द्वितीयक सामग्री के स्रोत - Source of Secondary Material

द्वितीयक सामग्री के स्रोत - Source of Secondary Material

द्वितीयक सामग्री के मूल रूप से दो स्रोत होते हैं


क) वैयक्तिक प्रलेख


ख) सार्वजनिक प्रलेख


क) वैयक्तिक प्रलेख


वैयक्तिक प्रलेखों के अंतर्गत वह सम्पूर्ण लिखित सामग्री शामिल हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा अपने विषय में उसके दृष्टिकोण को व्यक्त करती हो। इसमें लेखक का कोई विशिष्ट शोधात्मक दृष्टिकोण नहीं होता है। व्यक्तिगत प्रलेखों में सामान्यतः लेखक अपने दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है।


1. सी. ए. मोजर "व्यक्तिगत प्रलेख अपने बिना मांगे रूप में बहुत मूल्यवान होते हैं। किसी विशिष्ट सामाजिक सर्वेक्षण में भी वे शोधकर्ता को प्रारम्भिक खोज व उपकल्पना निर्माण के साधन के रूप में अपना मार्गदर्शन कर सकते हैं।"


2. जॉन मेज- “अपने संकुचित अर्थ में वैयक्तिक प्रलेख किसी व्यक्ति द्वारा अपने निजी कार्यों, अनुभवों तथा विश्वासों का एक स्वतः लिखित प्रथम पुरुष वर्णन है।"


सेल्टिज, जहोदा और उनके सहयोगियों के अनुसार वैयक्तिक प्रलखों के अंतर्गत निम्नलिखित तीन तत्व सम्मिलित हैं -


● लिखित प्रलेख


● वे प्रलेख जो व्यक्ति के स्वयं के नेतृत्व में लिखे गए हों।


● वे प्रलेख जो व्यक्ति के स्वयं के व्यक्तिगत अनुभव पर प्रकाश डालते हों।







वैयक्तिक प्रलेख क्यों और किस लिए रखे जाते हैं, इससे संबंधित कारणों को आलपोर्ट ने उल्लेखित किया है -


1. अपने किसी कार्य के औचित्य को सिद्ध करना


2. स्वीकारोक्ति के लिए


3. क्रमबद्ध वर्णन की इच्छा


4. साहित्यिकता का आनंद जिसमें व्यक्तिगत अनुभव को सुंदर और रोचक तरीके से अभिव्यक्त किया जाता है।


5. व्यक्तिगत प्रलेखों में शोध के लिए


6. मानसिक तनाव से छुटकारा पाने के लिए


7. धन-संपत्ति प्राप्ति के लिए


8. किसी सौंपे हुए कार्य को पूरा करने के लिए, कभी-कभी इस प्रकार के प्रलेख दूसरों की आज्ञा के अनुसार लिखे जाते हैं।


9. चिकित्सा संबंधी विवरण के लिए


10. अपराधों की स्वीकृति के लिए जिससे मन का बोझ हल्का हो सके


11. वैज्ञानिक अभिरुचि


12. जनसेवा तथा अपने अनुभवों से सार्वजनिक कल्याण कराने के लिए शोध उद्देश्य की पूर्ति हेतु वैयक्तिक प्रलेखों के अंतर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जा सकता है -


1) आत्मकथा अथवा जीवन इतिहास - 


जीवन इतिहास वस्तुतः विस्तार से लिखी गई लेखक की आत्मकथा होती है। किसी घटना विशेष से संबंधित प्रसिद्ध लोगों की आत्मकथा का उपयोग अध्ययन के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के रूप में, महात्मा गांधी द्वारा लिखित पुस्तक My Experience with Truth' एक महत्वपूर्ण आत्मकथा है।


जॉन मेज- "जीवन इतिहास का सच्चे अर्थ में तात्पर्य विस्तृत आत्मकथा है। सामान्य अर्थ में इसका प्रयोग ढीले ढाले तौर पर होता है तथा किसी भी जीवन संबंधी सामग्री के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।"







