सुल्तान इल्तुतमिश का इतिहास - History of Sultan Iltutmish

सुल्तान इल्तुतमिश का इतिहास - History of Sultan Iltutmish

सुल्तान इल्तुतमिश का इतिहास - History of Sultan Iltutmish

इल्तुतमिश के प्रशासनिक कार्य

1.वंशानुगत शासन

इल्तुतमिश ने 25 वर्ष सुल्तान के रूप में शासन किया और उसकी मृत्यु के बाद लगभग 30 वर्षों तक उसी के वंशज शासन करते रहे। दिल्ली सल्तनत के इतिहास में पहली बार वंशानुगत शासन स्थापित करने में इल्तुतमिश को ही सफलता मिली।

2 इक्ता प्रणाली

इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत को न केवल बाह्य आक्रमणों तथा आन्तरिक विद्रोहों के संकट से मुक्त किया अपितु उसे शक्ति, सुरक्षा, प्रतिष्ठा, राजनीतिक स्थिरता व सैनिक श्रेष्ठता प्रदान की। वास्तव में भारत में मुस्लिम प्रभुसत्ता का श्री गणेश करने का श्रेय इल्तुतमिश को ही जाता है। तेरहवीं शताब्दी में दिल्ली सल्तन्त के सुल्तानों में इल्तुतमिश ही पहला सुल्तान था जिसने भारत में सामती प्रथा को समाप्त करने, अपने राज्य के सभी भागों को केन्द्र से जोड़ने के लिए इक्ता प्रणाली की शुरुवात की। इस प्रणाली के प्रारम्भ होने से तुर्की शासक वर्ग की धन से सम्बन्धित लिप्सा की समाप्ति हुई और नये विजित प्रदेशों में कानून व्यवस्था की बहाली के साथ ही राजस्व वसूली की समस्या का समाधान हुआ।

3 न्याय व्यवस्था

इल्तुतमिश ने न्याय प्रशासन को सुव्यवस्थित करने के लिए सभी नगरों में काज़ियों की नियुक्ति की।

4 मुद्रा सम्बन्धी सुधार

कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने नाम के सिक्के नहीं चलवाए। इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने अपने नाम के सिक्के चलवाए। इल्तुतमिश ने 175 ग्रेन का शुद्ध चाँदी का टंका तथा तांबे का जीतल चलवाया। इन पर पर अरबी भाषा में उसका नाम अंकित रहता था। टंका और जीतल मध्यकाल में मूल मुद्राओं के रूप में प्रतिष्ठित रहे।

5 तुकाने चहलगानी

दिल्ली सल्तनत पर मुड़ज़ी तथा कुतबी अमीरों के प्रभाव को कम करने के लिए इल्तुतमिश ने अपने विश्वस्त दासों में से चालीस अमीरों का एक दल - तुर्कान-ए-चहलगानी गठित किया। बलबन इसी गुट का एक सदस्य था। इल्तुतमिश के प्रति वफ़ादारी की शपथ लेने वाले इन अमीरों के कारण ही उसकी मृत्यु के तीस वर्ष तक उसके राज्यवंश का अस्तित्व बना रहा किन्तु उनकी निष्ठा उसके उत्तराधिकारियों के प्रति सदैव संदिग्ध ही रही।





सुल्तान इल्तुतमिश की प्रारम्भिक समस्याएं

 

1. सन् 1211 में शम्सुद्दीन इल्तुतमिश सुल्तान बना परन्तु उसके अधिकार में केवल दिल्ली का प्रान्त था। लाहौर के कुतबी अमीर इल्तुतमिश को अपना सुल्तान नहीं मान रहे थे। मुल्तान पर नासिरुद्दीन कुबाचा ने अधिकार कर लिया था और लखनौती (बंगाल) में अली मर्दान ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी थी। पश्चिमी पंजाब पर एल्दौज़ ने अधिकार कर रखा था।

 

2. ऐबक की मृत्यु का लाभ उठाकर जालौर व रणथम्भौर के नेतृत्व में राजपूत प्रतिरोध मुखर हो उठा था। अजमेरग्वालियरबयाना और दोआब के राजपूतों ने भी स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया था।

 

3. गज़नी का शासक एल्दीज़ कुतबुद्दीन ऐबक के काल से ही दिल्ली सल्तनत पर अपने अधिकार का दावा कर रहा था। एल्दौज़ ने ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत के संकट का लाभ उठाकर दिल्ली सल्तनत को अपने राज्य में मिलाने के प्रयास तेज कर दिए।

 

4. शम्सुद्दीन इल्तुतमिश पर गुलाम (कुतबुद्दीन ऐबक) के गुलाम होने का कलंक था।

 

इल्तुतमिश द्वारा अपनी कठिनाइयों का निराकरण

 

