सुल्तान के रूप में कुतबुद्दीन ऐबक का इतिहास - History of Qutbuddin Aibak as Sultan

सुल्तान के रूप में कुतबुद्दीन ऐबक का इतिहास - History of Qutbuddin Aibak as Sultan

 सुल्तान के रूप में कुतबुद्दीन ऐबक का इतिहास - History of Qutbuddin Aibak as Sultan

जून, 1206 में, लाहौर में ऐबक ने सत्ता सम्भाली किन्तु उसने न तो कोई राजसी उपाधि धारण की और न ही अपने नाम के सिक्के दलवाए परन्तु उसने अपने अधीन क्षेत्र का गज़नी साम्राज्य से सम्बन्ध विच्छेद कर उसे व्यावहारिक दृष्टि से एक स्वतन्त्र राज्य का दर्जा दिलाने का उल्लेखनीय कार्य अवश्य किया। ऐबक का ऐसा साहसिक कदम एल्दौज़ की उस पर नाराज़गी का कारण बना। एल्दीज़ से निपटने के लिए कुतबुद्दीन मुख्यतः लाहौर में ही बना रहा और उसने अपने राज्य विस्तार से अधिक महत्व उसकी सुरक्षा को दिया। उसने बंगाल में खिल्जियों के विद्रोह का दमन कर अली मर्दान को वहां अपना सूबेदार नियुक्त किया। राज्य के पश्चिम में परिस्थितियों के बदलने से कुतबुद्दीन को लाभ हुआ। ख्वारिज्म के शाह ने 1208 ईसवी में एल्दीज़ को गज़नी से निकाल बाहर किया। एल्दीज़ ने पंजाब में शरण ली किन्तु कुतबुद्दीन ने उसे वहां से खदेड़ दिया। कुतबुद्दीन ने कुबाचा को सिंध से निकालने का कोई प्रयास नहीं किया अपितु उससे समझौता कर उसे सिंध तथा मुल्तान का गवर्नर नियुक्त कर दिया। सन् 1210 में चौगान खेलते समय घोड़े से गिरकर चोट लगने से जब उसकी आकस्मिक मृत्यु हुई तब तक उसका राज्य राजनीतिक स्थायित्व प्राप्त नहीं कर सका था। उसे अपनी बहुसंख्यक प्रजा के विरोध और राजपूत प्रतिरोध का मुकाबला करते हुए इसके लिए समय ही नहीं मिल पाया था परन्तु अपनी दान-प्रियता और न्यायप्रियता के कारण एक शासक के रूप में उसकी ख्याति निर्विवाद है। अपने राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करने की दिशा में भी उसने सार्थक प्रयास किए। उसके द्वारा बनाए गए अमीरों को कुतबी अमीर कहा गया। दिल्ली की कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद, अजमेर की अढ़ाई दिन का झोंपड़ा मस्जिद और विश्व प्रसिद्ध कुतुब मीनार के निर्माण का प्रारम्भ उसी के काल में हुआ। इतिहाकार मिनहाज़-उद्दीन सिराज तथा हसन निज़ामी कुतबुद्दीन ऐबक को एक शासक के रूप में सफल मानते हैं।