जीवन इतिहास सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं


i.) स्वतः प्रवर्तित आत्मकथा -

व्यक्ति अपनी इच्छा से भूतकाल की बातों का स्मरण कर जीवन की घटनाओं का क्रमवार ढंग से विवरण प्रस्तुत करता है। 


ii.) स्वैच्छिक आत्म-

अभिलेख इसकी रचना किसी दूसरे यथा प्रकाशक, मित्रों, शोधकर्ता या सरकार आदि से प्रेरणा मिलने या उसके कहने पर स्वैच्छिक तौर पर की जाती है।


iii.) संकलित जीवन इतिहास-

ये वे जीवन इतिहास हैं जिन्हें व्यक्ति स्वयं नहीं लिखता है। उसके द्वारा दिये गए भाषण, प्रकाशित लेख, साक्षात्कार आदि संकलन आधार पर अन्य व्यक्तियों द्वारा उसके जीवन इतिहास को लेखबद्ध किया जाता है।


जीवन इतिहास का प्रयोग सभी परिस्थितियों में किया जाना संभव नहीं है, इसका प्रयोग मूल से निम्नांकित विशिष्ट परिस्थितियों में किया जाता है


• गुणात्मक तथ्यों के संकल्म में


• गहन और सूक्ष्म अध्ययनों में


• परिवर्तन एवं विकास के अध्ययन में


• आंतरिक जीवन के अध्ययन में


• व्यक्तित्वों के अध्ययन में


2) डायरियाँ -


व्यक्तिगत प्रलेखों के अंतर्गत लिखी गई डायरियों का विशेष महत्व होता है। अनेक लोग प्रतिदिन डायरियाँ लिखा करते हैं। डायरियों में सामान्यतः घटनाओं के प्रति अपनी भावनाओं का समावेश होता है। जीवन के सामान्य एवं कटु अनुभव विशिष्ट परिस्थितियों में स्वयं की मनःस्थिति, सुख-दुख रोष आक्रोश, क्रियाएँ-प्रतिक्रियाएँ, भाव-मनोभाव आदि का विवरण डायरियों में उल्लेखित किया जाता है। जॉन मेज के अनुसार, "डायरियाँ सबसे अधिक रहयोद्घाटन-करिणी होती है, खासकर तब जब वे अंतरतम पत्रिकाओं के रूप में प्रयोग की जाती है तथा दूसरे वे सर्वाधिक स्पष्टता से उन अनुभवों और क्रियाओं का वर्णन प्रस्तुत करती हैं जो घटित होने के समय अधिक महत्वपूर्ण मालूम होते हैं।" 







3) पत्र -


द्वितीयक स्रोत का एक महत्वपूर्ण साधन व्यक्तिगत पत्र होते हैं। चूंकि पत्र व्यक्तिगत होते हैं अतः इसकी सहायता से लेखक के वास्तविक विचारों, दृष्टिकोण और विचारों का पता सरलता से लगाया जा सकता है।


4) संस्मरण- 


संस्मरण में वे विवरण होते हैं जो यात्राओं, जीवन घटनाओं अथवा किसी महत्वपूर्ण परिस्थितियों में लिखे गए हैं। प्राचीन काल के यात्रा वर्णन व संस्मरण ने ऐतिहासिक महत्व की सामाग्री प्रदान की है। उदाहरणस्वरूप, मेगस्थनीज, ह्वेनसांग,इब्नबतूता, फाह्यान के वर्णन भारतीय सभ्यता व संस्कृति के बारे में महत्वपूर्ण स्तर की जानकारी उपलब्ध कराते हैं।


व्यक्तिगत प्रलेखों के प्रमुख अवगुण या सीमाएं निम्नलिखित हैं -


• वैयक्तिक प्रलेखों की उपलब्धता की समस्या


• अस्पष्ट और अवैज्ञानिक प्रकृति


• अक्रमबद्ध रूप में घटनाओं का प्रस्तुतीकरण


• दोषपूर्ण सामान्यीकरण


• सीमित अध्ययन में सहायक


• स्मृति भ्रम की समस्या


• पक्षपात और अभिनति की संभावना


• सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए अनुपयुक्त व अप्रामाणिक सूचनाएँ