1. गज़नी का शासक एल्दौज़ जो कि उसके पूर्व स्वामी कुतबुद्दीन ऐबक की तुलना में भी स्वयं को श्रेष्ठ मानता थाउसे अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए विवश कर रहा था। चारों ओर शत्रुओं घिरे इल्तुतमिश ने कूटनीति का आश्रय लिया और एल्दीज़ को संतुष्ट करने के लिए उसकी सार्वभौमिकता अंगीकार करते हुए उसके द्वारा भेजे गए राज चिह्नों को स्वीकार कर लिया।

 

2. कुतबी अमीरों और दिल्ली के सैनिक रक्षकों के संयुक्त विद्रोह को इल्तुतमिश ने कठोरतापूर्वक कुचल दिया।

 

3. सन् 1214 में ख्वारिज्म के शाह ने एल्दौज़ की राजधानी गजनी पर अधिकार कर लिया। एल्दीज़ भागकर लाहौर आ गया और फिर दिल्ली पर अपना दावा पेश करते हुए उसने दिल्ली की ओर कूच किया परन्तु इल्तुतमिश ने उसे तराइन में पराजित कर बन्दी बना लिया और इस प्रकार एल्दीज़ द्वारा में उत्पन्न संकट का उसने सफलतापूर्वक निपटारा किया।

 

4. इल्तुतमिश के शासनकाल में सन् 1220 में चंगेज़ खा के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण का संकट दिल्ली सल्तनत के लिए उठ खड़ा हुआ था। ख्वामि के युवराज मांगबर्नी का पीछा करते हुए मंगोल दिल्ली सल्तनत की उत्तर-पश्चिमी सीमा तक पहुंच गए थे। मांगवर्नी ने इल्तुतमिश से शरण मांगी परन्तु उसने नम्रतापूर्वक शरण देने से इंकार कर दिया। मांगबनी निराश होकर फ़ारस चला गया और उसका पीछा करने वाले मंगोल भी दिल्ली सल्तनत की उत्तर-पश्चिमी सीमा छोड़ कर लौट गए।

 

5. इल्तुतमिश ने सन् 1217 में कुवाचा से लाहौर छीन लिया था परन्तु फिर भी उसका वह पूर्ण दमन नहीं कर पाया था। कुबाचा की शक्ति को कुचलने में ख्वारिज्म के युवराज भागवन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कुबाचा की दुर्बल स्थिति का लाभ उठाकर सन् 1225 में इल्तुतमिश ने लाहौरभटिण्डा तथा कोहराम पर अधिकार कर लिया। कुबाचा का पीछा करते हुए इल्तुतमिश खक्खर पहुंचा जहां सिंधु नदी में डूब जाने से कुबाचा इल्तुतमिश ने सुगमता से पंजाब तथा सिंध पर अपना अधिकार कर लिया। मृत्यु हो गई।

6. विद्रोही अली मर्दान की हत्या कर खिल्जी सरदार एवाज़ ने स्वयं को लखनौती का स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया था। जैसे ही मंगोल संकट समाप्त हुआइल्तुतमिश ने सन् 1226 में लखनौती की ओर प्रस्थान कर एवाज़ को अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। बाद में फिर से लखनौती में विद्रोह हुए किन्तु सन् 1230 में इल्तुतमिश को लखनौती पर अपना अधिकार करने में सफलता मिली।

7. इल्तुतमिश ने सन् 1226 में हाल ही में फिर से स्वतन्त्र हुए राजपूत राज्यों पर पुनराधिकार हेतु अभियान छेड़ा। उसने रणथम्भौरमंदौरजालौरबयानाअजमेर तथा नागौर आदि राज्यों पर विजय प्राप्त की। इल्तुतमिश को बुंदेलखण्ड पर पुनर्विजय में विशेष सफलता नहीं मिली किन्तु दोआब व अवध पर उसका पुनराधिकार अवश्य स्थापित हो गया।

8. इल्तुतमिश पर गुलाम के गुलाम होने का कलंक लगा था। अपनी सत्ता को सुदृढ़ कर अब वह अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने खलीफ़ा अल-मुस्तगीर बिल्लाह से सुल्तान पद हेतु वैधानिक अधिकार पत्र व खिलअत प्राप्त की। इस प्रकार वैधानिक व धार्मिक दृष्टि से वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान कहलाने का अधिकारी बना।






सुल्तान इल्तुतमिश की प्रारम्भिक समस्याएं

1. सन् 1211 में शम्सुद्दीन इल्तुतमिश सुल्तान बना परन्तु उसके अधिकार में केवल दिल्ली का प्रान्त था। लाहौर के कुतबी अमीर इल्तुतमिश को अपना सुल्तान नहीं मान रहे थे। मुल्तान पर नासिरुद्दीन कुबाचा ने अधिकार कर लिया था और लखनौती (बंगाल) में अली मर्दान ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी थी। पश्चिमी पंजाब पर एल्दौज़ ने अधिकार कर रखा था।

 

2. ऐबक की मृत्यु का लाभ उठाकर जालौर व रणथम्भौर के नेतृत्व में राजपूत प्रतिरोध मुखर हो उठा था। अजमेरग्वालियरबयाना और दोआब के राजपूतों ने भी स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया था।

