शोध में द्वितीयक तथ्य की परिभाषा - Definitions of Secondary data in research

शोध में द्वितीयक तथ्य की परिभाषा - Definitions of Secondary data in research

सामान्यतः शोध में शोधकर्ता अपने चयनित अध्ययन क्षेत्र से प्राथमिक सामग्री का संकलन करता है, तथापि अपने शोध को अधिक विश्वसनीय और वैध बनाने हेतु द्वितीयक सामग्री का भी संकलन करता है। द्वितीयक सामग्री शोधकर्ता के वर्तमान समाज की वैचारिकी को अस्तित्व प्रदान करती है और समाज वैज्ञानिकों को सामान्यीकरण हेतु प्रारम्भिक सामग्री प्रदान करती हैं। प्राथमिक सामग्री के विपरीत द्वितीयक सामग्री होती है। एक द्वितीयक सामग्री सदैव अपनी सत्ता किसी अन्य अथवा प्राथमिक सामग्री से प्राप्त करती है। इसमें प्रायः लिखित प्रलेखों को शामिल किया जाता है जिसके कारण कई बार इसे ऐतिहासिक स्रोत अथवा प्रलेखीय स्रोत की संज्ञा भी दी जाती है.


1. जी.ए.लुण्डबर्ग- "सामान्यतः शोधकर्ता प्राथमिक स्रोतों के आधार पर अपनी शोध सामग्री के लिए निर्भर नहीं रहते बल्कि द्वितीयक स्रोत भी उन्हें मूल्यवान, महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य सामग्री प्रदान करने तथा उनके शोध कार्य को पूरा करने में सहायक होते हैं।" 


2. करलिंगर- "द्वितीयक स्रोत किसी एक ऐतिहासिक घटना अथवा स्थिति से अपने मूल स्रोतों से एक या अधिक चरण दूर हटे हुए होते हैं "


3. श्रीमती पी.वी. यंग"द्वितीयक स्रोत वे होते हैं जो मौलिक स्रोतों से अभिलेखित अथवा संकलित की गई सामग्री प्रदान करते हैं तथा जिनके प्रख्यापन के लिए अधिकार रखने वाला व्यक्ति प्रथम बार सामग्री के संकलन को नियमित करने वाले व्यक्ति से भिन्न होता है।"


4. पीटर एच.मन- "प्राथमिक स्रोतों को द्वितीयक स्रोत, जिनके द्वारा द्वितीयक स्तर पर सामग्री एकत्रित की जाती है अर्थात सामग्री का संकलन प्रथम स्तर पर न होकर अन्य लोगों की मूल सामग्री से किया जाता है, से भिन्न माना जाता है।" 


इस प्रकार यह स्पष्ट है कि द्वितीयक सामग्री का संकलन लिखित स्रोतों यथा- समाचार पत्र, पत्रिकाओं, प्रकाशित व अप्रकाशित लेख, सांख्यिकीय विवेचन, रिपोर्ट, डायरी आदि की सहायता से किया जाता है। लिखित सामग्री का प्रयोग करके शोधकर्ता अपने संकुचित विशिष्ट दायरे से बाहर निकलकर स्वयं समाज विज्ञान की अति सूक्ष्म प्रवृत्ति से परिचय स्थापित कर सकता है।








द्वितीयक सामग्री की उपयोगिता -


यद्यपि सैद्धान्तिक रूप से प्राथमिक सामग्री का उपयोग द्वितीयक सामग्री की तुलना में सदैव बेहतर माना जाता है परंतु अक्सर व्यावहारिक रूप में इस सिद्धान्त में संशोधन करना पड़ता है। सा रूप में यह कहा जा सकता है कि द्वितीयक स्रोत वैज्ञानिक सामान्यीकरण के लिए प्रारम्भिक सामग्री प्रदान करते है। शोध में इसकी उपयोगिता को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है - 


1) सामाजिक इतिहास का परिचय -

द्वितीयक सामग्री के संकलन स्रोतों से किसी समूह या समुदाय के सामाजिक इतिहास के बारे में स्पष्ट समझ विकसित की जा सकती है। 


2) पक्षपात से बचाव -

द्वितीयक सामग्री के प्रयोग में शोधकर्ता के पास पक्षपात की संभावना तथा अपने अनुरूप सामग्री के मूल को तोड़ने-मरोड़ने की संभावना अपेक्षाकृत कम होती है।


3) गोपनीय तथ्यों का ज्ञान -

इस सामग्री से कई बार उन तथ्यों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है जिनसे सामान्यतः लोग अनभिज्ञ होते हैं। द्वितीयक स्रोतों खासकर आत्मकथा, डायरियों आदि से प्राप्त तथ्य से कई अनछुए और गोपनीय तथ्य प्रकाश में आते हैं। 


4) भूतकालीन घटनाओं का अध्ययन-

द्वितीयक सामग्री ही भूतकालीन घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सहायक है क्योंकि इनका क्षेत्र अध्ययन कर पाना संभव नहीं होता है। 


5) असंभव सूचनाओं की प्राप्ति-

वास्तव में कुछ ऐसी घटनाएँ होती हैं जिनका संकलन करना किसी भी एक व्यक्ति विशेष के लिए असंभव होता है यथा- पुलिस व कचहरी के दस्तावेज़, सरकारी रिपोर्ट आदि। परंतु द्वितीयक सामग्री के आधार पर इन असंभव सूचनाओं का संकलन सरलता से हो जाता है।


6) प्रस्तावित अध्ययन से बचाव -

द्वितीयक सामग्री द्वारा शोधकर्ता न केवल प्रस्तावित अध्ययन के संबंध में अनेक प्रकार की सूचनाओं का संकलन करता है अपितु इनके द्वारा प्राप्त सूचनाओं के आधार पर ही प्रस्तावित अध्ययन के संदर्भ में वह उपकल्पनाओं का निरूपण करने में सफल हो पाता है।


7) संक्षिप्तता-

शोधकर्ता को एक अकेले द्वितीयक सामग्री में कई प्राथमिक सामग्री का सारांश प्राप्त हो जाता है।


8) समय व धन की बचत-

सामान्यतः इसके अंतर्गत सूचनाओं के संकलन में अपेक्षाकृत धन व समय की बचत होती है।


9) आलोचनात्मक स्वरूप -

प्राप्त सामग्री व सूचनाओं से किसी सामाजिक घटनासमस्या विशेष का आलोचनात्मक स्वरूप प्राप्त होता है।