• अपेक्षाकृत आत्मविश्वास अधिक


ख) सार्वजनिक प्रलेख


सार्वजनिक प्रलेख भी व्यक्तिगत प्रलेखों की ही भांति प्रकाशित-अप्रकाशित दोनों ही रूपों में प्राप्त होते हैं। सार्वजनिक प्रलेख में उस प्रकार के प्रलेख आते हैं जो दस्तावेज़ समाज, जाति, समूह आदि के बारे में उनके कार्यकलाप के रिकार्ड हों या कंपनियों, सरकारी दफ्तरों के दस्तावेज़ आदि होते हैं। कुछ प्रलेखों को तो प्रकाशित कर दिया जाता है परंतु कुछ को गोपनीय रखने के उद्देश्य से अप्रकाशित ही रखा जाता है। उनको संकलित कर पाना एक दुष्कर कार्य होता है। इन्हें दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - 


1) प्रकाशित प्रलेख


2) अप्रकाशित प्रलेख


1) प्रकाशित प्रलेख


केवल उन्हीं प्रलेखों को प्रकाशित किया जाता है जो सामान्य जनता द्वारा प्रयोग किया जा सकते हैं। ये सार्वजनिक स्थानों यथा- पुस्तकालयों, वाचनालयों, विद्यालय महाविद्यालय आदि में सरलता से उपलब्ध हो सकते हैं। ये निम्न प्रकार के हो सकते हैं


i. सरकारी प्रकाशन


ii. अर्द्ध-सरकारी प्रकाशन


iii. समितियों तथा आयोगों के प्रतिवेदन 


iv. पत्र-पत्रिकाए


V. व्यावसायिक संस्थाओं तथा परिषदोंके प्रकाशन


vi. विश्वविद्यालयों तथा शोध संस्थानों के प्रकाशन


vii. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के प्रकाशन 


viii. व्यक्तिगत शोधकर्ताओं के प्रकाशन


ix. अन्य संगठनों के प्रतिवेदन


X. अन्य साहित्य


ये ऐसे प्रलेख होते हैं जो सार्वजनिक होते हुए भी किसी न किसी विवशता या गोपनीयता के कारण प्रकाशित नहीं हो पाते। इसमें आने वाले प्रलेखों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है








2) अप्रकाशित प्रलेख


i.) रिकार्ड प्रलेख -


किसी लेन-देन संबंधी निर्देशों के संचार अथवा किसी समस्या से सम्बद्ध व्यक्तियों को विभिन्न पक्षों की याद दिलाने में सहायक के रूप में ये प्रलेख प्रयोग किए जाते है। न्यायालयों के रिकार्ड, सैनिक दफ्तरों के रिकार्ड जो प्रतिरक्षा संबंधी महत्व के हैं, बोर्ड विश्वविद्यालयों के परीक्ष परिणाम रिकार्ड, विभिन्न कंपनियों तथा बैंकों के रिकार्ड जो गोपनीयता संबंधी हैं, उन्हें प्रकाशित नहीं किया जाता है।


ii. दुर्लभ हस्तलेख-


ये वे प्रलेख होते हैं जो विद्वानों, उच्च कोटि के धार्मिक-राजनीति व्यक्तियों द्वारा लिखे गए होते हैं, परंतु किसी न किसी कारणवश अप्रकाशित होते हैं। इन हस्तलेखों से बहुत महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सकती है। 


iii. शोध प्रतिवेदन-


इसके अंतर्गत विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों तथा शोध संस्थानों में एम.ए., एम.फिल., पी-एच.डी. स्तर के शोध रिपोर्ट आते हैं जिनका लेखन शोधार्थियों द्वारा किया गया होता है।


iv. अन्य अप्रकाशित साहित्य-


इसके अंतर्गत अनेक अप्रकाशित लेखों, कहानियों, लोकगीतों, कविताओं, कहावतों, श्लोक, सूक्तियाँ, पहेलियों व अन्य साहित्य को सम्मिलित किया जाता है।


प्राथमिक सामग्री की तरह ही द्वितीयक सामग्री में भी कुछ सीमाएं अथवा दोष पाए जाते हैं, जो निम्नवत हैं -


1) विश्वसनीयता का अभाव


2) पुनर्परीक्षा असंभव


3) कल्पना का आधार 


4) मात्र सामान्य वर्णन


5) गोपनीय अभिलेख की अनुपलब्धता


6) सरकारी सामग्री में सदैव विश्वसनीयता का न होना