 

3. गज़नी का शासक एल्दीज़ कुतबुद्दीन ऐबक के काल से ही दिल्ली सल्तनत पर अपने अधिकार का दावा कर रहा था। एल्दौज़ ने ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत के संकट का लाभ उठाकर दिल्ली सल्तनत को अपने राज्य में मिलाने के प्रयास तेज कर दिए।

 

4. शम्सुद्दीन इल्तुतमिश पर गुलाम (कुतबुद्दीन ऐबक) के गुलाम होने का कलंक था।

 

इल्तुतमिश द्वारा अपनी कठिनाइयों का निराकरण

 

1. गज़नी का शासक एल्दौज़ जो कि उसके पूर्व स्वामी कुतबुद्दीन ऐबक की तुलना में भी स्वयं को श्रेष्ठ मानता थाउसे अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए विवश कर रहा था। चारों ओर शत्रुओं घिरे इल्तुतमिश ने कूटनीति का आश्रय लिया और एल्दीज़ को संतुष्ट करने के लिए उसकी सार्वभौमिकता अंगीकार करते हुए उसके द्वारा भेजे गए राज चिह्नों को स्वीकार कर लिया।

 

2. कुतबी अमीरों और दिल्ली के सैनिक रक्षकों के संयुक्त विद्रोह को इल्तुतमिश ने कठोरतापूर्वक कुचल दिया।

 

3. सन् 1214 में ख्वारिज्म के शाह ने एल्दौज़ की राजधानी गजनी पर अधिकार कर लिया। एल्दीज़ भागकर लाहौर आ गया और फिर दिल्ली पर अपना दावा पेश करते हुए उसने दिल्ली की ओर कूच किया परन्तु इल्तुतमिश ने उसे तराइन में पराजित कर बन्दी बना लिया और इस प्रकार एल्दीज़ द्वारा में उत्पन्न संकट का उसने सफलतापूर्वक निपटारा किया।

 

4. इल्तुतमिश के शासनकाल में सन् 1220 में चंगेज़ खा के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण का संकट दिल्ली सल्तनत के लिए उठ खड़ा हुआ था। ख्वामि के युवराज मांगबर्नी का पीछा करते हुए मंगोल दिल्ली सल्तनत की उत्तर-पश्चिमी सीमा तक पहुंच गए थे। मांगवर्नी ने इल्तुतमिश से शरण मांगी परन्तु उसने नम्रतापूर्वक शरण देने से इंकार कर दिया। मांगबनी निराश होकर फ़ारस चला गया और उसका पीछा करने वाले मंगोल भी दिल्ली सल्तनत की उत्तर-पश्चिमी सीमा छोड़ कर लौट गए।

 

5. इल्तुतमिश ने सन् 1217 में कुवाचा से लाहौर छीन लिया था परन्तु फिर भी उसका वह पूर्ण दमन नहीं कर पाया था। कुबाचा की शक्ति को कुचलने में ख्वारिज्म के युवराज भागवन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। कुबाचा की दुर्बल स्थिति का लाभ उठाकर सन् 1225 में इल्तुतमिश ने लाहौरभटिण्डा तथा कोहराम पर अधिकार कर लिया। कुबाचा का पीछा करते हुए इल्तुतमिश खक्खर पहुंचा जहां सिंधु नदी में डूब जाने से कुबाचा इल्तुतमिश ने सुगमता से पंजाब तथा सिंध पर अपना अधिकार कर लिया। मृत्यु हो गई।

 

6. विद्रोही अली मर्दान की हत्या कर खिल्जी सरदार एवाज़ ने स्वयं को लखनौती का स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया था। जैसे ही मंगोल संकट समाप्त हुआइल्तुतमिश ने सन् 1226 में लखनौती की ओर प्रस्थान कर एवाज़ को अपनी आधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। बाद में फिर से लखनौती में विद्रोह हुए किन्तु सन् 1230 में इल्तुतमिश को लखनौती पर अपना अधिकार करने में सफलता मिली।

 

7. इल्तुतमिश ने सन् 1226 में हाल ही में फिर से स्वतन्त्र हुए राजपूत राज्यों पर पुनराधिकार हेतु अभियान छेड़ा। उसने रणथम्भौरमंदौरजालौरबयानाअजमेर तथा नागौर आदि राज्यों पर विजय प्राप्त की। इल्तुतमिश को बुंदेलखण्ड पर पुनर्विजय में विशेष सफलता नहीं मिली किन्तु दोआब व अवध पर उसका पुनराधिकार अवश्य स्थापित हो गया।

 

8. इल्तुतमिश पर गुलाम के गुलाम होने का कलंक लगा था। अपनी सत्ता को सुदृढ़ कर अब वह अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने खलीफ़ा अल-मुस्तगीर बिल्लाह से सुल्तान पद हेतु वैधानिक अधिकार पत्र व खिलअत प्राप्त की। इस प्रकार वैधानिक व धार्मिक दृष्टि से वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान कहलाने का अधिकारी बना।