कोई भी विज्ञापनदाता अपने विज्ञापनों द्वारा अपने ग्राहक को अधिकाधिक आकर्षित करने की कोशिश करते हैं और इसके लिए अपने उत्पाद को सुन्दर, सर्वश्रेष्ठ और ग्राह्य सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। ग्राहक के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह इस उत्पाद को खरीदे ही किन्तु विज्ञापन द्वारा उसके प्रति आकर्षित होकर बाजार में अक्सर उसी उत्पाद को खरीदने का यत्न करता है, जिसे वह विज्ञापनों में देखता है, भले ही वह उत्पाद उसके लिए जरूरी हो या गैर जरूरी यह विज्ञापन द्वारा यदि यह संदेश ग्रहण करता है कि फलाने उत्पाद को खरीदने पर यह उपहार योजना है, यह उत्पाद खरीदने पर एक और नग उसे मिलेगा (Buy one get one free) यह वस्तु खरीदने पर यह कूपन मिलेगा, आदि आदि, तो वह निश्चित रूप से उसी उत्पाद को खरीदेगा। इसी तरह के अन्य अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं जो यह साबित करते है कि उत्पादक और उपभोक्ता के बीच अलिखित इकरारनामा है।


यह हम पहले ही कह चुके हैं कि पूँजीवाद ने पूरे विश्व में जो बदलाव लाने आरम्भ किये, उसने अनेक ऐसे संचार माध्यमों को विकसित करने की भूमिका निभाई. जिनके सहारे से व्यापक जनसमूह तक सम्प्रेषणीयता बढी समाचारपत्रों की भूमिका तो आप सभी को ज्ञात ही है आपके जेहन में यहाँ यह बात का आना स्वाभाविक है कि समाचारपत्रों ने भारत के स्वातन्त्र्य समर में कितनी अहम भूमिका निभाई थी। तरह रेडियो, टेलीविजन, कैलक्यूलेटर, कम्प्यूटर, सिनेमा, आदि आदि संचार संसाधनों संचार की मौखिक परम्परा से लेकर टेली कॉन्फ्रेंसिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आदि तक की यात्रा में जनमन को अपने अनुसार ढालने में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। प्रौद्योगिकी के विकास ने संदेशों के उत्पादन को भंडारित करने और उसका पुनरुत्पादन करने की सामर्थ्य भी पा ली है।


सामान्यतः जनसंचार की सबसे पहली विशेषता है उसके संसाधनों की भंडारण की क्षमता आपने फुलौपी, सी.डी., डी.वी.डी., पेन ड्राइव, मेमोरी कार्ड, फोटोकॉपियर आदि शब्दों को अक्सर सुना होगा ये सब मल्टीमीडिया के वे संसाधन है, जिनमें भंडारण की अद्भुत क्षमता होती है। आप यह भी जानते हैं कि मुद्रण के आविष्कार से पहले मौखिक परम्परा में ज्ञान-विज्ञान के सभी विषय एक दूसरे के माध्यम से मौखिक रूप से ही भंडारित किये जाते थे, चक्ता और श्रोता की स्थितियों के अनुसार इनमें परिवर्तन अवश्यम्भावी था। फिर कागज के आविष्कार के साथ लेखन की परम्परा आरम्भ हुई और फिर मुद्रण के आविष्कार के साथ-साथ भावों, विचारों मतामतों, ज्ञानविज्ञान के विविध विषयों को भंडारित करने की क्षमता बढ़ने लगी। रेडियो का आविष्कार हुआ तो आवाजों को, वीडियो का आविष्कार होने पर दृश्यों को भंडारित करने की क्षमता होने लगी।


जनसंचार माध्यम भंडारण की क्षमता के साथ पुनरुत्पादन की क्षमता से भी सम्पन्न होते हैं। एक छोटा सा उदाहरण इस विषय में दिया जा सकता है हम अपने कंप्यूटर में कोई आलेख तैयार करते हैं, उसमें अपनी इच्छा अनुसार परिवर्तन, परिवर्धन किया जा सकता है। लिखा हुआ या प्रकाशित किया गया आलेख परिवर्तित नहीं किया जा सकता, पर कंप्यूटर पर तैयार आलेखादि को आकार प्रकार विषय आदि की दृष्टि से परिवर्तित किया जा सकता है। फैक्स मशीन द्वारा अनेकानेक प्रतिलिपियों तैयार की जा सकती है। मुद्रण की तकनीक के विकास ने कुछ ही घंटों में अखबार की लाखों प्रतियों तैयार करने में महारत हासिल कर ली है। जान बी थाम्पसन के अनुसार प्रतीकात्मक रूपों की पुनरुत्पादकता वह मुख्य लक्षण जिसके कारण जनसंचार के संस्थानों द्वारा तकनीकी माध्यम का व्यावसायिक दोहन सम्भव हुआ है और जिसकी वजह से ही प्रतीकात्मक रूप को ऐसी जिस में बदला जा सकता है जिनको ये संस्थान बेचने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित कर सकें पुनरुत्पादन की इसी विशेषता के कारण स्वयं पुनरुत्पादन पर नियंत्रण रखने के तरीकों का विकास हुआ है, कॉपीराइट कानून, बौद्धिक संपदा कानून आदि इसी व्यावसायिकता के परिणाम हैं।


लिखी पुस्तक, रिकार्ड किये गये डॉक्युमेन्ट्स, कैसेट्स, पैन ड्राइन, फ्लॉपी. डी. बीडी आदि संसाधनों द्वारा संरक्षित रहते हैं। रेडियो, टेपरिकॉर्डर, टी.वी इन्टरनेट आदि ने संरक्षित दस्तावेजादि के सम्प्रेषण और आस्वादन के लिए समय और स्थान की दूरियों को मिटा दिया है। मेरे एक सहयोगी ने कुमार गन्धर्व द्वारा ग्यारह वर्ष की अवस्था में गाया गया रामकली राग उसे सुनाया था, यह दुर्लभ संयोग तकनीकी संसाधनों के कारण ही संभव हुआ। आप एक डिश टीवी कंपनी के लिए बने एक विज्ञापन को आजकल अक्सर सुनते होंगे, जिसमें बार बार कहा जाता है कि अब अपने मनपसन्द कार्यक्रमों को देखने के लिए जरूरी नहीं है कि उनके ठीक प्रसारण के समय आपको टी.वी के आगे बैठना पड़ेगा, आप अपने मनपसन्द कार्यक्रम रिकार्ड कर सकते हैं और इच्छानुसार चुन सकते हैं। वस्तुतः इस डिश टीवी कंपनी की डिश में एक सेट टॉप बॉक्स है जिसमें कुछ मेमोरी है और उसमें आप इच्छित कार्यक्रम रिकार्ड कर सकते हैं। विश्व में किसी भी स्थान पर घटने वाली घटना को इन्टरनेट, रेडियो, टी.बी आदि के द्वारा तत्काल सुना और देखा जा सकता है।


जनसंचार द्वारा सामूहिक सम्बोधन किया जाता है। सिनेगा, इंटरनेट आदि के द्वारा संदेश अनेकानेक लोगों तक सम्प्रेषित किया जा सकता है। गूगल आदि सर्च इंजनों ने देश और काल की सीमा को कम कर दिया है। आप किसी भी विषय में किसी भी स्थान में विश्व के किसी भी कोने के विषय में अपेक्षित जानकारी इनके माध्यम से एकत्र कर सकते हैं।